महाकाल मंदिर की संरचना की मजबूती की जांच शुरू, रुड़की से आई CBRI टीम करेगी विस्तृत अध्ययन; मंदिर की नींव से कॉरिडोर तक, हर हिस्से की होगी बारीकी से पड़ताल!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

उज्जैन के विश्वप्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर की प्राचीन और नवीन दोनों संरचनाओं की मजबूती का आकलन करने के लिए केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CBRI), रुड़की की विशेषज्ञ टीम बुधवार को उज्जैन पहुंची। यह टीम तीन दिनों तक मंदिर परिसर में रहकर स्ट्रक्चर का गहन अध्ययन करेगी और निरीक्षण के बाद विस्तृत रिपोर्ट प्रशासन को सौंपेगी।

हर साल होती है जांच

CBRI की टीम पिछले पांच वर्षों से नियमित रूप से महाकाल मंदिर के ढांचे का परीक्षण कर रही है। इस बार भी टीम मंदिर के शिखर, गर्भगृह से लेकर हाल ही में हुए नए निर्माण तक हर हिस्से की बारीकी से जाँच करेगी। उल्लेखनीय है कि इससे पहले 15 अक्टूबर 2024 को भी विशेषज्ञों ने यहां निरीक्षण किया था।

किन बिंदुओं पर होगी जांच?

इमेज में बताए अनुसार, टीम मंदिर की मजबूती को परखने के लिए कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर रही है—

  • मंदिर की दीवारों और शिखर पर लगे पत्थरों का प्रकार और उनकी घनत्व क्षमता

  • हाल ही में हुए नए निर्माण कार्यों में प्रयुक्त सामग्री और पत्थरों की गुणवत्ता

  • मंदिर की नींव की गहराई तथा ऊपरी हिस्सों की स्ट्रक्चरल स्थिति

  • नए निर्माण का असर पुराने हिस्सों पर कितना पड़ रहा है

प्रशासन ने की थी मांग

मंदिर प्रशासक प्रथम कौशिक के मुताबिक, प्रशासन ने इस संबंध में CBRI को पत्र लिखकर निरीक्षण का अनुरोध किया था। इसके बाद टीम उज्जैन पहुंची है और लगातार विभिन्न हिस्सों का तकनीकी अध्ययन कर रही है।

क्यों ज़रूरी है जांच?

महाकाल मंदिर देश-विदेश से आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। हाल के वर्षों में मंदिर परिसर में बड़े पैमाने पर विकास कार्य हुए हैं, जिनमें कॉरिडोर और अन्य संरचनाओं का निर्माण शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए और पुराने निर्माण के संतुलन को समझने और उनकी मजबूती का आंकलन करने के लिए समय-समय पर तकनीकी जांच अनिवार्य है।

रिपोर्ट पर टिकी निगाहें

CBRI की रिपोर्ट आने के बाद मंदिर प्रशासन भविष्य में होने वाले रखरखाव और संरचनात्मक सुधार की दिशा तय करेगा। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि मंदिर जैसे ऐतिहासिक धरोहर स्थलों की सुरक्षा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और वास्तु संरक्षण के लिए भी अहम है।

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