- भस्म आरती: दिव्य रजत मुकुट और चंदन अर्पित करके किया गया बाबा महाकाल का राजा स्वरूप में दिव्य श्रृंगार!
- महाकाल मंदिर के विस्तार के लिए बड़ा कदम, हटाए गए 257 मकान; महाकाल लोक के लिए सवा दो हेक्टेयर जमीन का होगा अधिग्रहण
- भस्म आरती: मस्तक पर भांग, चन्दन, रजत चंद्र और आभूषणों से किया गया बाबा महाकाल का राजा स्वरूप में दिव्य श्रृंगार!
- महाकालेश्वर मंदिर में अब भक्तों को मिलेंगे HD दर्शन, SBI ने दान में दी 2 LED स्क्रीन
- उज्जैन में कला और संस्कृति को मिलेगा नया मंच, 1989.51 लाख रुपये में बनेगा प्रदेश का पहला 1000 सीट वाला ऑडिटोरियम!
पर्यावरण संतुलन में इस पक्षी की अहम भूमिका
नेशनल सेव द ईगल डे आज : परिंदे भी चाहते हैं पक्षीराजन की तरह कोई तो हमारा भी रखवाला बने
उज्जैन. प्राचीन काल से साहस और शक्ति का प्रतीक माना जाने वाला पक्षी बाज का पौराणिक के साथ-साथ वैज्ञानिक महत्व भी है। पर्यावरण संतुलन में सहायक इस पक्षी का रहना बहुत ही जरूरी है। 1200 मीटर की ऊंचाई तक आसमान की सैर करने वाले शिकारी पक्षी बाज के उडऩे की रफ्तार 160 किमी प्रति घंटा है। प्रतिवर्ष 10 जनवरी को नेशनल ईगल सेव डे मनाया जाता है, क्योंकि परिंदे भी चाहते हैं पक्षीराजन की तरह कोई तो हमारा भी रखवाला बने।
पक्षी विशेषज्ञ अनुराग छजलानी ने बताया वे पेशे से एक व्यवसायी हैं, किंतु पक्षियों के लिए हमेशा तत्पर और समर्पित रहते हैं। छजलानी ने बताया कि अमेरिका द्वारा ईगल बचाओ अभियान के अंतर्गत हर साल 10 जनवरी को यह दिवस मनाया जाता है। ईगल शिकार करने वाले बड़े आकार के पक्षी हैं। इनको ऊंचाई पसंद है, यह धरातल की ओर तभी दृष्टिपात करता है, जब इसे कोई शिकार करना होता है। इसकी दृष्टि बड़ी तीव्र होती है और यह धरातल पर विचरण करते हुए अपने शिकार को ऊंचाई से ही देख लेता है। यूरोप, एशिया और अफ्रीका में इसकी ६० से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। ईगल परिवार में कई उप प्रजातियां हैं जैसे बाज, फाल्कन, ऐक्सिपिटर आदि।
ईगल का महत्व
ईगल को रूस, जर्मनी, संयुक्त राज्य आदि देशों में राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना गया है। भारत में इसे गरुड़ की संज्ञा दी गई है तथा पौराणिक वर्णनों में इसे विष्णु का वाहन कहा गया है। संभवत: तेज गति और वीरता के कारण ही यह विष्णुजी का वाहन हो सका है। अन्य देशों में भी पौराणिक इसका वर्णन आता है, जैसे स्कैंडेनेविया में इसे तूफान का देवता माना गया है और बताया गया है कि यह देव स्वर्ग लोक के एक छोर पर बैठकर हवा का झौंका पृथ्वी पर फेंकता है।
कृषि के लिए सहायक
यह बहुत से पक्षियों को समाप्त करने में सहायक है, जो कृषि एवं मनुष्यों को हानि पहुंचाते हैं। साथ ही यह सरीसृप तथा छोटे जीवों को भी समाप्त करता है और इस प्रकार इको सिस्टम में संतुलन बनाए रखने में सहायक है। सांप, छिपकली, चूहों, मछलियों, खरगोश से लेकर मेमनों तक का शिकार करते हैं। ये एक ही घोंसले का उपयोग उम्रभर करते हैं। मादा ईगल 1-3 अंडे देती है और नर बाज भोजन सामग्री इकठ्ठा करते हैं। इनकी गर्दन 270 डिग्री तक घूम सकती है, जिससे शिकार पर हर प्रकार से नजर रखते हैं।
कैसे बचाया जाए
1960 से ईगल की संख्या में बहुत कमी हो गई है। इसका मुख्य कारण मनुष्य द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला डीटीटी रसायन है। वैज्ञानिकों द्वारा पता लगाया गया था कि डीडीटी रसायन द्वारा पक्षियों के अंडों की बाहरी खोल बहुत पतली हो जाती है, जिससे यह बहुत जल्दी टूट जाते हैं और पक्षियों के बच्चे पूरी तरह विकसित नहीं हो पाते, इसी वजह से ईगल की संख्या में दिन-ब-दिन गिरावट आती जा रही है।
ये है उज्जैन के ईगल
क्रेस्टेड सरपेंट ईगल : सांप ही इसका आहार है। बहुत ऊंचाई से ये सांप को देख लेता है और गोता लगाकर हमला करता है। इको सिस्टम में संतुलन बनाने में इनका अहम रोल है। उज्जैन के नौलखी ईको पार्क में यह अक्सर देखा जाता है।
शोर्टटोड स्नेक ईगल : पिंगलेश्वर तालाब पर मंडराते हुए इसे देखा गया है।
हनी बजार्ड : शहद के छत्ते से हनी खाने का शौकीन ये बाज विक्रम विवि कैंपस में देखा जा सकता है।
पेरेग्रिन फाल्कन: तेज गति से हवा में ही छोटे पक्षियों के मारकर गिराना इसकी खासियत है। मताना तालाब के पास खेतों में इसे पिछले साल देखा गया था।
ऑसप्रे : मछलियों को खाने वाला ये बाज गंभीर और पिंगलेश्वर तालाब पर कई बार देखा गया है।