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उज्जैन में स्थित है चमत्कारिक गढ़कालिका मंदिर, यहीं से कालिदास के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण हुआ था; पुराणों में भी मिलता है इस मंदिर का वर्णन।
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
धार्मिक नगरी उज्जैन में हरसिद्धि के बाद दूसरा शक्तिपीठ गढ़कालिका मंदिर को माना गया है। दरअसल, पुराणों में उल्लेख मिलता है कि उज्जैन में शिप्रा नदी के तट के पास स्थित भैरव पर्वत पर माता सती के होंठ गिरे थे, इसलिए इस जगह को भी शक्तिपीठ के समकक्ष ही माना जाता है।
गढ़कालिका मंदिर का पुराणों में भी वर्णन मिलता है। मान्यता है कि कालिदास जब से मां गढ़कालिका की उपासना करने लगे तभी से उनके प्रतिभाशाली व्यक्तित्व का निर्माण होने लगा। जिसके बाद उन्होंने कई महाकाव्यों की रचना कर दी और उन्हें महाकवि का दर्जा मिल गया।
बता दें, माता गढ़कालिका की कथा का वर्णन लिंगपुराण में भी मिलता है। जिसके अनुसार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान रामचंद्र जब लंका विजय कर अयोध्या प्रस्थान कर रहे थे, उस वक्त कुछ समय के लिए उन्होंने उज्जैन में रुद्रसागर के तट पर विश्राम किया था। रात्रि के समय मां कालिका अपनी भूख शांत करने के लिए शिकार की खोज में रुद्रसागर के किनारे आ गईं। यहां पर उनका सामना महाबली हनुमान से हो गया। माता ने हनुमान को पकड़ने का प्रयास किया तो हनुमान ने विराट और भयानक रूप धारण कर लिया। हनुमान के इस रूप को देखकर माता भयभीत हो गईं और भागने लगीं। उस वक्त माता का एक अंश गलित होकर गिर गया। माता का जो अंश गिर गया, वही अंश गढ़कालिका के नाम से विख्यात हुआ।
तांत्रिकों की देवी कालिका के इस चमत्कारिक मंदिर की प्राचीनता के विषय में कोई नहीं जानता, फिर भी माना जाता है कि इसकी स्थापना महाभारतकाल में हुई थी, लेकिन मूर्ति सतयुग के काल की है। बाद में इस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा किए जाने का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि देवी गढ़कालिका की कृपा से भक्तों के सभी दुख दूर होते हैं।
बता दें, गढ़कालिका मंदिर में नवरात्र के बाद दशमी पर कपड़े के बनाए गए नरमुंड चढ़ाए जाते हैं। प्रसाद के रूप में दशहरे के दिन नींबू बांटा जाता है। इस मंदिर में तांत्रिक क्रिया के लिए कई तांत्रिक आते हैं। वहीं, नवरात्रि के नौ दिनों में मां कालिका अपने भक्तों को अलग-अलग रूप में दर्शन देती हैं।