‘कम खर्च, ज़्यादा लाभ’ खेती की अनोखी मिसाल! उज्जैन के राजेश रंगवाल ने सिर्फ दो सिंचाई में तैयार की राजमा की फसल, अब दूसरे किसान भी सीख रहे हैं तरीका

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

उज्जैन जिले की घटिया तहसील के बिछड़ोद खालसा गांव के किसान राजेश रंगवाल ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर किसान खेती की योजना समझदारी और मेहनत से बनाए, तो कम पानी और कम खर्च में भी बेहतरीन पैदावार हासिल की जा सकती है। उन्होंने राजमा की एक ऐसी किस्म अपनाई है जो न केवल सस्ती है, बल्कि खेती का जोखिम भी काफी हद तक कम कर देती है।

 “कम खर्च, ज़्यादा लाभ” वाली खेती का रास्ता

राजेश रंगवाल बताते हैं कि पारंपरिक फसलों के मुकाबले राजमा की खेती में लागत काफी कम आती है। लेकिन उनका उद्देश्य सिर्फ कम खर्च नहीं था, बल्कि वह ऐसी किस्म बोना चाहते थे जिसमें रोग और कीट का खतरा भी कम हो। इसीलिए उन्होंने शोध के बाद उत्तराखंड की ‘चित्रा’ किस्म का राजमा अपनाया।

यह किस्म 350 रुपए किलो के हिसाब से मिलती है। राजेश ने बताया कि एक बीघा खेत में करीब 20 किलो बीज की जरूरत होती है, यानी लगभग 7 हजार रुपए का बीज खर्च आता है। इसके बाद हल्की मजदूरी और प्राकृतिक खाद के साथ खेती पूरी हो जाती है।

प्रति बीघा 13 हजार रुपए तक का फायदा

राजेश के मुताबिक, पारंपरिक राजमा की खेती में पेस्टीसाइड, केमिकल खाद और सिंचाई पर 20 हजार रुपए तक खर्च हो जाता है, जबकि ‘चित्रा’ राजमा में यह खर्च लगभग 7 हजार रुपए तक सीमित रहता है। इस तरह किसान को प्रति बीघा करीब 13 हजार रुपए का सीधा फायदा होता है।

गरड़ खाद ने बढ़ाई मिट्टी की ताकत

राजेश का कहना है कि उन्होंने रासायनिक खाद की जगह गरड़ (गोबर खाद) का उपयोग किया, जो लगभग मुफ्त में गांवों में उपलब्ध हो जाता है। इससे न सिर्फ खर्च घटा बल्कि मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ी।

गरड़ खाद से पौधों को जैविक पोषण मिलता है, मिट्टी में नमी बनी रहती है और बार-बार पानी देने की जरूरत नहीं पड़ती। साथ ही, फसल में रोग और कीट का प्रकोप भी लगभग न के बराबर रहता है।

न मौसम का डर, न जानवरों का खतरा

राजमा की खेती का एक और बड़ा फायदा है कि इसे मवेशी और जंगली जानवर नहीं चरते। गाय या नीलगाय जैसी फसलों को नुकसान पहुंचाने वाली समस्याएं इसमें नहीं होतीं।
राजेश बताते हैं कि कड़ाके की सर्दी में भी राजमा को नुकसान नहीं होता, जिससे यह फसल काफी सुरक्षित मानी जाती है।

दो बार सिंचाई से तैयार होती है फसल

यह फसल कम पानी वाले क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रही है। राजेश ने बताया कि राजमा को सिर्फ दो बार सिंचाई की आवश्यकता होती है और यह 100 से 105 दिन में पूरी तरह तैयार हो जाती है।

एक बीघा से औसतन 4 क्विंटल तक उपज मिल जाती है। वर्तमान बाजार में इसकी कीमत 10 से 15 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक रहती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो जाता है।

आसपास के किसान भी सीखने आने लगे

राजेश रंगवाल के इस प्रयोग को देखकर अब आसपास के गांवों के किसान भी उनसे राजमा की खेती के तरीके सीखने आ रहे हैं। कई किसानों ने बताया कि इससे उनकी लागत कम हुई और मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार आया।

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