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खुशियों का ट्रैक:सिंघाड़े पर निर्भर 100 परिवार, ढाई गुना भाड़ा देकर गुजरात भेज रहे थे उपज
दो कहानियां बता रही हैं कि उज्जैन-फतेहाबाद ट्रैक पर ट्रेन बंद होने से जनजीवन कितना प्रभावित हुआ है। भास्कर ने ट्रैक से सटे गांवों में जाकर उन लोगों से चर्चा की। यह इसलिए भी खास है कि उज्जैन-फतेहाबाद के बीच 22 किलोमीटर में गेज परिवर्तन का काम पूरा हो गया है। फरवरी 2014 से पहले इस ट्रैक पर मीटर गेज ट्रेन चलाई जाती थी। चिंतामण और लेकोड़ा स्टेशन नए रूप में आ गए हैं।
रेलवे की जमीन के अलावा 3.59 हेक्टेयर जमीन और अधिगृहीत की है। 240 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट से सबसे ज्यादा उम्मीद यहां के गांव वालों को है। डीआरएम का कहना है कि ट्रेन चलाने के पहले ट्रैक की मजबूती, यात्रियों की सुरक्षा के सभी मानक जांच लिए हैं। बोर्ड की ओर भेजी गई टीम ने भी हर तरह से निरीक्षण कर लिया है। ऐसे में इस ट्रैक पर इसी महीने ट्रेन चलाने की संभावना है।
तालाब नहीं 100 परिवार की रोजी-रोटी…
उज्जैन-फतेहाबाद के बीच लेकोड़ा स्टेशन इसलिए भी खास है कि चिंतामण गणेश स्टेशन के बाद ट्रेन यहीं रुकती है। यहां पर ट्रेन से एक तरफ टंकारिया पंथ गांव तो दूसरी ओर से 400 एकड़ में फैला तालाब दिखाई देता है। गांव के लोगों का कहना है कि इस तालाब से 100 परिवार की रोजी-राेटी चलती है। यहां पर हर साल नवरात्रि में सिंघाड़े की उपज आना शुरू हो जाती है। इसका क्रम दिसंबर तक चलता है।
कहानी नंबर 1
गांव टंकारिया पंथ। घर के बाहर बैठे प्रवीण बाथम। खुश हैं उज्जैन-फतेहाबाद ट्रैक पर इसी महीने से ट्रेन चलाई जा सकती है। उनकी खुशी का एक और कारण है। उन्हें सिंघाड़े गुजरात के अहमदाबाद, वड़ोदरा भेजने के लिए कम भाड़ा चुकाना होगा। वे कहते हैं कि 2014 तक सब ठीक चल रहा था।
छोटी लाइन पर पांच बार ट्रेन चलती थी। तालाब से निकले सिंघाड़े को 60 किलो की बोरी में पैक कर ट्रेन में चढ़ा देते थे। रेलवे की 130 रुपए की बिल्टी कटती थी। ट्रेन बंद हुई तो सड़क मार्ग से परिवहन होने लगा। भाड़ा 300 रुपए हो गया। बाथम उन 100 परिवारों में हैं, जिनके लिए तालाब ही खेत है।
कहानी नंबर 2
रुक्मिणी बाई, लेकोड़ा स्टेशन के सामने रहती हैं। उन्हें उज्जैन जाना है। वे मैजिक का इंतजार कर रही हैं। उन्होंने कहा भले ही छोटी लाइन की ट्रेन चलती थी लेकिन कभी भी उज्जैन-इंदौर आने-जाने में परेशानी नहीं होती थी। सात साल से उज्जैन, इंदौर जाने-आने के लिए सड़क मार्ग पर निर्भर हैं।
पुरुष तो बाइक, कार से चले जाते हैं लेकिन महिलाओं को अकेले जाना हो तो मैजिक का इंतजार करना पड़ता है। सात साल में रिश्तेदार भी यहां आने से कतराने लगे हैं। बहुत जरूरी हुआ तो ही आते हैं। गांव में किसी का निधन हो जाए तो भी सूचना देने के तीन से चार घंटे बाद कोई नजदीक का रिश्तेदार पहुंचा है।
6 साल में नवीनीकरण
- 2014 फरवरी में बंद हुआ था ट्रैक
- 2018 जुलाई में शुरू हुआ था काम
- 04 बड़े और 25 छोटे
- ब्रिज बनाए गए हैं।
- 01 रेल ओवरब्रिज और रेल अंडरब्रिज बनाया जा रहा है।
- 650 खंभे विद्युतीकरण के लिए लगवाए ।
19 दिसंबर 19 को ट्रायल ट्रेन
मीटर गेज को ब्रॉडगेज में बदलने के लिए फरवरी 2014 से ट्रेन संचालन बंद है। उज्जैन-फतेहाबाद 22 किलोमीटर में पटरियां बिछाने का काम पूरा हो गया है। भार वहन क्षमता जांचने के लिए 19 दिसंबर 2019 को उज्जैन के पास शिप्रा से राणाबड़ तक इंजिन चलाया था। ब्राॅडगेज पर 24 कोच की ट्रेन चलाई जाएगी।
20 गांवों को मिलेगी सुविधा
काम पूरा होने के बाद जवासिया, हासामपुरा, बिंद्राजखेड़ा, गोंदिया, लिंबा पिपल्या, लेकोड़ा, राणाबड़, कांकरिया, खेड़ा, चिराखान, सहित 20 गांवों के लोगों को फायदा मिलेगा। गांव के लोगों को इंदौर, धार जाने के लिए ट्रेन का सहारा मिल जाएगा। दूध, मावा, सब्जियां, उपज जैसे गेहूं, चना, सोयाबीन भेज सकेंगे।
दीपावली के पहले इस ट्रैक पर चलाई जा सकती है ट्रेन
उज्जैन-फतेहाबाद ट्रैक पर ब्रॉड गेज का काम पूरा हो गया है। उम्मीद है दीपावली के पहले इस ट्रैक पर यात्री ट्रेन चलाई जा सकती है।
-विनीत कुमार गुप्ता, डीआरएम