- भगवान महाकाल को दान में आई अनोखी भेंट! भक्त ने गुप्त दान में चढ़ाई अमेरिकी डॉलर की माला, तीन फीट लंबी माला में है 200 से अधिक अमेरिकन डॉलर के नोट
- भस्म आरती: राजा स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, मस्तक पर हीरा जड़ित त्रिपुण्ड, त्रिनेत्र और चंद्र के साथ भांग-चन्दन किया गया अर्पित
- श्री महाकालेश्वर मंदिर में एंट्री का हाईटेक सिस्टम हुआ लागू, RFID बैंड बांधकर ही श्रद्धालुओं को भस्म आरती में मिलेगा प्रवेश
- कार्तिक पूर्णिमा आज: उज्जैन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, माँ क्षिप्रा में स्नान के साथ करते हैं सिद्धवट पर पिंडदान
- भस्म आरती: भांग, चन्दन और मोतियों से बने त्रिपुण्ड और त्रिनेत्र अर्पित करके किया गया बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार!
52/84 श्री ओंकारेश्वर महादेव
52/84 श्री ओंकारेश्वर महादेव
प्राचीन समय में शिव ने एक दिव्य पुरूष को प्रकट किया। पुरूष ने शिव से पूछा कि वह क्या कार्य करें तो शिव ने कहा तुम अपनी आत्मा का विभाग करो। वह पुरूष शिव की बात को न समझने के कारण चिंता में पड़ गया और उसके शरीर से एक अन्य पुरूष उत्पन्न हुआ, जिसे शिव ने ओंकार का नाम दिया। शिव की आज्ञा से ओंकार ने वेद, देवता, सृष्टि , मनुष्य , ऋषि उत्पन्न किये और शिव के सम्मुख खडा हो गया। शिव ने प्रसन्न होकर ओंकार से कहा कि तुम अब महाकाल वन में जाओं और वहां शूलेश्वर महादेव के पूर्व दिशा में स्थित शिवलिंग का पूजन करों ओंकार वहां पहुंचा और शिवलिंग के दर्शन कर उसमें लीन हो गया। औंकार के शिवलिंग में लीन होने से शिवलिंग ओंकारेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी शिवलिंग का दर्शन कर पूजन करता है उसे सभी तीर्थो काशी यात्रा के समान फल प्राप्त होता है।