चौबीस खंभों के नीचे विराजित हैं मदिरापान करने वाली देवी

ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर से कुछ ही दूरी पर गुदरी चौराहे के पास स्थित प्राचीन चौबीस खंभा माता का मंदिर अनूठी परंपरा के कारण देशभर में प्रसिद्ध है। मंदिर के आसपास क्षेत्र में महाकाल वन हुआ करता था। वन का प्रवेश द्वार यहीं पर था। आज भी काले पत्थरों से निर्मित इस द्वार के दोनों ओर चौबीस खंभे स्थापित हंै। यूं तो द्वार के दोनों ओर सिंदूरी चोले से शृंगारित देवी महामाया और महालाया विराजित हैं लेकिन चौबीस खंभों के नीचे देवी की स्थापना होने से यह चौबीस खंभा देवी के रूप में प्रसिद्ध हुई। मंदिर के पुजारियों ने बताया माता की प्रतिमा मदिरा पान करती हैं। लोग दूर-दूर से अपनी मुराद लेकर यहां आते हैं और मनोकामना पूर्ण होने पर मदिरा का भोग लगाते हैं। तंत्र साधना के लिए भी यह देवी प्रसिद्ध मानी जाती है। वर्षभर ही लोग यहां दर्शन के लिए उमड़ते हैं।

कलेक्टर चढ़ाते हैं मदिरा की धार वर्ष में एक बार शारदीय नवरात्रि की महाष्टमी पर होने वाली सरकारी नगर पूजा चौबीस खंभा मंदिर से शुरू होती है। प्रशासन की आेर से कलेक्टर मंदिर आकर महामाया और महालाया देवी की विशेष पूजा-अर्चना कर मदिरा की धार चढ़ाते हैं।

विक्रमादित्य के समय प्रवेश द्वार अवंतिका के राजा रहे विक्रमादित्य के समय भी चौबीस खंभा द्वार से ही नगर में लोग प्रवेश किया करते थे। द्वार के आसपास सुरक्षा के लिए पत्थरों की दीवार का ऊंचा परकोटा बना था। आज भी द्वार के साथ मंदिर के आसपास परकोटे के अवशेष के रूप में पत्थरों की दीवारें बनी हैं।

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