ज्योतिष महासम्मेलन : देश का पंचांग एक हो ताकि पर्व, व्रत के संशय दूर हों

उज्जैन | ज्योतिष महासम्मेलन के दूसरे दिन व्रत-पर्व को लेकर मतभिन्नता और संशयों पर मंथन हुआ। कई विद्वानों ने राय दी कि उज्जैन को कालगणना का केंद्र मानकर पूरे देश का एक पंचांग बनना चाहिए। इससे संशय दूर हो सकेंगे, मगर कुछ ज्योतिषाचार्य इस पर एकमत नहीं दिखे। कई ज्योतिषियों ने कहा कि व्रत-त्योहार पर सरकारी छुट्टियां घोषित होने से पहले ज्योतिषियों की राय ली जानी चाहिए। सम्मेलन में विक्रम संवत् का प्रचार-प्रसार करने जैसे बिंदुओं पर भी मंथन हुआ। रविवार को महासम्मेलन का समापन होगा।

दूसरे दिन ‘पंचांग में फैली दुविधाओं एवं भ्रांतियों एवं अन्य ग्रहों के अंतर और गणना” विषय पर रखे गए सत्र में ज्योतिषियों ने खुलकर विचार रखे। विचारों में कहीं एक रूपता तो कहीं विरोधाभास की स्थिति भी सामने आई। पंचांगकर्ता पं. आनंदशंकर व्यास का कहना था कि प्राचीनकाल से उज्जैन कालगणना का केंद्र रहा है। उज्जैन को कालगणना का मानक माना जाना चाहिए। इस पर दिल्ली के अरुण बंसल उज्जैन की कालगणना से सहमत नहीं दिखे। ज्योतिषाचार्यों ने कहा- सूर्य सिद्धांत पर निर्मित पंचांग में आधा घंटे का अंतर आता है।

गुजरात को बनाएं मॉडल

गुजरात का उदाहरण देते हुए कुछ विद्वानों ने कहा कि वहां कुछ पंचांगकर्ता मिल बैठकर निर्णय लेते हैं। गंगादशमी, बसंत पंचमी, निर्जला एकादशी, अधिकमास या पुरुषोत्तम मास के बारे में विस्तृत चर्चा कर निर्णय लिए जा सकते हैं। ऐसे ही पंचांगकर्ताओं की एक साल पहले बैठक कर पर्व, त्योहार आदि पर निर्णय करें तो भ्रांतियां दूर हो सकती हैं। पं. एचएस रावत ने कहा कि पंचांग में 24 घंटे में से 18 घंटे तक अष्टमी है तो सर्वाधिक समय मानकर तिथि को अष्टमी ही माना जाना चाहिए। पं.श्याम व्यास ने दावा विश्व में ऐसा कोई स्थान नहीं हैं जो उज्जैन का मुकाबला कर सके।

पहले अंग्रेजी कैलेंडर दस महीने का होता था

ज्योतिषियों ने दावा किया कि पूर्व में अंग्रेजी कैलेंडर 10 महीने का होता था। हमारे देश की कालगणना पद्धति को देखते हुए इसमें संशोधन किया गया। राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त योगेंद्र महंत ने कहा कि एक प्रस्ताव बनाकर दें तो मप्र में ज्योतिषियों का सम्मेलन बुलवाने के लिए सीएम से बात कर पहल करेंगे। सनातन धर्म में पंचांग को लेकर कोई भ्रम की स्थिति नहीं बने ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए। सत्र में पं.रामचंद्र शर्मा वैदिक, डॉ.नंदकिशोर पुरोहित, पं.अजय भावी, अशोक भाटिया, किशनराज सारस्वत सहित देशभर से आए विद्वानों ने विचार रखे।

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