संभाग के सबसे बड़े अस्पताल को इलाज की जरूरत, व्यवस्थाएं बेपटरी

सुधार की कवायद… प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने सभा में कही हालत सुधारने की बात

उज्जैन। संभाग के सबसे बड़े जिला चिकित्सालय अपनी अव्यवस्थाओं के कारण जिले ही नहीं बल्कि आसपास के क्षेत्र में चर्चित है।

यही कारण है कि जिला चिकित्सालय में गरीब वर्ग के लोग मजबूरी में अपना उपचार करवाने पहुंचते हैं, लेकिन वहां पर उन्हें इतनी परेशानी का सामना करना पड़ता है इसे कोई भुक्त भोगी ही बयां कर सकता है। 110 करोड़ की लागत से टीबी अस्पताल के स्थान पर चरक भवन का निर्माण करवाया।

जहां पर शिशु एवं महिलाओं को भर्ती किया जाता है। लेकिन चरक भवन की हालत भी दयनीय है। आए दिन चरक भवन चर्चा में बना रहता है।

मंगलवार को शहीद पार्क पर आयोजित सभा में प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री तुलसीराम सिलावट ने कहा शासकीय अस्पतालों की अव्यवस्थाओं को दूर करते हुए उनका उपचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि मरीजों को बेहतर इलाज मिलें, यह शासन की प्राथमिकता है।

स्वास्थ्य मंत्री की घोषणा के बाद कलेक्टर शशांक मिश्र बुधवार की सुबह चरक भवन पहुंचे तो वहां पर 10 डॉक्टर, 20 नर्स और 8 स्टाफकर्मी समय पर अनुपस्थित मिलें। जिस पर उन्होंने नाराजगी जताई और साफ तौर पर कहा कि ऐसे डॉक्टरों एवं स्टॉफकर्मियों पर कार्रवाई की जाएगी।

जिला चिकित्सालय में होने वाली परेशानियां

ह्न बेड की कमी: जिला चिकित्साल में बेड की कमी होने के कारण कई बार मरीजों की संख्या ज्यादा होने पर उन्हें जमीन पर लेटकर अपना उपचार करवाना पड़ता है।

मरीजों को कई बार साफ बिस्तर एवं चादर भी उपलब्ध नहीं होते हैं।
ह्न बिना चैक किए देते हैं दवा: चरक भवन में कुछ डॉक्टर ऐसे हैं जो कि बच्चों का उपचार बिना चैक किए और बिना नब्ज देखे ही करते हैं। इससे बच्चों के परिजनों में इस बात की आशंका होती रहती है कि बच्चा ठीक होगा या नहीं।

ह्न स्टाफ की कमी: जिला चिकित्सालय में 80 डॉक्टर एवं अन्य स्टाफकर्मियों की कमी है। ऐसे में कम डॉक्टरों से काम चलाना पड़ता है। सरकारी अस्पताल एवं प्रायवेट अस्पताल की स्ट्रेचर में जमीन आसमान का फर्क है। प्रायवेट अस्पतालों की स्ट्रेचर काफी सुविधाजनक होती है।

ह्न लोगों को लिफ्ट की सुविधा नहीं: चरक भवन में लिफ्ट लगाईहै लेकिन इसका उपयोग स्टाफकर्मियों एवं गंभीर घायल अथवा बीमार मरीजों के लिए होता है। इसके कारण चरक भवन में परिजनों से मिलने जाने वाले बुजुर्ग एवं अन्य लोगों को चढ़ाव से होकर पहुुंचना पड़ता है। जिससे बुजुर्गों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

ह्न रैफर करने का गौरख धंधा: जिला चिकित्सालय में गंभीर रूप से घायल मरीज अथवा झुलसे लोगों को लाया जाता है तो यहां पर पदस्थ चिकित्सक उन्हें रैफर करने में आगे रहते हैं। ऐसे मरीजों को इंदौर अथवा उज्जैन के ही प्रायवेट अस्पतालों में भिजवाने की बात कही जाती है। इसमें कुछ लोगों को कमीशन मिलता है। इसलिए यह गौरख धंधा वर्षों से चल रहा है।

यह दिए सुझाव
जिला चिकित्सालय में एक सर्जन, एक बच्चों का डॉक्टर, एक मेडिसीन एवं एक लेडी डॉक्टर 24 घंटे आठ-आठ घंटे के हिसाब से उपलब्ध रहे तो मरीजों को काफी फायदा मिल सकता है।

दुर्घटना में घायल मरीजों को कई किमी दूर से एम्बुलेंस से लाया जाता है लेकिन एम्बुलेंस में प्राथमिक उपचार की व्यवस्था नहीं होती है। जिससे कई बार घायलों की रास्ते में मौत हो जाती है।

इस पर ध्यान देना जरूरी है। अस्पताल में दिए गए वाहनों के ठेके निरस्त करना चाहिए। वाहन पार्किंग की व्यवस्था अस्पताल प्रशासन के जिम्मे रहे।

– तबरेज खान, कांग्रेस नेता

110 करोड़ की लागत से चरक भवन बनाया गया है। यहां पर बच्चों एवं महिलाओं को बेहतर उपचार मिले इसके प्रयास किए जाना जरूरी है। जिला चिकित्सालय में 50 बेड वाला आईसीयू बनाया जाना जरूरी है। इसके अलावा चिकित्सकों एवं स्टाफकर्मियों की कमी भी दूर की जाए।

– रवि राय, पूर्व पार्षद

पहले जिला चिकित्सालय परिसर में 24 घंटे दो मेडिकल खुले रहते थे। इससे मरीजों को दवा लेने के लिए भटकना नहीं पड़ता था। लेकिन दोनों मेडिकल को बंद करवा दिया।

जिससे मरीजों को परेशानी होती है। मरीजों को बेहतर उपचार मिलें। गरीब लोगों को इंदौर अथवा स्थानीय अस्पतालों में रैफर नहीं किया जाए। इसके अलावा अन्य समस्याओं को भी दूर किया जाना चाहिए।

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