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अब सपने जमींदोज:कमाई छोड़िए, मूल भी डूब गया; चुकंदर पर चलाया ट्रैक्टर खेत में सड़ने लगे प्याज
कोरोना का असर खेती-किसानी तक पहुंच गया है। लॉकडाउन 1.0 में किसानों ने जैसे-तैसे अपनी सब्जियां आसपास के गांवों, कस्बों में पहुंचाई। उम्मीद थी कि इस बार अच्छे भाव मिलेंगे। कम से कम गर्मी में, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। लॉकडाउन 2.0 ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सब्जियां खेतों में ही रह गईं। मई की शुरुआत तक इंदौर के साथ उज्जैन की थोक मंडियां चालू थी लेकिन फिर सख्ती के कारण वे भी सिमट गई।
छोटे किसानों के सामने सब्जियां लेकर मंडी में जाना जोखिम से कम नहीं है। ऐसे में वे चाहकर भी सब्जियों को खेतों से खलिहान और बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं। किसान अब अपनी पसीने की कमाई पर ट्रैक्टर चलाने लगे हैं। भास्कर रिपोर्टर ने शहर के आसपास के सब्जी उत्पाद किसानों के हाल जाने। उनका कहना है कि कोरोना का असर इतना होगा, कभी सोचा नहीं था। पहले उसने अस्पताल पहुंचाया अब हमारी सब्जियों को खेत से बाजार पहुंचाने में भी बाधक बन रहा है।
150 क्विंटल चुकंदर आने की उम्मीद थी, सौदा भी हो गया था, लॉकडाउन के कारण लेने वाले ही नहीं आए
इंदौर रोड के गांव रामवासा में किसान दिलीप सिंह ने इस बार चुकंदर बोए थे। उनका कहना है दो बीघा में 20 हजार रुपए खर्च हुए थे। उम्मीद थी कि 10 रुपए किलो में बिकेंगे। कम से कम 150 क्विंटल की पैदावार होगी। पैदावार भी उम्मीद के मुताबिक हुई। अप्रैल में उज्जैन के एक व्यापारी से सौदा हो गया। तय था कि मई में उपज तैयार होते ही ले जाएंगे। इस बीच लॉकडाउन सख्त हो गया। सौदा रद्द हुआ तो उपज को खेत से निकालने और मंडी पहुंचाने का संकट खड़ा हो गया। खेत में पत्ते सूखने लगे। चुकंदर खेत में खराब होने लगे। इस पर ट्रैक्टर चलवा दिया है।
पहले लोग आते थे, अब हमें देने जाना पड़ रहा
उन्नत किसान अमरसिंह बताते हैं कि रामवासा और उसके आसपास के किसान सब्जी उत्पादन के लिए अलग पहचान बना चुके हैं। लॉकडाउन के बीच कम से कम सब्जियों की खरीद-फरोख्त तो होगी। यही सोचकर तीन बीघा में 30 हजार खर्च कर भिंडी लगाई थी। हर साल कम से कम 7 से 8 रुपए किलो भाव मिल जाते हैं। लोग खुद खेत पर आकर खरीदी करते हैं। फसल तैयार होने के पहले ही लोगों की आवाजाही शुरू हो जाती है लेकिन इस बार न हम खुद मंडी पहुंच पा रहे हैं न लोग आ रहे हैं। आसपास के गांव में आखिर कितनी सब्जियां बेचें।
जालियां नहीं मिलने से खेत में सड़ने लगे प्याज
अंबोदिया गंभीर डेम के पास बड़वाई गांव। यहां के किसान जगदीश आंजना ने प्याज की फसल लगाई थी। उपज उम्मीद के मुताबिक हुई। उसे खेत से खलिहान तक पहुंचाने का काम अंतिम दौर में चल रहा है। उनका कहना है कि ब्याज को सहेजने के लिए बारदान के अलावा जाली की भी जरूरत है। बाजार बंद हैं। ऐसे में बड़ी मात्रा में प्याज खेतों में ही सड़ने लगे हैं। इस तरह के प्याज घर या गोदाम तक ले भी गए तो उन्हें लंबे समय तक सहेजकर नहीं रखा जा सकता है। जरूरतमंदों से भी पूछ लिया। आखिर इन्हें खेत में छोड़ने के सिवाए कोई चारा नहीं रहा।
किसानों की परेशानी
- प्याज उत्पादक को जालियां, बारदान, पंखे नहीं मिल रहे।
- कीटनाशक की दुकानें बंद होने से ककड़ी, गिलकी, बैंगन, भिंडी पर छिड़काव नहीं हो रहा।
- खरीफ की तैयारी के लिए खाद की जरूरत है, दुकानें बंद होने से नहीं मिल रहा।
- खेरची मंडियां बंद होने से किसानों को अच्छे दाम नहीं मिल रहे।