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उज्जैन में मोक्षदायिनी शिप्रा का पानी दूषित, श्रद्धालुओं की आस्था आहत
सोमवती अमावस्या का पर्व स्नान करने आए श्रद्धालुओं की आस्था फिर आहत हुई। गंदा और बदबूदार पानी देख लोगों ने नाक सिकोड़कर नदी में डुबकी लगाई। पानी में आक्सीजन स्तर इतना कम हो गया था कि कई मछलियां मर गईं।
मालूम हो कि पड़ोसी इंदौर शहर का सीवेज युक्त पांच क्यूमेक प्रदूषित पानी कान्ह नदी के रूप में उज्जैन आकर शिप्रा नदी (स्नान क्षेत्र) में त्रिवेणी घाट के समीप मिलता है। इससे शिप्रा का समूचा स्वच्छ जल भी दूषित हो जाता है।
ऐसा न हो, इसके लिए साल 2016 में शासन ने 100 करोड़ रुपये खर्च कर राघोपिपल्या गांव से कालियादेह महल के आगे तक भूमिगत पाइपलाइन बिछाकर पानी डायवर्ट करने का प्रयास किया था, मगर ये प्रयास पूरी तरह सफल न हुआ।
नतीजा ये निकला कि वर्षाकाल समाप्त होने के बाद पूरे शीतकाल भी कान्ह का पानी शिप्रा के नहान क्षेत्र में मिलता रहा। ऐसा इस बार भी हो रहा है। दो दिन पहले ही नगर निगम आयुक्त रोशन कुमार सिंह ने लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन यंत्री को शिप्रा में नर्मदा का स्वच्छ पानी छुड़वाकर श्रद्धालुओं को स्नान कराने के निर्देश दिए थे।
मगर कान्ह के पानी का वेग इतना अधिक रहा कि न कच्चा पुल बनवाया जा सका और ना नर्मदा का स्वच्छ पानी छुड़ाने की हिम्मत जुटाई जा सकी। क्योंकि अफसरों ने मान लिया कि स्वच्छ पानी छुड़वाया भी तो पानी गुणवत्ता नहीं सुधरने वाली।
अब मकर संक्रांति का स्नान चुनौती
अगला पर्व स्नान मकर संक्रांति का 14 जनवरी को आएगा। संभव है इस तारीख के पहले प्रशासन पानी का बहाव कम होते देख त्रिवेणी घाट के समीप हर साल की तरह मिट्टी का कच्चा बांध बनाकर पानी रोकने का इंतजाम करे। उल्लेखनीय ये भी है कि ये बांध कितने दिन टिकेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं रहेगी।
भाजपा के संकल्प पत्र में है फिर से ‘शिप्रा’ का जिक्र
भारतीय जनता पार्टी के चुनावी संकल्प पत्र में एक बार फिर उज्जैन और मोक्षदायिनी शिप्रा नदी जिक्र हुआ है। इस बार संकल्प पत्र में लिखा और पढ़ा गया है कि निर्मल एवं अविरल शिप्रा सुनिश्चित करने के लिए शिप्रा रिवर बेसिन अथारिटी बनाएंगे। शिप्रा महोत्सव करेंगे।
नदी के घाटों का नवीनीकरण एवं सुंदरीकरण करेंगे। कुछ ऐसी ही संकल्प पिछले चुनाव में भी लिया था। बीते एक दशक में शिप्रा शुद्धिकरण के नाम पर अरबों रुपये खर्च भी किए, मगर हालात कुछ खास नहीं सुधरे।