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महाकाल मंदिर पर छिड़ा बड़ा विवाद, महामंडलेश्वर बनाम पुजारी आमने-सामने: प्रेमानंद पुरी का बयान – “मंदिर हमें सौंपो”, पुजारी बोले : “पहले अपना अखाड़ा संभालो”!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
उज्जैन के श्रीमहाकालेश्वर मंदिर, जो देशभर में आस्था और श्रद्धा का केंद्र माना जाता है, को लेकर एक बार फिर विवाद भड़क उठा है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी ने एक धार्मिक कथा के दौरान कहा कि महाकाल मंदिर से सरकारी नियंत्रण हटाकर उसे महानिर्वाणी अखाड़े को सौंप देना चाहिए। उनके इस बयान का वीडियो सामने आते ही मंदिर के पुजारी समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, और खासकर वरिष्ठ पुजारी महेश शर्मा ने इसे पूरी तरह अस्वीकार कर दिया।
मामला श्रावण महोत्सव के दौरान उठ खड़ा हुआ, जब 10 जुलाई से 4 अगस्त तक उज्जैन के नक्षत्र होटल में महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी की कथा का आयोजन हो रहा था। कथा के दौरान 1 से 4 बजे के सत्र में उन्होंने कहा कि देश के अधिकांश मंदिरों पर सरकार का कब्जा है, जिसे खत्म किया जाना चाहिए। प्रेमानंद पुरी ने दावा किया कि महाकाल मंदिर महानिर्वाणी अखाड़े का हुआ करता था और मध्य प्रदेश सरकार को पत्र लिखकर मंदिर को अखाड़े के सुपुर्द करने की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़े, तो वह स्वयं इस मंदिर की पूरी जिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं।
लेकिन उनका यह बयान महाकाल मंदिर के पुजारियों को नागवार गुजरा। मंदिर के वरिष्ठ पुजारी महेश शर्मा ने कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि प्रशासन बीते 40 वर्षों से मंदिर की व्यवस्था बेहतरीन तरीके से संभाल रहा है। उनके अनुसार, यह कहना कि प्रशासन मंदिर को नहीं संभाल पा रहा, पूरी तरह गलत है। साथ ही उन्होंने प्रेमानंद पुरी के इस दावे को भी खारिज किया कि महाकाल मंदिर महानिर्वाणी अखाड़े का है।
महेश शर्मा ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि मुगल काल से लेकर अंग्रेजी शासन और आज़ादी के बाद तक महाकाल मंदिर की रक्षा और सेवा पुजारियों ने की है। उनका कहना है कि यदि किसी को मंदिर का अधिकार दिया जाना चाहिए, तो वह 16 पुजारी हैं, न कि कोई अखाड़ा। उन्होंने यहां तक कह दिया कि महामंडलेश्वर को पहले अपने अखाड़े में बैठकर ‘शादीशुदा संतों’ को बाहर करना चाहिए और अपने घर की ‘गंदगी’ साफ करनी चाहिए, उसके बाद ही मंदिर की व्यवस्था पर टिप्पणी करनी चाहिए।
इस बयानबाज़ी ने मंदिर परिसर और धार्मिक समुदाय में हलचल मचा दी है। एक ओर महामंडलेश्वर का दावा है कि मंदिर अखाड़ों का हक है, तो दूसरी ओर पुजारी समुदाय का कहना है कि मंदिर आस्था का केंद्र है और इसका प्रबंधन पुजारियों के पास ही रहना चाहिए। फिलहाल, इस पूरे प्रकरण पर प्रशासन ने कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन यह विवाद महाकाल मंदिर की राजनीति और धार्मिक सत्ता संतुलन पर नए सवाल खड़े कर रहा है।