- भस्म आरती: मस्तक पर सूर्य, भांग, चन्दन और त्रिपुण्ड अर्पित कर किया गया बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार!
- भस्म आरती: बाबा महाकाल का राजा स्वरूप में दिव्य श्रृंगार त्रिपुण्ड, भांग, चन्दन अर्पित करके किया गया!
- भस्म आरती: राजा स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, त्रिपुण्ड, त्रिनेत्र, चन्दन और फूलों की माला अर्पित कर किया गया दिव्य श्रृंगार
- बाबा महाकाल की भस्म आरती में शामिल हुए 'गदर 2' के अभिनेता उत्कर्ष शर्मा, लगभग दो घंटे तक महाकाल की भक्ति में दिखे लीन; उत्कर्ष बोले- मेरे लिए बेहद अद्भुत अनुभव!
- भस्म आरती: वैष्णव तिलक, चन्दन का चंद्र, आभूषण अर्पित कर बाबा महाकाल का किया गया गणेश स्वरूप में दिव्य श्रृंगार!
नई सरकार पर होगी महाकुंभ ‘सिंहस्थ’ कराने की जिम्मेदारी
Ujjain News: देश का सबसे बड़ा ‘स्नान पर्व’ सिंहस्थ हर 12 वर्ष बाद उज्जैन में अमृत तुल्य मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के तट पर लगता है।
मध्य प्रदेश में इस चुनावी समर के बाद नई सरकार किसी भी राजनीतिक दल की बने, उसकी प्राथमिकता वर्ष 2028 में धर्मनगरी उज्जैन में लगने वाले महाकुंभ सिंहस्थ को सुख-शांति से निर्विघ्न कराने की होगी। सबसे बड़ी चुनौती मोक्षदायिनी शिप्रा नदी का उद्धार करने की होगी। इस बात का समर्थन सिंहस्थ प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे दिवाकर नातू भी करते हैं। उन्होंने कहा है कि क्षिप्रा नदी उज्जैनवालों के लिए जीवनदायिनी है।
करोड़ों श्रद्धालु इसके जल में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं। इस नदी का जल 12 माह स्वच्छ- शुद्ध रहे, इसकी व्यवस्था होना ही चाहिए। मालूम हो कि देश का सबसे बड़ा ‘स्नान पर्व’ सिंहस्थ हर 12 वर्ष बाद उज्जैन में अमृत तुल्य मोक्षदायिनी शिप्रा नदी के तट पर लगता है, जिसमें दुनियाभर के साधु-संत और श्रद्धालु शिप्रा में स्नान करने आते हैं। पिछली बार महाकुंभ वर्ष 2016 में लगा था, जिसमें आठ करोड़ लोग सम्मिलित हुए थे। इनकी व्यवस्थाओं पर सरकार ने 4500 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
इस बार वर्ष 2028 में 9 अप्रैल से 8 मई तक महाकुंभ लगना है। स्थानीय प्रशासन ने 15 करोड़ लोगों के आने का अनुमान जताया है। इन सभी को शिप्रा नदी के स्वच्छ-शुद्ध जल में स्नान कराना शासन-प्रशासन के लिए अब भी चुनौतीपूर्ण है।
क्योंकि पिछली सरकारे शिप्रा नदी के हरित क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त करने और नदी के जल को आचमन लायक शुद्ध बनाने में प्राय: विफल ही रही है। पिछले दो आम चुनावों में राजनीतिक दलों ने शिप्रा को चुनाव का मुद्दा भी बनाया। सरकार बनने पर योजनाएं बनवाई। कुछ धरातल पर उतारी और कुछ कागजों पर ही उलझाए रखी।
शिप्रा में कान्ह का प्रदूषित पानी मिलने से रोकने को 598 करोड़ रुपये की कान्ह डायवर्शन क्लोज डक्ट परियोजना इसका ताजा उदाहरण है, जो सैद्धांतिक और प्रशासकीय स्वीकृति के 10 महीने बाद भी धरातल पर न उतर पाई। वो योजना, जिसे सिंहस्थ -2052 के वक्त इंदौर एवं सांवरे शहर की आबादी और सीवेज उद्वहन को ध्यान में रख बनाया गया। तय किया था कि देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर का सीवेज युक्त गंदा पानी शिप्रा नदी (स्नान क्षेत्र त्रिवेणी घाट से कालियादेह महल तक) में मिलने से रोकने के लिए त्रिवेणी घाट के समीप पांच मीटर ऊंचा स्टापडेम बनाया जाएगा।
यहां से कालियादेह महल के आगे तक 16.5 किलोमीटर लंबा एवं 4.5 बाय 4.5 मीटर चौड़ा आरसीसी बाक्स बनाकर जमीन पर बिछाया जाएगा। कालियादेह महल के आगे अंतिम 100 मीटर लंबाई में ओपन चैनल का निर्माण किया जाएगा। पर ये परियोजना कानूनी विवाद में ऐसी फंसी की आगे बढ़ ही न पाई।
शिप्रा में पीलिया खाल और भैरवगढ़ नाले का गंदा पानी सीधे मिलने से रोकने के लिए अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) बनाने, 1420-1420 मीटर लंबी दो सीवर इराजिंग मेंस पाइपलाइन बिछाने का काम भी धरातल पर शुरू न हो पाया। जबकि केंद्र सरकार छह महीने पहले ही इस कार्य को कराने के लिए ‘राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन’ अंतर्गत सैद्धांतिक और प्रशासकीय स्वीकृति जारी कर चुकी थी।