आईडी-पासवर्ड बाहरी व्यक्ति के पास, रिसर्च फेलोशिप की स्वीकृति के लिए शोधार्थियों से वसूले 5-5 हजार

विक्रम विश्वविद्यालय में रिश्वत लेकर विद्यार्थियों का काम करने का सनसनीखेज मामला सामने आया है। विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने रिसर्च फेलोशिप में रिश्वत लेने के लिए बाहरी व्यक्ति को विश्वविद्यालय के पासवर्ड आैर आईडी तक दे दिए। इस बाहरी व्यक्ति के माध्यम से शोधार्थियों से उनकी रिसर्च फेलोशिप की राशि के फॉर्म स्वीकृत करने के लिए 5 से 10 हजार रुपए वसूल किए।

विश्वविद्यालय में शोध करने वाले विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से रिसर्च फेलोशिप के रूप में राशि प्रदान की जाती है। जूनियर रिसर्च फैलोशिप (जेआरएफ) पर पहले दो साल तक 31 हजार रुपए प्रतिमाह आैर इसके बाद सीनियर रिसर्च फेलोशिप (एसआरएफ) के रूप में 35 हजार रुपए प्रतिमाह की फेलोशिप यूजीसी की ओर से दी जाती है। इसके अलावा राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप (आरजीएनएफ) भी दी जाती है। विश्वविद्यालय में विकास विभाग आैर कम्प्यूटर सेंटर द्वारा इन विद्यार्थियों के फॉर्म को जांचा व ऑनलाइन स्वीकृत कर भेजा जाता है। इसमें मेकर आैर चेकर की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। शोधार्थियों ने यह लिखित शिकायत विश्वविद्यालय प्रशासन को की है कि एक बाहरी व्यक्ति पिछले 7-8 महीनों से उनसे दस्तावेज स्वीकृत करने के नाम पर 5 से 10 हजार रुपए की मांग कर रहा है। रुपए नहीं देने पर उनके फॉर्म निरस्त करने की धमकी दी जाती है। जिसके कारण कई शोधार्थी उसे छह-सात महीने के भीतर प्रतिमाह 5 से 10 रुपए भी प्रति विद्यार्थी के आधार पर दे चुके हैं। अब वह प्रत्येक विद्यार्थियों से अधिक रुपयों की मांग करने लगा, जिसके कारण शोधार्थी अब उसके विरोध में आ गए। इस मामले का खुलासा होने के बाद विश्वविद्यालय में हड़कंप मचा हुआ है।

बड़ा सवाल : नोडल अधिकारी के पास आता हैं अोटीपी फिर उन्हें ही इसकी जानकारी क्यों नहीं?

सद्दाम नाम का व्यक्ति करता वसूली शिकायत की तो बहन ने धमकाया

शोधार्थियों ने बताया सद्दाम मंसूरी नामक व्यक्ति कम्प्यूटर सेंटर में काम करते हुए उनसे रुपयों की वसूली करता है। सद्दाम द्वारा शोधार्थियों को देखकर उनसे रुपयों की डिमांड की जाती थी। कुछ विद्यार्थियों ने रुपयों की मांग करने वाली उसकी कॉल रिकॉर्डिंग भी प्रभारी कुलसचिव को सुनाई। सवाल यह है कि कोई भी बाहरी व्यक्ति बगैर किसी अनुमति के आईडी-पासवर्ड का इस्तेमाल कैसे कर सकता है। उसे ओटीपी कहां से मिलता है। जाहिर है कि इसमें विश्वविद्यालय के कम्प्यूटर सेंटर आैर विकास विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता। इधर सद्दाम के नाम की शिकायत जब शोधार्थियों ने प्रभारी कुलसचिव को की तो एक महिला द्वारा शोधार्थी को मोबाइल पर कॉल करके धमकियां मिली। संबंधित महिला ने सद्दाम की बहन होने के हवाला देते हुए खुद को रिसर्च स्कॉलर बताया आैर शोधार्थी से कहा शिकायत वापस ले लें वरना तेरी चमड़ी उधड़वा दूंगी।

सिस्टम इंजीनियर ने कहा- सद्दाम कौन, नहीं जानता, बाहरी व्यक्ति को नहीं दिया पासवर्ड

जिस लॉगिन आईडी आैर पासवर्ड का इस्तेमाल किया जाता है, वह विवि के कम्प्यूटर सेंटर के सिस्टम इंजीनियर आैर फेलोशिप के नोडल अधिकारी विष्णु सक्सेना के पास है। इन्हीं के पास लॉगिन करने पर ओटीपी आता है। इसी आधार पर फॉर्म को ऑनलाइन स्वीकृत कर यूजीसी को भेजा जाता है लेकिन इसका इस्तेमाल सद्दाम कर रहा था। शोधार्थियों ने आरोप लगाया है कि रुपए नहीं देने पर फॉर्म स्वीकृत नहीं किया जाता है। कम्प्यूटर सेंटर में बैठकर ही सद्दाम काम करता था। नोडल अधिकारी विष्णु सक्सेना से चर्चा की तो उन्होंने कहा सद्दाम कौन है, मैं नहीं जानता। किसी भी बाहरी व्यक्ति को आईडी-पासवर्ड देने का प्रश्न ही नहीं उठता।

सीधी बात

डॉ. डीके बग्गा, प्रभारी कुलसचिव, विवि

विद्यार्थियों से रिसर्च फेलोशिप के नाम पर रुपए लिए, आप क्या कर रहे हैं?

विद्यार्थियों की ओर से ऐसी शिकायत मिली है। उस पर कार्रवाई के लिए पुलिस को पत्र लिख रहे हैं। पुलिस इस मामले की जांच करेगी।

यूजर आईडी आैर पासवर्ड का इस्तेमाल कोई बाहरी व्यक्ति कैसे कर रहा है?

पुलिस जब जांच करेगी तो स्पष्ट हो जाएगा कि यह सब कैसे हुआ आैर कौन-कौन इसमें शामिल है।

पुलिस तो अपनी जांच करेगी, विक्रम विश्वविद्यालय प्रशासन इस मामले में क्या करेगा?

पुलिस की जांच में जो तथ्य सामने आएंगे, उसके आधार पर कार्रवाई होगी, हम भी अपने स्तर पर जांच करवाएंगे।

विक्रम विश्वविद्यालय के दो अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है, उन पर क्या कार्रवाई होगी?

सोमवार को विश्वविद्यालय खुलने पर इस बारे में कुलपति से चर्चा कर उचित निर्णय लिया जाएगा।

Leave a Comment