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क्षिप्रा किनारे सीवरेज कार्य पर अल्प विराम, दो महीने बाद भी नदी में मिलेंगे नाले,क्षिप्रा को गंदे नालों से मुक्त करने का दावा पूरा होने में लंबा समय लगने की आशंका
उज्जैन. कड़े निर्देश, नोटिस और अर्थ दंड लगाने के बावजूद टाटा कंपनी के सीवरेज प्रोजेक्ट कार्य की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं आया है। शहर में तो प्रोजेक्ट की गति खासी धीमी है ही, नदी किनारे बिछाई जा रही सीवर लाइन का भविष्य भी अधर में ही पड़ा है। एेसे में मार्च के बाद क्षिप्रा में गंदे नालों के मिलने पर रोक लग जाएगी, एेसा दावा खोखला साबित हो सकता है । मसलन प्रोजेक्ट के बद्त्तर हाल से यही आशंका है कि दो महीने बाद भी क्षिप्रा में शहर के गंदे नालों का मिलना जारी रहेगा।
क्षिप्रा में नालों को मिलने से रोकने के लिए त्रिवेणी से सुरासा तक नदी किनारे करीब 17.5 किलोमीटर लंबी सीवर लाइन बिछाई जाना है। नदी में मिलने वाले शहर के सभी नालों को उक्त सीवर लाइन बिछने के बाद इससे जोड़ा जाएगा। इसी प्रोजेक्ट के बुते नगर निगम व पीएचई अधिकारियों ने दावा किया था कि मार्च अंत तक कार्य पूरा होने के साथ ही नदी में नालों का मिलना पूरी तरह बंद हो जाएगा। अधिकारियों के दावों से अलग प्रोजेक्ट की हकीकत कुछ और ही है। अभी 17.5 किलोमीटर में से महज करीब 3.5 किलोमीटर लाइन ही बिछ सकी है। मसलन अभी भी करीब 80 फीसदी लाइन बिछाई जाना शेष है जबकि तय लक्ष्य पूरा करने के लिए सिर्फ दो महीने ही शेष हैं। इधर साइड क्लियरेंस की कमी के चलते समय पर लक्ष्य पूरा होना और भी मुश्किल हो गया है।
चार महीने पहले शुरू किया था कार्य
नदी किनारे सीवर लाइन बिछाने का कार्य करीब चार महीने पूर्व शुरू किया गया था। इससे पहले नगरीय विकास एवं आवास मंत्री जयवर्धन सिंह के सामने क्षिप्रा नदी में नाले मिलने का मुद्दा उठाया गया था जिस पर अधिकारियों ने उक्त प्रोजेक्ट का हवाला देते हुए मार्च अंत तक नाले के मिलने पर पूरी तरह रोक का दावा किया गया था। मंत्री ने कार्य को प्राथमिकता से पूरा करने के निर्देश दिए थे। सितंबर में सीवरेज लाइन बिछाने का कार्य शुरू हुआ लेकिन बाद में बारिश और फिर साइड क्लियरेंस की समस्या के चलते अधिकांश समय काम ठप्प पड़ा रहा। अभी भी कई जगह गड्ढे खुदे पड़े हैं लेकिन सीवर लाइन नहीं बिछ सकी है।
पौधों पर नहीं दिया ध्यान, अब उलझा प्रोजेक्ट
क्षिप्रा को प्रवाहमान बनाने के लिए वन विभाग व सामाजिक संगठनों ने सिंहस्थ 2016 से अब तक 80 हजार से अधिक पौधे नदी किनारे लगाए हैं। इसके बावजूद सीवर लाइन बिछाने में इस ओर ध्यान नहीं दिय गया। अब नदी किनारे बिछाई जा रही सीवर लाइन में अधिकांश वह क्षेत्र प्रभावित हो रहा है जहां हजारों पौधे लगे हुए हैं। एेसे में सीवर लाइन बिछाने में इन पौधों के नश्ट होने की स्थिति बन रही है। मोटे आंकलन अनुसार करीब 15 हजार पौधे इसके प्रभाव में है। पौधे शिफ्ट नहीं किए जाने के चलते संस्था रुपांतरण द्वारा न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई है जिसके चलते फिलहाल पौधोंं वाले क्षेत्र में सीवर लाइन बिछाने का कार्य बंद है। कंपनी ने जहां खाली जगह मिली, वहां पाइप लाइन बिछाई या गड्ढे किए हैं। मामले में मार्च में कोर्ट में सुनवाई होना है।
हर बैठक में मिल रही नाराजगी
सीवरेज प्रोजेक्ट धीमी चाल के कारण जगह-जगह शहर खुदा पड़ा है वहीं शहरवासी भी इससे परेशान हो रहे हैं। यही नहीं कई छोटी कंपनियों को पेटी कान्ट्रेक्ट देने के चलते क्वालिटी पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। प्रोजेक्ट की स्थिति इतनी खस्ता है कि लगभग हर समीक्षा बैठक में टाटा कंपनी के प्रतिनिधियों को अधिकारियों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है। हाला में निगमायुक्त रिषी गर्ग द्वारा ली गई बैठक में भी उन्होंने धीमी गति पर नाराजगी जताते हुए कार्य में तेजी लाने के निर्देश दिए थे। कार्य की गति इतनी धीमी है कि नवंबर 2019 तक प्रोजेक्ट पूरा हो जाना चाहिए था लेकिन अभी 400 में से करीब 95 किलोमीटर सीवर लाइन ही बिछ सकी है। इधर सुरासा में बन रहे ट्रीटमेंट प्लांट का कार्य जरूर 75 फीसदी तक हो चुका है।