सेब की खेती:खाचरौद-रतलाम रोड के गांव रामातलाई में होने लगी सेब की खेती, स्थानीय बाजार और दिल्ली तक हो रही फल की सप्लाय

  • पारंपरिक खेती छोड़ किसान ने हिमाचल से 300 पौधे मंगवाकर एक बीघा में लगाए, दो साल बाद आने लगे फल, बड़नगर के किसान ने भी प्रेरित होकर की शुरुआत

उज्जैन जिले ने फलों के उत्पादन में एक और कदम बढ़ाया है। जिले की खाचरौद तहसील के गांव रामातलाई में सेबफल की खेती भी होने लगी है। यहां के सेबफल स्थानीय मंडी के अलावा दिल्ली तक में सप्लाय हो रहे हैं। जिले में सेबफल की खेती की शुरुआत युवा किसान मधुसूदन धाकड़ ने की है। हार्टिकल्चर से एमएससी करने के बाद धाकड़ चाहते थे कि कुछ नया करे।

उन्होंने उद्यानिकी विभाग के उप संचालक सुभाष श्रीवास्तव से मार्गदर्शन लिया। इच्छा जताई कि वे पारंपरिक खेती को छोड़कर फल की खेती करना चाहते हैं। काफी अध्ययन व रिसर्च के बाद धाकड़ ने सेवफल की खेती करना तय किया। उनकी मेहनत रंग लाने लगी है। खाचरौद-रतलाम रोड के ग्राम रामातलाई में शुरू की गई सेबफल के खेती से वे हर वर्ष एक से डेढ़ लाख रुपए की इनकम पा रहे हैं। ​​​​​​

एक बार 75 हजार लागत आई

धाकड़ ने हिमाचल प्रदेश से दाे साल पहले सेबफल के 300 पौधे मंगवाए थे। प्रति पौधा 150 रुपए में मिला। ये पौधे एक बीघा जमीन में लगाए। खाद व मेहनत मिलाकर प्रति पौधे को लगाने-सींचने में 250 रुपए तक यानी सब मिलाकर सभी पौधों पर खर्च व लागत 75 हजार रुपए आई। दो साल बाद पौधे बढ़े हुए और इनमें फल आने लगे हैं। ये पौधे दो वैरायटी हरमन 99 और अन्ना नाम के हैं। इनमें 45 से 50 डिग्री टेंपरेचर का वातावरण चाहिए होता है। मई-जून में पौधों में फूल आने के बाद जुलाई तक फल आ जाते हैं। पौधे की उम्र 30 से 40 वर्ष है। धाकड़ सेवफल स्थानीय मंडी के अलावा दिल्ली में भी सप्लाय कर एक से डेढ़ लाख रुपए इनकम हर वर्ष ले रहे हैं।

एनएचबी से रेटिंग प्राप्त है धाकड़, तैयार करते नई किस्म

धाकड़ एनएचबी यानी नेशनल हार्टिकल्चर बोर्ड से रेटिंग प्राप्त है। वे स्वयं पौधों की नई-नई किस्म तैयार करते हैं। इसके लिए उन्होंने नर्सरी भी संचालित कर रखी है। धाकड़ का मानना है जिन किसानों के पास भी ज्यादा जमीन नहीं है, वे भी तकनीक व नवाचार करके कम मेहनत व न्यूनतम खर्च में अच्छी इनकम प्राप्त कर सकते हैं। उनकी सेबफल की खेती से प्रेरित होकर बड़नगर के कुछ किसान भी अपने यहां ये पौधे लगाने लगे हैं। धाकड़ सेबफल के अलावा एक किलो वजन वाले एनएमके किस्म के गोल्डन सीताफल व रेड डायमंड जापान किस्म के अमरूद का भी उत्पादन कर रहे हैं।

अन्य किसान भी दिखा रहे हैं रुचि

खाचरौद तहसील के गांव रामातलाई में सेबफल की खेती शुरुआत हुई है। वहां से प्रेरणा लेकर अन्य किसान भी इसमें रुचि दिखा रहे हैं।
सुभाष श्रीवास्तव, उप संचालक, उद्यानिकी

Leave a Comment