अजब-गजब : एक भी सांप नहीं और यहां चल रहा है सर्प अनुसंधान केंद्र

उज्जैन | महाकाल की नगरी में सांपों पर अनुसंधान के लिए करीब एक दशक पूर्व सर्प अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई थी। उज्जैन विकास प्राधिकरण ने इसके लिए निजी संस्था को जमीन आवंटित की थी। हालांकि यहां एक भी सांप नहीं है। कर्मचारियों की मानें तो महीनों से यह स्थिति बनी हुई है।

ऐसे में संस्था के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं। संचालक का कहना है कि केंद्र चलाने के लिए सरकार से कोई मदद नहीं मिल पा रही, ऐसे में हम क्या करें। दूसरी ओर यूडीए ने कहा है कि अगर जमीन का सही उपयोग नहीं हो रहा तो आवंटन रद्द कर देंगे। नानाखेड़ा क्षेत्र में विकास प्राधिकरण ने तारामंडल के समीप सर्प अनुसंधान केंद्र के लिए जमीन आवंटित की थी। निजी संस्था के प्रस्ताव पर जमीन दी गई थी।

प्रारंभ में यहां शहर सहित आसपास निकलने वाले सांपों को पकड़कर रखा जाता था। साथ ही इन पर अनुसंधान कार्य होता था। हालांकि कुछ माह से यह सिलसिला थम गया है। ‘नईदुनिया टीम ने मंगलवार को अनुसंधान केंद्र का जायजा लिया। यहां एक भी सांप नहीं मिला। केंद्र की स्थिति भी जर्जर थी। चौकीदार को छोड़कर कोई भी यहां मौजूद नहीं था। चौकीदार मांगीलाल ने बताया कि महीनों से यहां यही स्थिति है।

जब इस संबंध में संचालक मुकेश इंगले से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि सरकार से सांपों पर अनुसंधान के लिए मदद नहीं मिल पा रही। रखरखाव के लिए भी बजट नहीं है। ऐसे में संस्था क्या करे। हमसे जितना संभव होता है, कार्य करते हैं। फिलहाल गर्मी का मौसम है, इसलिए सांपों को जंगल में छोड़ दिया गया है।

उधर, विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष जगदीश अग्रवाल ने कहा कि अगर प्राधिकरण द्वारा आवंटित भूमि पर तय उपयोग अनुसार कार्य नहीं हो रहा है तो आवंटन निरस्त कर दिया जाएगा। अफसरों को जांच के निर्देश दिए जा रहे हैं।

संचालक का परिवार पारंपरिक रूप से सांपों को पकड़ने का काम कर रहा

संचालक इंगले का परिवार पीढ़ियों से सांपों को पकड़ने का काम कर रहा है। शहरभर में जहां से भी सांप निकलने की सूचना मिलती है, इंगले अथवा उनकी टीम के साथी उन्हें पकड़कर लाते हैं। वैसे तो इन्हें अनुसंधान केंद्र में रखना चाहिए, मगर ऐसा नहीं हो रहा। सूत्र बताते हैं कि अनुसंधान केंद्र की बजाए सांपों को अन्यत्र रखा जा रहा है।

बेशकीमती है जमीन

प्राधिकरण ने जो भूमि अनुसंधान केंद्र के लिए आवंटित की है, वह बेशकीमती है। वर्तमान में इसकी कीमत करोड़ों रुपए बताई जा रही है। ऐसे में प्राधिकरण आवंटन निरस्त कर इसका अन्य उपयोग भी कर सकता है। इससे प्राधिकरण को आय होगी।

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