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उज्जैन में छोटी सी बात पर युवा चुन रहे मौत की डगर
उज्जैन. भागती-दौड़ती जिंदगी में युवा अब खुद से ही तालमेल नहीं बैठा पा रहे हैं। घर पर किसी ने टोका, जीवन में सफलता नहीं मिली या कोई छोटी-सी बात हुई तो लोग अपनी जिदंगी को दांव पर लगा रहे हैं। बगैर यह कुछ सोचे-समझे कि उनके आत्महत्या करने के बाद परिजनों पर क्या गुजरेगी। जिले में इन दिनों आत्महत्या के मामलों तेजी से इजाफा हुआ है। अमूमन दो दिन में कहीं न कहीं एक व्यक्ति अपनी जिदंगी को खत्म कर रहा है। इनमें भी सबसे ज्यादा संख्या युवाओं की है। पुलिस अधिकारी बता रहे हैं कि पिछले आठ महीने में आत्महत्या से जुड़े 250 प्रकरण सामने आ चुके हैं। इनमें कई मामलों में छोटी-छोटी बातों पर लोगों ने अनमोल जिंदगी को खत्म कर दिया।
युवाओं में नहीं धैर्य, मौत लगती है आसान
आत्महत्या के प्रकरणों में युवा सबसे आगे हैं। स्कूल में पढ़ रहे हैं या फिर कॉलेज या कोई नौकरी व काम धंधा। अगर असफलता हाथ लगती है तो उससे जूझने की बजाय मौत की आसान राह पकड़ लेते हैं। पुलिस अधिकारी बता रहे हैं कि आत्महत्या के ७० फीसदी मामलों में ३५ तक के आयु के लोग रहते हैं। इनमें कुछ काम-धंधे में नुकसान, कर्ज होना, प्रतियोगिता परीक्षा में असफल होना या फिर पारीवारिक कारण व प्रेमप्रसंग के चलते मौत को गले लगा लेते हैं।
यह मामले जिन्होंने चौंकाया
प्रकरण एक
माता-पिता ने स्कूल नहीं जाने पर टोका तो बेटे ने फंदा लगाकर कर ली आत्महत्या
नानाखेड़ा क्षेत्र में ११वीं कक्षा के एक विद्यार्थी ने घर पर गले में फंदा डालकर आत्महत्या कर ली। वजह थी कि माता-पिता ने बेटे से इतना भर पूछा था कि स्कूल क्यों नहीं गए। बेटे को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि जैसे ही पिता पर काम पर गए और मां घर के काम में व्यस्त हो गई, तो घर पहली मंजिल पर जाकर फंदे पर लटककर जान दे दी। देर तक बेटे के बाहर नहीं आने पर जब मां ने देखा तो उसकी मौत हो गई। बेटे के इस कदम से माता-पिता आज भी सकते में हैं कि आखिर उन्होंने ऐसा क्या कह दिया, जिससे बेटे ने इतना बड़ा कदम उठा लिया।
प्रकरण दो
किराना दुकान नहीं चली तो युवक ने जिदंगी ही हार दी
पंवासा क्षेत्र के २२ वर्षीय युवक ने महज इस बात पर आत्महत्या कर ली कि उसके किराना की दुकान नहीं चली। दुकान के कारण उसे महज कुछ हजार रुपए का नुकसान हुआ। युवक इस बात को सहन नहीं कर पाया। नया व्यवसाय खड़ा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और फंदा लगाकर जीवन ही समाप्त कर दिया। परिजन भी हैरान हैं कि इतना बड़ा कदम उठाने से पहले उसने किसी को अपनी व्यथा भी तक बताना उचित नहीं समझा।
प्रकरण तीन
खुद डॉक्टर और बीमारी ठीक नहीं हुई तो आग लगा ली
पिछले दिनों एक डॉक्टर ने खुद को आग लगाकर अपना जीवन समाप्त कर लिया। बताया जा रहा है कि डॉक्टर एक बीमारी से पीडि़त थे। इसी से परेशान होकर उन्होंने आत्मघाती कदम उठा लिया। डॉक्टर ने बीमारी के चलते पूर्व में भी आत्महत्या की कोशिश की थी लेकिन उस समय परिजनों ने बचा लिया। अपनी मनोदशा पर काबू नहीं कर पाए और दोबारा से मौत को गले लगा दिया।
हम बचा सकते हैं जिंदगी, यूं रखे अपनों का ध्यान
– बच्चे पढ़ाई के दौरान चिड़चिड़े हो रहे हैं, उनका परीक्षा परिणाम अपेक्षानुरूप नहीं आया तो लगातार सपंर्क में रहें। उन्हें प्रेरित करें।
– युवा अगर ज्यादा अकेले रहते हैं, परिवार से कम बाते करते हैं तो उनकी गतिविधि पर नजर रखें। उससे बात कर मन की स्थिति जाने।
– अगर चिंतित दिखाई दे, घर में ही रहे या ज्यादातर बाहर समय बिताए। ऐसे लोगों से बातचीत करें।
– किसी व्यवसाय में नुकसान होने या कर्ज जैसी बात सामने आने पर व्यक्ति को सब ठीक होने की सांत्वना के साथ मदद करें।
– आत्महत्या की सोचने वाले की मानसिकता बदल जाती है। वह परिवार से कट कर रहता, अपने में ही डूबा रहता है, भोजन से अरुचि रहती है, मन में निराशा के भाव रहते हैं और बातचीत में दुखी होना जाहिर करते हैं।
इनका कहना
पढाई, प्रेमप्रसंग और कामकाज के तनाव जैसे मुद्दों पर लोग आत्महत्या कर रहे हैं। इनमें भी १८ से ३५ वर्ष आयु के लोग आत्महत्या ज्यादा कर रहे हैं। लोगों को जिंदगी बचाने के लिए सबसे पहले परिवार व दोस्तों की भूमिका महत्वपूर्ण है। परिजनों को अपने बीच रहने वाले व्यक्ति की मानसिकता को समझना होगा और समय रहते उनकी मदद करेंगे तो उनकी जिंदगी बचाई जा सकती है। अगर कहीं पुलिस की मदद भी चाहिए तो हम देने को तैयार है।
– सचिन अतुलकर, एसपी