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सोमवती अमावस्या 2024: सौभाग्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति का दिन
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को हिंदू धर्म में “सोमवती अमावस्या” के नाम से जाना जाता है। यह दिन धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। वर्ष में यह अमावस्या एक या दो बार ही आती है, और इसे विशेष रूप से शुभ और फलदायी माना जाता है।
बात दें, आज 2024 की आखिरी अमावस्या सोमवार को है। इसलिए इसे सोमवती अमावस्या माना जाता है। सोमवती अमावस्या का सबसे बड़ा महत्व पितरों के तर्पण और पिंडदान से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितरों को तर्पण करने से उनकी आत्मा को मोक्ष मिलता है और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है।
इसके अलावा, स्नान और दान का इस दिन विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान घर में सुख-समृद्धि लाता है। अन्न, वस्त्र, और धन का दान करने से जीवन में खुशहाली आती है और पापों का नाश होता है। सोमवती अमावस्या विवाहित स्त्रियों के लिए भी बेहद खास है। धार्मिक परंपराओं के अनुसार, इस दिन महिलाएं अपने पतियों की दीर्घायु और सुखद जीवन की कामना के लिए व्रत करती हैं।
सोमवती अमावस्या का दिन न केवल भगवान शिव की आराधना के लिए शुभ है, बल्कि इस दिन माता तुलसी की पूजा का भी बड़ा महत्व है। हिंदू धर्म शास्त्रों में तुलसी को पवित्र और पूजनीय माना गया है। तुलसी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है, और इस दिन उनकी पूजा से सुख-समृद्धि और शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
सोमवती अमावस्या से जुड़ी कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार एक ब्राह्मण के घर एक सुंदर और गुणी कन्या थी, लेकिन बावजूद इसके उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन एक साधु ब्राह्मण के घर पहुंचे और कन्या के स्वभाव से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कन्या को लंबी उम्र का वरदान दिया, लेकिन ब्राह्मण ने उनसे पूछा कि उसकी कन्या का विवाह कब होगा?
साधु ने कहा, “कन्या के हाथ में विवाह रेखा नहीं है।” ब्राह्मण ने उपाय पूछा तो साधु ने बताया, “पास के गांव में एक धोबिन रहती है। अगर आपकी कन्या वहां जाकर उसकी सेवा करे और धोबिन खुश होकर उसे अपना सुहाग दे, तो उसकी विवाह रेखा बन सकती है।”
कन्या ने साधु के कहे अनुसार धोबिन के घर जाकर उसकी सेवा शुरू कर दी। वह रोज सुबह सूर्योदय से पहले धोबिन के घर काम करती और चुपचाप लौट आती। धोबिन को लगता कि उसकी बहू घर का सारा काम करती है।
एक दिन धोबिन ने अपनी बहू से कहा, “तुम कितनी अच्छी हो, तुम घर का सारा काम निपटा देती हो।” तब उसकी बहू ने उससे कहा कि ऐसा नहीं है, मैं तो सोती रहती हूं। तब दोनों के मन में सवाल उठा कि आखिर घर का काम कर कौन रहा है? अगले दिन वे दोनों इसका पता लगाने के लिए इंतजार करने लगीं। तभी देखा कि एक कन्या आती है, घर का सारा काम करती है और चुपचाप चली जाती है।
धोबिन ने कन्या से पूछा, “तुम कौन हो और यह सब क्यों कर रही हो?” कन्या ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। इस पर धोबिन को उस पर दया आ गई और उसने सुहाग देने का फैसला किया। अगला दिन सोमवती अमावस्या का दिन था। सोना ने जान लिया था कि अगर उसने कन्या को अपना सुहाग दे दिया तो उसके पति की मृत्यु हो जाएगी, लेकिन फिर भी उसने व्रत किया। वह कन्या के घर गई और उसकी मांग में सिंदूर लगा दिया। जैसे ही उसने सिंदूर लगाया, उसके पति की मृत्यु हो गई। जब सोना घर लौट रही थी, तो उसने पीपल के पेड़ की परिक्रमा की। घर पहुंचते ही उसने देखा कि उसका पति जिंदा है। उसने भगवान का धन्यवाद किया और उसी दिन से सोमवती अमावस्या व्रत की परंपरा शुरू हुई।