कैसे होगा शहर का विकास:यूडीए ने 15 साल तक डेवलपमेंट नहीं किया, पांच योजनाओं की 350 करोड़ की जमीन हाथ से निकली

उज्जैन विकास प्राधिकरण (यूडीए) ने 15 साल तक पांच योजना का डेवलपमेंट नहीं किया। इससे 350 करोड़ की जमीन योजनाओं से मुक्त कर दिया गया। भू-माफियाओं को लाभ पहुंचाने के लिए यूडीए के अफसरों और स्थानीय नेताओं ने उज्जैन से भोपाल तक ऐसी व्यूह रचना रची कि यूडीए अब खाली हाथ है। आवासीय योजनाओं के लिए यूडीए के पास जमीन नहीं बची है। यह पांच योजनाएं आकार लेती तो शहर का समग्र विकास होता और व्यवसायिक गतिविधियां तेज होती तथा लोगों को रोजगार के अवसर मिल पाते। जिन जमीनों को यूडीए ने अपनी योजना में शामिल किया था, उन्हें किसानों ने पहले ही पॉवर देकर भू-माफियाओं के जिम्मे कर दिया था।

जिन्होंने यूडीए और भोपाल के अधिकारियों तथा राजनीतिक लोगों के साथ में सांठगांठ कर जमीनों को योजनाओं से मुक्त करने का रास्ता शासन स्तर पर निकलवाया। यह पूरी स्क्रिप्ट कांग्रेस शासन में लिखी और भाजपा शासन काल में लागू करते हुए भू-माफियाओं को फायदा पहुंचाया गया। योजना से जमीन मुक्त होते ही भू-माफियाओं ने कॉलोनी के नक्शे स्वीकृत करवा डेवलपमेंट शुरू कर दिया। अब यूडीए की प्रस्तावित योजनाओं की जमीनों पर प्राइवेट कॉलोनियों का निर्माण हो रहा है। पांच योजनाएं हाथ से निकलने के बाद अब यूडीए के पास में किसी भी योजना के लिए जमीन तक नहीं बची है।

उज्जैन विकास प्राधिकरण के इतिहास में पहली बार जमीनें योजना से मुक्त की गई

10% कार्य नहीं होने पर जमीन किसानों को लौटाने का नियम लाया गया
प्राधिकरण की योजनाओं में ली जमीन पर 10 प्रतिशत कार्य नहीं होने पर जमीन को वापस किसानों को लौटाने का नियम लाया गया और जिसे आनन-फानन में लागू करते हुए प्राधिकरण की 5 योजनाओं को लैप्स कर दिया। साथ ही योजना में ली गई जमीन वापस किसानों को लौटा दी गई। कांग्रेस शासन काल में इसकी पूरी स्क्रिप्ट लिखी गई और भाजपा शासन काल में इसे लागू करते हुए भू-माफियाओं को फायदा पहुंचाते हुए जमीनों को योजनाओं से मुक्त कर दिया गया।

ये 5 योजनाएं : यूडीए के हाथ से गई, अब प्राधिकरण खाली हाथ
1 : सांवराखेड़ी-जीवनखेड़ी योजना- वर्ष 2007-2008 में सांवराखेड़ी पीएसपी योजना प्रस्तावित की थी। इसके तहत किसानों की करीब 20 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन योजना में शामिल की गई थी।
2 : हक्कानीपुरा योजना- यह योजना आवासीय सह व्यवसायिक प्रस्तावित की गई थी। योजना भी यूडीए बोर्ड से मंजूर हो गई थी और किसानों की सुनवाई भी की जा चुकी थी।
3 : ट्रांसपोर्ट नगर- मेंडिया में ट्रांसपोर्ट नगर के लिए 2008 में योजना लाए थे। सारी प्रकिया के बाद जमीन अधिग्रहण बाकी था कि इस बीच योजना से जमीन को मुक्त कर दिया।
4 : शिप्रा विहार एक्सटेंशन योजना- वर्ष 2021 में शिप्रा विहार में खाली जमीन का उपयोग करने के लिए आवासीय योजना प्रस्तावित की थी। इसमें बड़े प्लाट डेवलप किए जाना थे।
5 : त्रिवेणी विहार एक्सटेंशन- योजना 2012-13 में प्रस्तावित की थी। इसमें गुजरात मॉडल के तहत बड़े प्लाॅट काटे जाने की योजना थी, ताकि यहां बड़ी और कॉर्पोरेट कंपनियां आ सके।

यूडीए प्रशासन जिम्मेदार

इन्हें यह करना था
यूडीए प्रशासन किसानों से समझौते के तहत जमीन लेकर भी अपनी योजनाओं को मूर्तरूप दे सकता था, जिसमें किसानों को डेवलप प्लाॅट देकर भागीदार बना सकता था और समझौते के तहत योजनाओं को धरातल पर उतार सकता था।

यह किया
इंदौर रोड, देवास रोड व आगर रोड आदि जमीन पर यूडीए की 14-15 साल तक योजना में कार्रवाई चलती रही और अचानक नियमों का हवाला देते हुए जमीनों को मुक्त कर दिया गया।

अब इनका यह कहना : संशोधित अधिनियम के चलते योजनाएं लैप्स

विकास प्राधिकरण की योजनाओं में ली गई जमीन पर जीरो या 10 प्रतिशत से कम काम होने की स्थिति में योजनाएं लैप्स हुई है। 18 फरवरी 2020 को संशोधित अधिनियम शासन स्तर पर लागू किया गया था। इसके तहत जमीन किसानों को लौटाने का निर्णय शासन स्तर पर लिया गया था। इसके तहत योजनाएं लैप्स हुई है। -सोजानसिंह रावत, तात्कालीन सीईओ, यूडीए

एक्सपर्ट व्यू जयंत दाभाड़े, रिटायर्ड इंजीनियर

टीएंडसीपी (मप्र नगर तथा ग्राम निवेश) अधिनियम-1973 की धारा 50-1 से लेकर 50-7 तक में जमीन को प्राधिकरण की योजनाओं में शामिल किया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया करीब तीन साल की होती है। किसी भी योजना में ली जमीन को प्राधिकरण को छोड़ने का अधिकार नहीं होता है। राज्य शासन को जरूर योजना में ली गई जमीन को मुक्त करने का अधिकार रहता है। इसमें योजना के तहत ली गई जमीन पर निश्चित समयावधि में कार्य नहीं किए जाने पर योजना शासन स्तर पर लैप्स की जा सकती है।

जानिए कौनसी धारा में क्या प्रक्रिया
धारा 50-1 में आशय का प्रकाशन कर प्राधिकरण संचालक मंडल की अनुमति लेकर जमीनों को योजनाओं में शामिल किया जाता है।
धारा 50-2 में सर्वे नंबर की सूची का प्रकाशन किए जाने के बाद आगे की कार्रवाई की जाती है।
धारा 50-3 में सर्वे नंबर में किसान का नाम, रकबा दर्ज कर दावे-आपत्तियां बुलाई जाती है।
धारा 50-4 कमेटी गठित कर उसके समक्ष जमीन मालिक यानी किसान का पक्ष सुना जाता है।
धारा 50-5 टीएंडसीपी, पीडब्ल्यूडी, पीएचई, बिजली कंपनी व यूडीए सीईओ की समिति आवेदनों का परीक्षण करती है।
धारा 50-6 योजना में जमीन को लेकर गुण-दोष के आधार पर निर्णय लिया जाता है।
धारा 50-7 अंतिम प्रकाशन कर नोटिफिकेशन किया जाता है। उसके बाद भू-अर्जन अधिकारी जमीन का मुआवजा तय करते हैं।

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