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शहर में पहली बार : सेंटपॉल स्कूल के मैनेजर और प्राचार्य सिस्टर को सजा
उज्जैन. सेंटपॉल स्कूल से दो बच्चों को निकाले जाने व न्यायालय के आदेश पर भी दोबारा से प्रवेश नहीं दिए जाने के मामले में कोर्ट ने स्कूल के तत्कालीन मैनेजर मुलामंगलम व प्राचार्य सिस्टर अर्चना को दो-दो माह की सिविल जेल व 10 लाख रुपए की कुर्की वारंट की सजा सुनाई है। न्यायाधीश विवेक जैन ने फैसले में सख्त टिप्पणी करते हुए लिखा कि अगर मैनेजर मुलामंगलम ने अपने नाम के आगे फादर तथा प्रिंसिपल अर्चना ने अपने नाम के आगे सिस्टर शब्द पर जरा भी ध्यान दिया होता, तो संभवत: यह कृत्य नहीं होता। इससे बच्चों का भविष्य भी खराब हुआ और न्यायालय की अवमानना भी हुई। कोर्ट ने स्कूल पर हठधर्मिता तथा न्यायालय के आदेशों से ऊपर होने तक की बात कही। शहर में संभवत: पहली बार कोर्ट ने किसी स्कूल के प्राचार्य और मैनेजर का यह सजा सुनाई है।
कोर्ट ने कहा प्रवेश दो… नहीं माना
स्कूल से बच्चों को निकाले जाने पर फरवरी २०१६ में न्यायाधीश डॉ. सारिका गिरी ने बच्चों को पुन: प्रवेश के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा जारी की थी। स्कूल की ओर से इसे नहीं माना गया। बाद में अप्रैल २०१६ में स्कूली सत्र समाप्त होने पर न्यायाधीश ओंकारनाथ ने पूर्व के आदेश को संशोधित करते हुए दोनों बच्चों को दोबारा से प्रवेश देने को कहा। स्कूल ने इसे भी नहीं माना। अभिभाषक गौतम के मुताबिक स्कूल ने कोर्ट में कहा कि इन्होंने विधिवत आवेदन नहीं दिया, इससे प्रवेश नहीं दिया। कोर्ट को बताया गया प्रवेश फॉर्म स्कूल देता है, लेकिन स्कूल मेें प्रवेश की अनुमति नहीं है तो हम कैसे आवेदन करते।
यह है मामला
सेंटपॉल स्कूल ने वर्ष २०१५ में छात्र देवांश व बहन देविका माहेश्वरी व छात्र वल्लभ विजयवर्गीय को जबरन टीसी देकर निकाल दिया था। मीडिया को अभिभाषक अजयसिंह गौतम व अभिभावक देंवेंद्र माहेश्वरी ने बताया कि यह कहते हुए टीसी दी गई कि अभिभावक द्वारा स्कूल में अव्यवस्था व सीबीएसएई मानकों का पालन नहीं किया जाना है। बाद में देवेंद्र माहेश्वरी ने मिशनरी विद्यालय शोषण मुक्ति पालक संघ बनाया था। इसके माध्यम से बच्चों को निकाले जाने को लेकर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, कलेक्टर व सीबीएसई मुख्यालय तक शिकायत की थी। इसके बाद भी स्कूल की ओर से बच्चों को प्रवेश नहीं दिया गया। इस पर कोर्ट में अभिभावक अनुश्री माहेश्वरी, देवांश, देविका व देवेंद्र माहेश्वरी ने कोर्ट में याचिका दायर की। करीब दो साल चली सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की
विद्यालय एक ऐसा स्थान है जहां अच्छा नागरिक बने। इसकी पहली शर्त है कि व्यक्ति कानून, नियमों और न्यायालय के ओदश का पालन करें। अच्छे नागरिक तैयार करने वाली संस्थान ही स्वयं को कानून से ऊपर समझे और न्यायालय के आदेश की धज्जियां उड़ाएं तो गहन चिंता का विषय है। ऐसे संस्थान कैसे अच्छे नागरिक तैयार करेगा।
स्कूल तथा शिक्षक विद्यार्थियों के लिए आदर्श
स्कूल तथा शिक्षक विद्यार्थियों के लिए आदर्श होते हैं। अगर सेंटपॉल स्कूल में पढ़ रहे हजारों बच्चों ने अपने स्कूल की उक्त हरकत को देखकर उन्हीं की तरह न्यायालय आदेशों के प्रति असम्मान की भावना सीख लिया तो निश्चित ही चिंताजनक स्थिति है।
बचपन में जो घटता है बच्चे उसे जीवन भर याद रखते हैं
बचपन में जो घटता है बच्चे उसे जीवन भर याद रखते हैं। इस प्रकरण में ऐसा ही हुआ है। शिक्षा के मंदिर और मंदिर के देवताओं द्वारा किए गए इस आचरण की कटू यादें बच्चों के मन-मस्तिष्क पर अंकित हो जाएगी। न्यायालय के आदेश के बावजूद भी स्कूल में पढ़ रहे अन्य बच्चे व अभिभावकों के मन में निश्चित रूप से यह भावना कर गई होगी कि स्कूल की ओर से कोई बात गलत लगे तो उनके विरुद्ध वे आवाज न उठाए, अन्यथा उनके विरुद्ध भी ऐसी कार्रवाई को अंजाम दिया जाएगा। गलत के विरुद्ध आवाज न उठा पाने की ऐसी विवशता को भी न्यायालय नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
(जैसा कि अभिभावक और अभिभाषक ने मीडिया को बताया।)
टीसी पर टीप… कोर्ट भी नाराज
स्कूल की ओर से बच्चों को दी गई टीसी में लिखी गई टीप पर भी कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि छोटे बच्चों को निकाल दिया और टीसी पर ऐसा लिख दिया कि उन्हें कहीं प्रवेश नहीं मिले। इससे उनका जीवन बर्बाद कर दिया। अभिभावक देवेंद्र माहेश्वरी के अनुसार टीसी के कारण उन्हें कहीं प्रवेश नहीं मिला और भटकने को मजबूर होना पड़ा।