इस शिवलिंग में दाढ़ी वाले रूप में दर्शन देते हैं महादेव, पूजन से अक्षय पुण्य की होती है प्राप्ति

भगवान शिव की नगरी उज्जैन मे कई शिवलिंग हैं, जिनका स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है। कथाएं बताती हैं कि भगवान शिव ने अपने ऐसे भक्तों पर भी कृपा की है, जिन्हें जन्म के समय से ही माता-पिता ने उन्हें राजपाट जाने के भय के कारण त्याग दिया था, लेकिन भगवान शिव पर उनकी ऐसी कृपा हुई थी, उन्होंने ना सिर्फ निर्भीकता के साथ इसी राज्य में राज्य किया बल्कि उनकी प्रभु भक्ति से खुश होकर भगवान शिव ने अपने शिवलिंग को भी भक्त का ही नाम दिया, जिसके कारण यह शिवलिंग भक्त के नाम पर ही पहचाना जाने लगा।
हम बात कर रहे है 84 महादेव में 46वां स्थान रखने वाले श्री वीरेश्वर महादेव की जो कि ढाबा रोड पर सत्यनारायण मंदिर के पास स्थित हैं। इस मंदिर में भगवान श्री वीरेश्वर महादेव का शिवलिंग भूरे और लाल रंग के पाषण से बना हुआ है। इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि शिवलिंग पर भगवान का चेहरा यानी कि आंख, मुख, नाक और दाढ़ी स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।

मंदिर के पुजारी पंडित विनायक दवे बताते हैं कि श्री वीरेश्वर महादेव के दर्शन पूजन का एक अलग विधान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्री वीरेश्वर सर्वसंकटों का नाश करते हैं और इस मंदिर में किए गए पूजन-अर्चन और दान का फल सदा अक्षय रहता है। इसका कभी भी नाश नहीं होता है। मंदिर में भगवान श्री वीरेश्वर महादेव के शिवलिंग के साथ ही श्री गणेश जी, कार्तिक स्वामी, माता पार्वती और नंदी जी की प्रतिमा के साथ ही एक और शिव पार्वती तो दूसरी और मांगलिक गणेश की प्रतिमा विराजमान है। जिनके बारे मे कहा जाता है कि जिन लोगों का विवाह नहीं होता या फिर संतान प्राप्ति में उन्हें कोई बाधा आती है तो मंदिर में उल्टा स्वास्तिक बनाने से ऐसे भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। इस मंदिर के प्रांगण में मनसा देवी की प्रतिमा भी विराजमान हैं जो कि अत्यंत चमत्कारी है।

भक्त वीर के नाम से प्रसिद्ध हुए वीरेश्वर महादेव
स्कंद पुराण में इस बात का उल्लेख है कि वर्षों पूर्व अमित्रजीत नाम के एक राजा थे जो कि अत्यंत सेवाभावी थे। एक बार नारद मुनि उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें बताया कि माता विद्याधर की कन्या मलयबंधिनी को कंकाल केतु नाम का एक दानव उठाकर ले गया है, आप वहां जाइए और उस कन्या को कंकाल केतु से बचाने के बाद उसी से विवाह कर विश्व का कल्याण करें। नारद जी द्वारा कही गई इस बात के बाद राजा अमित्रजीत ने कंकाल केतु राक्षस से युद्ध किया और उसका वध कर दिया। जिसके बाद राजा रानी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी लेकिन रानी को मंत्री ने इस बात का भय बताया कि यह पुत्र मूल में पैदा हुआ है, तुम इसका त्याग कर दो वरना यह पुत्र ना सिर्फ राजा को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि इससे तुम्हारा सर्वत्र नाश हो जाएगा। मंत्री की बात सुनकर रानी ने पुत्र को विकटा देवी के मंदिर में रख दिया। उस समय आकाश से योगिनिया कहीं जा रही थी, जिन्होंने अबोध बालक को देखा तो वे इसे अपने साथ ले गई। जिन्होंने 16 वर्षों तक इस बालक का पालन पोषण किया।
स्कंद पुराण में इस बात का उल्लेख है कि वर्षों पूर्व अमित्रजीत नाम के एक राजा थे जो कि अत्यंत सेवाभावी थे। एक बार नारद मुनि उनसे मिलने पहुंचे और उन्हें बताया कि माता विद्याधर की कन्या मलयबंधिनी को कंकाल केतु नाम का एक दानव उठाकर ले गया है, आप वहां जाइए और उस कन्या को कंकाल केतु से बचाने के बाद उसी से विवाह कर विश्व का कल्याण करें। नारद जी द्वारा कही गई इस बात के बाद राजा अमित्रजीत ने कंकाल केतु राक्षस से युद्ध किया और उसका वध कर दिया। जिसके बाद राजा रानी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी लेकिन रानी को मंत्री ने इस बात का भय बताया कि यह पुत्र मूल में पैदा हुआ है, तुम इसका त्याग कर दो वरना यह पुत्र ना सिर्फ राजा को नुकसान पहुंचाएगा बल्कि इससे तुम्हारा सर्वत्र नाश हो जाएगा। मंत्री की बात सुनकर रानी ने पुत्र को विकटा देवी के मंदिर में रख दिया। उस समय आकाश से योगिनिया कहीं जा रही थी, जिन्होंने अबोध बालक को देखा तो वे इसे अपने साथ ले गई। जिन्होंने 16 वर्षों तक इस बालक का पालन पोषण किया।

कुछ वर्षों बाद जब वीर नाम का यह राजकुमार युवावस्था में पहुंचा तो उसने महाकाल वन पहुंचकर इसी शिवलिंग का पूजन अर्चन किया। वीर की तपस्या इतनी कठोर थी कि भगवान शिव ज्योति रूप में प्रकट हुए और उन्होंने वीर के सभी दोषों को दूर कर अपने शिवलिंग को भक्त वीर का नाम दिया, जिससे यह शिवलिंग वीरेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। भगवान वीरेश्वर की ही कृपा थी कि जिस पुत्र को माता-पिता और राज्य के सर्वत्र नाश का कारण बताया जा रहा था। उसी वीर ने वर्षों तक सुशासन के साथ राज्य किया। ऐसी मान्यता है कि वीरेश्वर महादेव का पूजन-अर्चन और दर्शन करने मात्र से सभी पुण्य अक्षय हो जाते हैं और इनका कभी नाश नहीं होता है।