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वाहनों के अनुबंध का खेल…:नायब तहसीदार ने एमपी के वाहन का किया अनुबंध, चला रहे आंध्र प्रदेश की गाड़ी
सरकारी विभागों में अपनों के वाहन अटैच करने का खेल अफसर बड़े स्तर पर कर रहे हैं। मामला उज्जैन मुख्यालय पर तैनात नायब तहसीलदार अनिल मौरे और भूमिका जैन के पास अटैच बोलेरो वाहन का है। एपी 27 एजेड 6151 वाहन पिछले दो माह से सड़कों पर दौड़ रहा है, जबकि अनुबंधित वाहन तो एमपी 13 सीई 2293 है। यही नहीं अफसर भी बगैर देखे पिछले दो माह से अनुबंध की राशि उस वाहन के लिए जारी कर रहे हैं, जिसका अनुबंध ही नहीं हुआ।
अप्रैल में नागचंद्रेश्वर टूर एंड ट्रैवल्स से तहसील कार्यालय में वाहन अटैच करने के लिए एमपी 13 सीई 2293 नंबर की गाड़ी का अनुबंध किया गया। तब तहसीलदार सुदीप मीणा थे। अफसरों ने न तो गाड़ी देखी और न ही उसके फिटनेस की जांच कराई। नायब तहसीलदार ने वाहनों से कामकाज शुरू कर दिया, जबकि अनुबंधित वाहन पर तो दूसरा नंबर दर्ज है।
यही नहीं, जब ट्रैवल्स संचालक ने बिल पेश किया तो वह भी वर्तमान नंबर के नाम से बिल बनाया, जिसका तो अनुबंध ही नहीं हुआ था। अफसरों ने बगैर देखे बिल का पैमेंट भी जारी कर दिया। इधर, नायब तहसीलदार का दावा है कि संचालक ने आंध्रप्रदेश से गाड़ी खरीदी थी, नंबर ट्रांसफर होने में समय लगा। इसलिए उसी नंबर से गाड़ी चल रही थी। सवाल उठता है कि अनुबंध किसी और का और वाहन दूसरे नंबर से क्यों चल रहा था।
मामले में जिम्मेदारों का यह कहना
नायब तहसीलदार अनिल मौरे ने कहा- गाड़ी का नंबर ट्रांसफर नहीं हुआ था, इसलिए पुराने नंबर से गाड़ी चल रही थी। अनुबंध किसी और नंबर का और बिल किसी और नंबर से बनने का सवाल किया तो बोले मैं अभी नंबर प्लेट बदल देता हूं।
नागचंद्रेश्वर टूर एंड ट्रैवल्स के संचालक गोविंद झाला के पुत्र ने बताया साहब के कहने पर गाड़ी लगा दी। गाड़ी का नंबर ट्रांसफर हो गया है। बदल देंगे। तहसीलदार राधेश्याम पाटीदार ने कहा मेरे कार्यकाल से पहले मीणाजी ने गाड़ी अटैच की थी। बिल पास आए तो मैंने नायब तहसीलदार को कह दिया था कि यह सही नहीं है। इसका फिर से अनुबंध कराओ। क्यों नहीं हो पाया, मैं दिखवाता हूं।
भास्कर इनसाइट… अनुबंधित वाहनों पर बड़ा खेल, अपने हिसाब से बिल बनाते हैं अफसर
सरकार ने विभागों को वाहन देना लगभग बंद कर दिए हैं। ऐसे में विभागों द्वारा वाहनों को अनुबंधित किया जाता है। इसकी राशि भी अलग-अलग होती है। इसके भी नियम कायदे हैं लेकिन उनका पालन नहीं किया जा रहा है। जिले में 150 से अधिक वाहन अनुबंधित हैं। नियम के मुताबिक विभाग तीन साल से पुराने वाहन अटैच नहीं करता है।
कोई खरीदकर यहां अटैच करता है तो उसकी किस्त ही 14 से 16 हजार रुपए होती है। ऊपर से ड्राइवर और मैंटेनेंस अलग से। जबकि अनुबंध 19 से 23 हजार के बीच किया जाता है। ऐसे में आमदनी से ज्यादा तो खर्चा ही होता है। इसलिए बिलों में हेरफेर की जाती है। वाहन नहीं चलने पर भी दौरे दिखाकर बिल निकाल लिए जाते हैं।