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श्रावण सोमवार पर उज्जैन में निकली महाकाल की चतुर्थ सवारी, शिवभक्ति में सराबोर हुई नगरी; मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की प्रेरणा से सवारी में पहली बार पर्यटन स्थलों की झांकियाँ भी हुईं शामिल!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
श्रावण मास के अंतिम सोमवार को उज्जैन नगरी एक बार फिर शिवभक्ति के उल्लास में सराबोर हो उठी, जब राजाधिराज भगवान श्री महाकालेश्वर अपनी पारंपरिक चतुर्थ सवारी के रूप में नगर भ्रमण पर निकले। सायं चार बजे मंदिर प्रांगण से आरंभ हुई यह भव्य शोभायात्रा, शिवभक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का जीवंत पर्व बन गई। शाही ठाठ और दिव्यता से सजी यह सवारी चार पवित्र स्वरूपों में नगरवासियों को दर्शन देती हुई नगर भ्रमण पर निकली।
इस वर्ष की चतुर्थ सवारी में भगवान श्री चंद्रमोलेश्वर पालकी में, श्री मनमहेश गजराज पर, शिवतांडव स्वरूप गरुड़ रथ पर तथा उमा-महेश स्वरूप नंदी पर विराजमान होकर नगरवासियों का कुशलक्षेम जानने निकले। यह सवारी न केवल परंपरा की पुनरावृत्ति थी, बल्कि यह समूचे जनमानस के लिए पुण्य और आध्यात्मिक ऊर्जा का अवसर भी बना। महाकाल मंदिर परिसर स्थित सभामंडप में पूजन की शुरुआत मध्यप्रदेश शासन के परिवहन एवं स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने की, जिसमें शासकीय पुजारी पं. घनश्याम शर्मा ने वैदिक विधि से पूजन संपन्न कराया। इस पावन अनुष्ठान में विधायक सतीश मालवीय, महापौर मुकेश टटवाल सहित अनेक गणमान्य अतिथियों ने भाग लेकर श्री महाकालेश्वर की आरती उतारी और पालकी को कंधा देकर विदा दी।
नगर भ्रमण के दौरान जैसे ही भगवान की पालकी मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंची, सशस्त्र पुलिस बल ने भगवान को सलामी दी, जो परंपरा और सम्मान का अद्भुत संगम था। श्रद्धालुओं की अपार भीड़ सड़कों के दोनों ओर उमड़ पड़ी, जिसने पुष्पवर्षा और शिवनाम के उद्घोष से वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। हर भजनमंडली, हर डमरू की गूंज और हर ‘हर-हर महादेव’ के स्वर ने इस सवारी को एक जीवंत धार्मिक उत्सव का स्वरूप दे दिया।
इस सवारी का मार्ग रामघाट से होकर गुजरा, जहां मां क्षिप्रा के पावन जल से भगवान का अभिषेक किया गया। इसके पश्चात रामानुजकोट, कार्तिक चौक, सत्यानारायण मंदिर, छत्री चौक होते हुए पालकी पुनः मंदिर प्रांगण में विश्राम के लिए पहुंची। इस समूचे आयोजन की एक विशेषता रही जनजातीय लोक कलाओं की प्रभावशाली उपस्थिति, जिसमें धार का भगोरिया नृत्य, छिंदवाड़ा का भारिया भडम नृत्य, सिवनी का गोंड सैला नृत्य और उज्जैन का मटकी लोकनृत्य सम्मिलित रहे। ये दल मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद और जनजातीय लोक कला अकादमी के सहयोग से सवारी के साथ चलते रहे, जिससे यह आयोजन परंपरा के साथ-साथ लोकसंस्कृति का अद्भुत संगम बना।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशा अनुसार इस वर्ष की सवारी में प्रदेश के पर्यटन स्थलों की झांकियों को भी सम्मिलित किया गया। इनमें वन्यजीव पर्यटन के अंतर्गत पन्ना, कान्हा, पेंच और रातापानी टाइगर रिजर्व, धार्मिक पर्यटन में सांदीपनि आश्रम व ओंकारेश्वर स्थित एकात्म धाम, ऐतिहासिक धरोहरों में ग्वालियर और चंदेरी का किला, खजुराहो मंदिर तथा ग्रामीण पर्यटन में ओरछा होम स्टे को प्रदर्शित किया गया।