कार्तिक पूर्णिमा पर अब ड्रम में होगा दीपदान

उज्जैन। कार्तिक पूर्णिमा २३ नवंबर को है, जिला प्रशासन और नगर निगम ने इसके लिए नदी पर विशेष प्रबंध किये जाने के लिए व्यवस्थाएं जुटाने के निर्देेश जारी किये हैं। इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर रामघाट पर कोई भी श्रद्धालु सीधे तौर पर नदी में दीपदान नहीं कर सकेगा। जिला प्रशासन ने दीपदान के लिए लोहे के ड्रम कटवाकर ड्रम कुंड रखवा दिये हैं, अब श्रद्धालुओं को इन पानी भरे ड्रम कुंडों में ही दीपदान करना होगा। हालांकि इधर ड्रमकुंड रखवाए गये हैं दूसरी ओर इसका विरोध खड़ा हो गया है। इसके लिए तीर्थ पुरोहितों ने कहा दीपदान नदी में ही किया जाता है। ऐसी व्यवस्थाएं हिंदू परम्परायें तोडऩे का काम कर रही हैं।
शुक्रवार को कार्तिक मास की पूर्णिमा होगी। इसी दिन कार्तिक मेला की भी औपचारिक शुरुआत होगी। कार्तिक पूर्णिमा को शहर में करीब ५० हजार से कहीं अधिक बाहरी श्रद्धालु उज्जैन पहुंचेगे और सुबह शिप्रा स्नान करने के बाद दिनभर देव-दर्शन करेंगे और शाम को वे यहां शिप्रा तट पर दीपदान के लिए पहुंचेगे। लेकिन इस बार शिप्रा में प्रदूषण को रोकने के लिए प्रशासन ने नया अद्भुत प्रयोग किया है। प्रशासन ने निर्देश दिया है कि दीपदान करने वाले श्रद्धालुओं को नदी में दीपदान करने से रोका जाए और शिप्रा किनारे रखे ड्रम कुंड में दीपदान करने के लिए श्रद्धालुओं को कहा जाए।

क्या है ये ड्रम कुंड?
शिप्रा किनारे रामघाट सहित प्रमुख घाटों पर यदि आप जाएंगे तो वहां आपको लोहे के ड्रम दिखाई देंगे, जिनमें पानी भरा हुआ है। श्रद्धालुओं को अब इसी कटे हुए ड्रम में दीपदान करना है। लगभग तीन दर्जन से अधिक ड्रमों को कटवाकर उनपर काला रंग पैंट करवाकर अंदर से व्हाईट पैंट का लुक दिया गया है। शिप्रा का पानी इन ड्रमों में भरवा दिया गया है, अब श्रद्धालुओं से यह कहा जाएगा कि दीप दान करना है तो इन ड्रमों में कीजिए। शिप्रा में दीपदान की मनाही है।

प्रदूषण के कारण वैकल्पिक व्यवस्था
बताया जा रहा है शिप्रा में सीधे तौर पर दीपदान किये जाने से दोने में रखा कागज गल कर शिप्रा में प्रदूषण फैला रहा है, यही नहीं रूई और तेल भी शिप्रा जल को प्रदूषित कर रहे हैं। अब ड्रमों में ही दीपदान होगा और यदि इन ड्रमों में दीपदान की संख्या अधिक हो जाएगी तो पहले दीपदान किये हुए दीपक को बाहर कर दिया जाएगा। यह सब श्रद्धालुओं की संख्या पर निर्भर करेगा, जबकि श्रद्धालुओं का कहना है नदी का पानी पहले से ही दूषित है।

नगर निगम के कर्मचारी और होमगार्ड सैनिकों को लगाया गया है व्यवस्था में
इस व्यवस्था के लिए नगर निगम के कर्मचारियों और होमगार्ड के सैनिकों को लगाया गया है। वे देखेंगे कि कहीं कोई श्रद्धालु सीधे तौर पर शिप्रा नदी में दीपदान ना कर सके। ड्रम कुंड की व्यवस्था को भी यही संभालेंगे। ड्रम कुंड दीपकों से ओव्हरफ्लो होने पर संबंधित श्रद्धालु के जाने के बाद उस दीपक को बाहर कर दिया जाएगा। ऐसा शिप्रा में तैनात होमगार्ड सैनिकों ने बताया।

ड्रम कुंड तो घर में भी बनाया जा सकता है
शिप्रा में ही दीपदान का महत्व है। ड्रम कुंड तो घर में भी बनाकर दीप दान किया जा सकता है। यह सब परंपराओं को तोडऩे की साजिश है।
– पं. मनोज भट्ट, तीर्थ पुरोहित

हर बार प्रशासन बिना सोचे समझे कोई भी निर्णय ले लेता है। तीर्थ पुरोहितों और पंडितों से बिना राय के धार्मिक परंपराओं के साथ खिलवाड़ बर्दाश्त के बाहर है।
– पं. अजय व्यास, तीर्थ पुरोहित

कभी सूखी होली तो कभी पटाखे पर बैन, कभी महाकाल में पूजन परंपराओं में मनमाना परिवर्तन। ड्रम में दीपदान करवाना हास्यास्पद लगता है।
पं. सुधीर पंड्या, ज्योतिषाचार्य

शिप्रा का काला पानी प्रशासन को दिखाई नहीं देता। होटलों सहित कई कॉलोनियों का मलयुक्त जल शिप्रा में मिल रहा है। करोड़ों खर्चने के बाद भी खान को शिप्रा में मिलने से रोकने में प्रशासन नाकाम रहा है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को होने वाले दीपदान को परिवर्तित किया जाना समझ से परे है।
पं. सर्वेश्वर शर्मा, ज्योतिषाचार्य

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