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तपती दोपहरी में 118 किलोमीटर की पंचक्रोशी यात्रा:33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने निकले श्रद्धालु; जानिए यात्रा का धार्मिक महत्व
मान्यता है कि महाकाल की नगरी उज्जैन की परिक्रमा कर लें तो 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इसी मान्यता के साथ उज्जैन में कोई 2.5 लाख श्रद्धालु तीन दिन से पंचक्रोशी यात्रा में लगातार चल रहे हैं। भरी दुपहरी में तीखी धूप के तेवर भी आस्था के आगे कमजोर है। यात्री पांच दिन में कुल 118 किलोमीटर पैदल चलेंगे। 15 अप्रैल से शुरू हुई यात्रा का समापन 19 अप्रैल को अमावस्या के दिन होगा। ऐसा अनादिकाल से चला आ रहा है।
सबसे पहले तीन दृश्यों के माध्यम से जानते हैं यात्रा किस तरह पूरी हो रही है...
समय : सुबह 5 बजे : अगले पड़ाव के लिए निकलने की तैयारी
पंचक्रोशी यात्री अब अपने अगले पड़ाव करोहन के लिए निकलने की तैयारी कर रहे है। भजन गाते हुए कंडो को जलाकर सुबह की चाय बना रहे हैं। थोड़ी देर बाद अपनी गठरी उठाकर चल पड़ते है। यात्रियों के चेहरे पर एक दिन पहले भीषण गर्मी में पैदल चलने की थकान बिल्कुल नजर नहीं आती।
समय : दोपहर 2 बजे : चिलचिलाती धूप में चले जा रहे हैं
चिलचिलाती धूप में जहां थोड़ी दूर भी पैदल चलना मुश्किल है वहां पर पंचक्रोशी यात्री मस्ती में सिर पर कपडे और अन्य सामान का वजन उठाकर निरंतर चले जा रहे है। सिर पर तेज धूप पड़ रही है। जगह जगह पानी और ठंडक में बैठने का इंतजाम भी है, जहां वे थोड़ी देर रुकते हैं और फिर चल पड़ते हैं।
समय : शाम 6 बजे : पड़ाव स्थल पर दाल-बाटी की तैयारी
यात्री रात्रि विश्राम के पड़ाव करोहन पहुंच चुके हैं। देपालपुर से परिवार के साथ आईं मंजुलता कंडे जलाकर बाटी सेंकने की तैयारी कर रही है। देवास के पास खातेगांव की शोभना बाई सब्जी बनाने में लगी है। रोजाना अमूमन मालवा की प्रसिद्ध दाल बाटी बनाई जाती है। खाने के बाद भजन-कीर्तन का दौर शुरू होगा।
अब, पंचक्रोशी यात्रा का महत्व और उसकी तैयारी समेत तमाम जरूरी बातें
पहले वैशाख महीने का महत्व जान लेते हैं…
स्कंदपुराण में कहा गया है – ‘न माधवसमोमासोन कृतेनयुगंसम्।
अर्थात वैशाख के समान मास नहीं। सतयुग के समान युग नहीं। वेद के समान शास्त्र नहीं। गंगा के समान तीर्थ नहीं। भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय होने के कारण ही वैशाख उनके नाम माधव से जाना जाता है। जिस तरह सूर्य के उदित होने पर अंधकार नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार वैशाख में श्रीहरि की उपासना से ज्ञानोदय होने पर पर अज्ञान का नाश होता है।
पंचक्रोशी यात्रा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
हिंदू धर्मशास्त्रों में पंचक्रोशी यात्रा का बहुत महत्व है। वैशाख मास का महत्व माघ और कार्तिक मास के समान है। इस महीने में दान-पुण्य, स्नान और धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व है। वैशाख मास में स्नान के महत्व का उल्लेख पुराणों में भी है। मान्यता है, जो लोग इस महीने में दान-पुण्य या स्नान नहीं कर पाए, वे इस यात्रा में शामिल होकर या अंतिम पांच दिनों में स्नान कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। यही कारण है कि कई लोग यात्रा के लिए महाकाल की नगरी पहुंचते हैं। हालांकि ये यात्रा कब से शुरू हुई, इसका कोई सटीक उल्लेख नहीं है। फिर भी पंडितों का मानना है कि ये यात्रा अनादिकाल से चली आ रही है।
पंचक्रोशी यात्रा के लिए उज्जैन ही क्यों?
उज्जैन चौकोर आकार में बसा है। भगवान श्री महाकालेश्वर का स्थान मध्य में हैं। इस बिन्दु के अलग-अलग अंतर से शिव मंदिर स्थित हैं, जो द्वारपाल कहलाते हैं। इनमें पूर्व में पिंगलेश्वर, दक्षिण में कायावरोहणेश्वर, पश्चिम में बिल्वकेश्वर, उत्तर दिशा में दुर्देश्वर और नीलकंठेश्वर महादेव स्थित हैं। इन पांचों मंदिरों की दूरी करीब 118 किलोमीटर है। यात्रा के दौरान इन्हीं पांचाें शिव मंदिरों की परिक्रमा कर क्षिप्रा नदी में स्नान करते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार यात्रा के दौरान 33 कोटि देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है।
यात्रा में आने वाले पड़ाव और मंदिर
यात्रा में मुख्य और पहला पड़ाव पूर्व द्वार पर पिंगलेश्वर है। यात्रा में पिंग्लेश्वर, करोहन, अम्बोदिया, जेथल मुख्य पड़ाव हैं। वहीं, उपपड़ाव केडी पैलेस, नलवा, उंडासा होते हैं। कुल चार पड़ाव और तीन उपपड़ाव पार कर यात्रा पूरी होती है। पड़ावों और उपपड़ावों के बीच करीब 6 से 23 किलोमीटर तक की दूरी है। ये यात्रा पांच दिनों की होती है। इस दौरान पूजन-अर्चन कर श्रद्धालु भगवान से आशीर्वाद लेते हैं।
ये तप की यात्रा है..
पंडित राजेश गुरु ने बताया कि यात्रा की शुरुआत नागचंद्रेश्वर मंदिर से होती है। मान्यता है कि यहां नारियल अर्पित करने से यात्रियों को घोड़े जैसा बल मिलता है। उज्जैन में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास है। मनुष्य के जीवन में संभव नहीं कि सभी के दर्शन कर ले। इस नगरी की परिक्रमा करने से सभी देवी देवताओं का आशीर्वाद मिल जाता है। भीषण गर्मी में पैदल चलने से विकार भी दूर होते हैं। ये तप की यात्रा है। बल लौटाकर यात्रा का समापन हो जाता है।
पंचाग में 5 अंकों का महत्व
पंचांग में 5 अंकों का विशेष महत्व है। वार, तिथि, योग, नक्षत्र और करण। ये 5 अंक कहलाते हैं। इनमें से दो विशिष्ट की उपस्थिति भी अनुकूल होने से यात्रा शुभ मानी जाती है। श्रवण नक्षत्र भगवान विष्णु के संरक्षण में है और साध्य योग अपने आप में विशिष्ट की श्रेणी में आता है। यह यात्रा को साधने का अनुक्रम बनाता है। यात्रा का शुभारंभ उत्तम वृष्टि के रूप में सामने आएगा।
खाना, चाय, नाश्ता सब नि:शुल्क
ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि तय तिथि और तारीख से यात्रा प्रारंभ करने पर ही यात्रा का पुण्य लाभ मिलता है। 118 किमी के कठिन रास्ते में पैदल चलना चुनौती से कम नहीं है। यात्रियों के लिए रास्तेभर सामाजिक संगठन, दानदाता और सरकार की ओर से सुविधा मिलती है। रास्ते में यात्रियों को नि:शुल्क भोजन, चाय, आइसक्रीम, फल, जल समेत खाने-पीने की चीजें उपलब्ध कराई जाती हैं। कुछ लोग यात्रियों के रुकने की व्यवस्था भी उपलब्ध करवाते हैं। उज्जैन से करोहन के बीच सिंधी समाज की ओर से भोजन की व्यवस्था की गई है।
यात्रा के बीच आते हैं ये पड़ाव
- नागचंद्रेश्वर से पिंग्लेश्वर के बीच 12 किलोमीटर।
- पिंग्लेश्वर से करोहन कायावरोहणेश्वर के बीच 23 किलोमीटर।
- करोहन कायावरोहणेश्वर से नलवा उपपड़ाव तक 21 किलोमीटर।
- नलवा उप पड़ाव से बिल्वकेश्वर पड़ाव अम्बोदिया तक 6 किलोमीटर।
- अम्बोदिया पड़ाव से कालियादेह उप पड़ाव तक 21 किलोमीटर।
- कालियादेह उपपड़ाव से दुर्देश्वर पड़ाव जैथल तक 7 किलोमीटर।
- दुर्देश्वर से पिंग्लेश्वर होते हुए उंडासा उपपड़ाव तक 16 किलोमीटर।
- उंडासा उप पड़ाव से क्षिप्रा घाट कर्क राज मंदिर उज्जैन तक 12 किलोमीटर का रास्ता तय करना होता है।
पड़ाव पर श्रद्धालुओं के लिए सुविधा
पड़ाव पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रशासन की और से टेंट लगाकर आराम करने की सुविधा दी जाती है। यहां यात्री विश्राम करते हैं। कई यात्री यहां रात बिताते हैं। सुबह दोबारा यात्रा पर निकल पड़ते हैं। यात्रियों के लिए मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है। रास्ते में यात्री भजन-कीर्तन करते हुए चलते हैं।
यात्रियाें का एक्सपीरियंस
पेटलवाद से आए राजाराम आंजना ने बताया कि दूसरी बार यात्रा में शामिल हुआ हूं। कोई थकान नहीं होती है। भगवान महाकाल के आशीर्वाद से चलते रहते हैं। खाना-पीना कुछ भी सामान साथ नहीं लाता। सब कुछ रास्ते में नि:शुल्क मिल जाता है।
वहीं, खिलचीपुर से पांचवी बार यात्रा में शामिल होने आए रमेश पाटीदार ने बताया कि कभी भी थकान नहीं हुई। भगवान के भजन करते हुए चलते रहते हैं। रास्ते का पता ही नहीं चलता। ना पैरों में छाले और ना ही दर्द सिर्फ भगवान के भजन का ध्यान रहता है।