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उज्जैन:अब खत्म हो जाएंगे महापौर के विशेषाधिकार
भोपाल में आज कमलनाथ कैबिनेट की बैठक हुई. इसमें नगरीय निकाय एक्ट में बदलाव के फैसले पर कैबिनेट ने मोहर लगा दी. इस बदलाव के बाद प्रदेश में महापौर और अध्यक्ष का चुनाव सीधे ना होकर अप्रत्यक्ष तरीके से होगा. यानि जनता सीधे महापौर को नहीं चुन पाएगी. पार्षदों के ज़रिए महापौर और अध्यक्ष चुने जाएंगे.
उज्जैन:राज्य सरकार प्रदेश में नगरीय निकायों में अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर और अध्यक्ष के चुनाव की व्यवस्था लागू करने के लिये नगर पालिक निगम अधिनियम में संशोधन पास हो गया है .यह प्रस्ताव कैबिनेट में पास हुआ . अब वर्तमान में महापौर को मिले विशेषाधिकार खत्म हो जाएंगे। साथ ही एक ही कार्यकाल में अनेक महापौर भी हो सकते हैं। हालांकि इस प्रणाली से पार्षदों के अधिकार बढ़ जाएंगे।
अभी यह है नगर निगम की व्यवस्था
वर्तमान में नगर निगम के महापौर का निर्वाचन प्रत्यक्ष प्रणाली से जनता द्वारा किया जाता है। इसी दौरान पार्षदों का चुनाव भी होता है। नगर निगम अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से पार्षदों द्वारा किया जाता है। हालांकि जिस दल के पार्षदों की संख्या अधिक होती है अध्यक्ष भी उसी दल का निर्वाचित होता है।
वर्तमान में उज्जैन नगर पालिक निगम में भाजपा महापौर जनता द्वारा चुनकर आईं हैं, जबकि कुल 54 वार्डों से भाजपा के पार्षद सबसे अधिक संख्या में चुनकर आये और उनके द्वारा नगर निगम अध्यक्ष का चयन किया गया है। यहां महापौर को अपनी परिषद मेयर इन काउंसिल के 10 सदस्यों को चुनने का अधिकार है।
इसमें 10 समितियां होती हैं और नगर निगम से जुड़े सभी विभाग इन समितियों में समाहित होती हैं। शासन की अनेक योजना जो नगर निगमों के माध्यम से लागू की जाती हैं उनके निर्णय मेयर इन काउंसिल से स्वीकृत हो जाते हैं, उन्हें परिषद तक लाने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। यह व्यवस्था पिछले 20 वर्षों से चली आ रही है।
20 वर्ष पहले यह थी व्यवस्था
नगर निगम में 20 वर्ष पहले महापौर, उप महापौर, पार्षदों के चयन की व्यवस्था पूरी तरह अप्रत्यक्ष थी। नगर निगम निर्वाचन के दौरान जनता द्वारा पार्षदों का निर्वाचन किया जाता था। जनता द्वारा चुने गये पार्षद अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चयन करते थे। इस दौरान मेयर इन काउंसिल नहीं होती थी। स्थायी समिति पार्षदों द्वारा बनाई जाती थी इसके संचालन के लिये उपमहापौर का निर्वाचन होता था। उप महापौर ही नगर निगम अध्यक्ष का दायित्व भी निभाते थे। इस व्यवस्था में महापौर की शक्तियां सीमित होती थीं। पार्षदों के पास अधिकार होता था कि यदि महापौर द्वारा ठीक से काम नहीं किया जाता तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर दूसरे महापौर का चयन कर सकते थे।
एक ही कार्यकाल में हुए थे 3 महापौर
वर्ष 1995 में अप्रत्यक्ष प्रणाली से पार्षदों द्वारा महापौर और उपमहापौर का निर्वाचन नगर निगम उज्जैन में किया गया था। इस दौरान एक ही कार्यकाल में इंदिरा त्रिवेदी, शीला क्षत्रिय और अंजु भार्गव 3 महापौर हुए थे।
एमआईसी की स्थान पर बन सकती है स्थायी समिति
नगर निगम अधिनियम के अंतर्गत वर्तमान में महापौर के पास मेयर इन काउंसिल सदस्य चुनने से लेकर अन्य विशेषाधिकार प्राप्त हैं। यदि राज्य शासन द्वारा अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर, अध्यक्ष चयन का प्रस्ताव पास किया जाता है तो महापौर के अधिकार कम होने के साथ ही मेयर इन काउंसिल के स्थान पर स्थायी समिति का गठन, उपमहापौर पद का सृजन हो सकता है।
शासन का स्वागत योग्य कदम
वर्तमान प्रणाली से महापौर के निर्वाचन में देखा गया है कि जनता द्वारा चुने गए महापौर मनमानी करते है। जनता से उनका सीधा संवाद नहीं होता। पार्षदों के अधिकार भी कम है। अब पार्षदों के अधिकार बढ़ेगे और वार्डों के विकास भी तेजी से होंगे।
रवि राय, पूर्व पार्षद