एके 47 लूट: गैंगमैन ने नहीं देखी, हमने पकड़ी रायफल

उज्जैन। बडऩगर सुंदराबाद रेलवे ट्रैक पर आरपीएफ के जवानों से लूटी गई एके 47 रायफल के मामले में खुलासा होने के 48 घंटे बाद पुलिस ने एक नया खुलासा ये किया है कि एके 47  को रेलवे गैंगमैन ने पहले नहीं देखा। यह तो पुलिस ने बरामद की है। पुलिस ने कंट्रोल रूम में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इस मामले को लेकर अपनी पीठ थपथपायी। मंगलवार को एके 47 बरामद होने की कहानी की स्क्रिप्ट बुधवार दोपहर तक बदल जरूर गई लेकिन राहत की सांस लेने वाली खबर ये है कि आखिरकार एके 47 बरामद भी हो गई।

बडऩगर रूनिजा के सुंदराबाद रेलवे ट्रैक पर 5 दिसंबर की रात को पेट्रोलिंग के दौरान आरपीएफ के एएसआई व हैडकांस्टेबल पर हमला कर लूटी गई एके 47 भले ही सोमवार को बरामद हो गई हो लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस बुधवार की दोपहर को हुई। पुलिस की यह प्रेस कॉन्फ्रेंस बड़ी मजेदार थी। पुलिस अपनी ही बयां कहानी में कुछ उलझती सी नजर आई।

दो बापर्दा और बेपर्दा क्यों ?

पुलिस ने बुधवार को जो प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की उसमें चार आरोपी लुटेरों को मीडिया के सामने पेश किया। इनमें दो आरोपी बापर्दा थे और दो बेपर्दा। अब सवाल यह उठता है कि जब इस घटना में सभी आरोपियों पर एक जैसी धारा395,397,353 और 332 लगा रही है तो आरोपियों को बेपर्दा और बापर्दा क्यों रखा गया?

यदि इनकी जेल में शिनाख्ती परेड होनी है तो फिर क्या फरियादी आधे को पहचानेंगे और आधे को नहीं। इसका फायदा आरोपी पक्ष को जरूर मिलेगा। यदि पुलिस से वैपन छीनने के मामले में पुलिस इतनी लापरवाही बरत रही है तो फिर अन्य मामलों में क्या होता होगा? यही वजह है कि पुलिस की इसी तरह के कमजोर पक्ष का फायदा आरोपियों को मिलता ही है।

पहली बार आरोपी कारतूस और वैपन का बटवारा कर भागे

पुलिस की माने तो पहले पकड़े गये आरोपी के पास से मैग्जीन और कारतूस मिले। दूसरी बार जो आरोपी भागने के लिए निकले उनसे रायफल और कारतूस मिले। यानी कि आरोपियों ने वैपन, मैग्जीन और कारतूस का बंटवारा किया। जिसे जो मिला रख लिया और भाग निकला। भागने के लिए आरोपियों ने उसी रेल का सहारा लिया।

यानी कि बदमाश नहीं जानते थे कि रेलवे पुलिस भी उनको सघनता से ढूंढ रही हैं और वे उसी एके 47 के साथ रेलवे स्टेशन पर ही पहुंच गये। यदि पुलिस इन्हें आदतन लुटेरे साबित कर रही है तो यह संभव कैसे हो सकता है कि जिस रेलवे का सहारा वे भागने के लिए कर रहे हैं। उसी क्षेत्र में वे वारदात कर चुके हैं। यानी कि अनाड़ी बदमाश।

उज्जैन पुलिस के किसी भी अधिकारी ने उन खबरों को दो दिन से नहीं नकारा कि रेलवे गैंगमेन ने पहले रेलवे ट्रैक पर एके 47 को देखा और फिर गैंगमैन ने इसकी सूचना स्टेशन मास्टर को इसकी सूचना दी। सूचना मिलने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मौके पर पहुंचकर उस रायफल को बरामद किया। अब बुधवार को पुलिस ने अपनी पीठ थपथपाने के लिए एक स्टोरीनुमा प्रेसनोट प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिया।

इसमें कहा गया कि पुलिस ने इसके लिए आठ टीमें बनाईं। टीम अपनी कार्रवाई कर रही थी कि रिकॉर्ड के आधार पर पुलिस ने मियाखेड़ी निवासी मेहरबान सिंह मोगिया और लालसिंह मोगिया निवासी बरखेड़ी को पकड़ा। उनकी सूचना पर पुलिस ने बडऩगर रेलवे स्टेशन से गलिया मोगिया निवासी बलेड़ी और आरोपी उमेश पिता भेरूलाल निवासी बरखेड़ी को पकड़ा।

पुलिस की कहानी के मान से देखा जाए तो पुलिस को पहले आरोपी लालसिंह से मैग्जीन और आरोपी मेहरबान जिंदा राउंड मिले। फिर सूचना के बाद जब आरोपी गलिया को पकड़ा तो उससे रायफल और आरोपी उमेश से जिन्दा कारतूस मिले।

पकड़े गये आरोपियों की उम्र 19से 30 साल और सभी दुबले-पतले

पुलिस ने जो भी आरोपी पकड़े हैं, वे सभी 19से 30 साल के बीच के हैं। सभी आरोपी दुबले-पतले और कमजोर कदकाठी के हैं। आश्चर्य की बात है कि आरपीएफ के वो ट्रेनिंग किये हुए जवान इतने दुबले पतले कदकाठी के लुटेरों पर काबू नहीं पा सके, जबकि उनके पास एके 47 थी।

पुलिस में एक चार का गार्ड का प्रयोग तब होता है जब एक के पास वैपन हो चार जवान हों। पुलिस की कहानी के अनुसार पुलिस ने पहले दो लोगों को पूछताछ के लिए रोका, कुछ देर पूछताछ भी की… फिर बदमाशों को छुड़ाने के लिए उन्हीं के ईशारे पर अन्य बदमाश भी आ गये। तब तक दो अन्य पुलिस जवान आगे निकल चुके थे। पुलिस के हिसाब से दो जवान वैपन के साथ थे और दो बिना वैपन के लापरवाही से अपने साथियों को छोड़कर चले गये और उनके साथ वारदात भी होती रही और उन्हें खबर तक नहीं। कैसे संभव है…?

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