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मथुरा से रणथंबौर, कोटा होते हुए उज्जैन आए थे भगवान श्रीकृष्ण
उज्जैन। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलदाऊ के साथ गुरुश्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने उज्जैन आए थे। भगवान मथुरा से रणथंबौर, दंडगढ़, कोटा होते हुए उज्जैन पहुंचे थे। शहर के विद्वानों ने पुरातात्विक व साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर भगवान के उज्जैन पहुंचने वाले मार्ग की खोज कर ली है।
अब मध्य प्रदेश शासन इस मार्ग को ‘श्रीकृष्ण गमन पथ’ के रूप में विकसित करने जा रहा है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव ने भोपाल में इसकी घोषणा की है। बता दें इतिहास में जुड़ने वाले इस नए अध्याय पर नईदुनिया ने चार जुलाई 2022 को ही प्रमुखता से खबर प्रकाशित कर दी थी।
पुराविद् डा. रमण सोलंकी ने बताया कि मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव 18 साल पहले ही इस दिशा में काम शुरू कर चुके हैं। उन्होंने श्रीकृष्ण गमन पथ की खोज के लिए पुराविद व साहित्यकार स्व. डा. श्यामसुंदर निगम की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था।
इसमें पुराविद डा.भगवतिलाल राजपुरोहित, पुराविद डा. रमण सोलंकी, साहित्यकार डा. केदारनारायण जोशी के साथ पुरातत्व व साहित्य से जुड़े अनेक विद्वान व शोधार्थी शामिल थे। समिति ने लगातार पुरातत्व व साहित्य प्रमाणों के आधार पर श्रीकृष्ण गमन पथ की खोज की। इन्हीं प्रमाणों के आधार पर विद्वानों ने तय किया कि भगवान श्रीकृष्ण मथुरा से मेहंदीपुर बालाजी, रणथंबौर, दंडगढ़, कोटा के रास्ते छोटे-छोटे गांवों से होते हुए उज्जैन पहुंचे थे।
विद्वानों का मत है कि भगवान श्रीकृष्ण तीन बार उज्जैन आए थे। पहली बार शिक्षा ग्रहण करने, दूसरी बार रुक्मिणी विवाह के लिए तथा तीसरी बार उज्जैन की राजकुमारी मित्रवृंदा से विवाह करने हेतु आए थे। आगे के मार्ग की खोज का कुछ काम शेष है। जल्द ही संपूर्ण पथ गमन को एक सर्किट के रूप में चिह्नित कर लिया जाएगा।
श्रीकृष्ण लीला का साक्षी स्वर्णगिरी पर्वत
गुरुश्रेष्ठ सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करने आए भगवान श्रीकृष्ण सांदीपनि आश्रममें चौंसठ दिन रहे। इस दौरान उन्होंने विद्या अध्ययन के साथ गो सेवा, आश्रम के अन्य शिष्यों की तरह गुरु व गुरुमाता की सेवा की। एक दिन गुरुमाता के आदेश पर भगवान श्रीकृष्ण सुदामा जी के साथ कुरुकुल की भोजनशाला के लिए स्वर्णगिरी पर्वत पर लकड़ियां लेने गए थे। महिदपुर तहसील के ग्राम नारायणा व चिरमिया में आज भी यह स्थान श्रीकृष्ण की लीला का साक्षी है। गिरीराज गोवर्धन की तरह देशभर से भक्त स्वर्णगिरी पर्वत की परिक्रमा करने आते हैं।