संत समाज की चिंता:धार्मिक नगरी के रूप में हो उज्जैन का विकास, विश्वास में नहीं लिया तो आंदोलन

उज्जैन के चारधाम मंदिर में संत समाज की रविवार को हुई बैठक में उज्जैन को धार्मिक नगरी के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया गया। बैठक में प्रमुख अखाड़ों के संत भी शामिल थे। संतों का कहना था कि प्रशासन उज्जैन को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित कर रहा है। इसमें उज्जैन की आस्था और प्राचीनता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। साधु-संतों को विश्वास में नहीं लिया जा रहा है। निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी शांति स्वरूपानंद ने कहा कि विकास कार्य हों, लेकिन हमारी आस्था को ठेस न पहुंचे। निर्माण कार्य ऐसे हों कि आगामी कई सिंहस्थ महाकुंभ तक चले। उज्जैन की प्राचीनता समाप्त न हो। उन्होंने कहा कि प्रशासन की ओर से अगर संतों को विश्वास में लेकर कार्य नहीं कराए जाएंगे, तो संत समाज आंदोलन को मजबूर होगा।

उन्होंने मांग की है कि महाकाल मंदिर का व्यवसायीकरण किया जा रहा है, इस पर तत्काल रोक लगे। अधिकारी भगवान को अमीर बनाते जा रहे हैं, जबकि भगवान ने तो झूठे फल खाए, 14 वर्ष तक नंगे पांव वन में रहे। बैठक में महानिर्वाणी अखाड़े के संत डॉ. अवधेशपुरी महाराज ने कहा कि संतों की उपेक्षा हो रही है। महाकाल मंदिर ट्रस्ट के पूर्णकालिक अध्यक्ष हो, जो प्रशासनिक अधिकारी न हो। मंदिर का प्रशासक भी रिटायर्ड व्यक्ति हो, जिसका कार्यकाल पांच साल का हो।

तीन घंटे तक चली बैठक में महानिर्वाणी अखाड़े के महंत व महाकाल मंदिर के गादीपति विनीत गिरि महाराज, हनुमत पीठ के विजय शंकर मेहता, मौनी बाबा आश्रम के संत सुमन भाई, आव्हान अखाड़े के आचार्य शेखर, रामानुजकोट के महंत रंगनाथाचार्य सहित कई संत मौजूद थे।

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