- Mahakal Temple: अवैध वसूली के मामले में हुआ चौंकाने वाला खुलासा, एक आरोपी निकला HIV पीड़ित; सालों से मंदिर में कर रहा था काम ...
- महाकाल मंदिर में बड़ा बदलाव! भस्म आरती में शामिल होना अब हुआ आसान, एक दिन पहले मिलेगा भस्म आरती का फॉर्म ...
- भस्म आरती: मंदिर के पट खोलते ही गूंज उठी 'जय श्री महाकाल' की गूंज, बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार कर भस्म अर्पित की गई!
- भस्म आरती: मकर संक्रांति पर बाबा महाकाल का किया गया दिव्य श्रृंगार, तिल्ली के लड्डू से सजा महाकाल का भोग !
- मुख्यमंत्री मोहन यादव का उज्जैन दौरा,कपिला गौ-शाला में गौ-माता मंदिर सेवा स्थल का किया भूमि-पूजन; केंद्रीय जलशक्ति मंत्री श्री सी.आर. पाटिल भी थे मौजूद
34/84 श्री कन्थडेश्वर महादेव
34/84 श्री कन्थडेश्वर महादेव :
वतस्ता नदी के तट पर पांडव नामक एक ब्राम्हण निवास करता था। जातिवालों व उसकी पत्नी ने उसका त्याग कर दिया था। ब्राम्हण के पास प्रेमधारिणी कथा रहती थी। पांडव ने एक गुफा में पुत्र कामना से शिव की तपस्या की। शिव ने प्रसन्न होकर उसे पुत्र प्रदान किया । ब्राम्हण ने ऋषियों की उपस्थिति में पुत्र का यज्ञो पवित संस्कार कराया ओर ऋषियों को उसे दीर्घायु होने का आर्षीवाद देने के लिए कहा। ऋषि वहां से बिना आर्षीवाद दिए चले गए। इस पर ब्राम्हण विलाप करने लगा ओर कहने लगा कि शिव ने उसे पुत्र प्रदान किया है वह अल्पायु केसे हो सकता है। पिता को विलाप करते देख बालक हर्षवर्धन ने संकल्प किया कि वह महेश्वर भगवान रूद्र का पूजन करेगा ओर उनसे चिरायु होने का वरदान लेकर यमराज पर विजय प्राप्त करेगा। हर्षवर्धन ने महाकाल वन में भगवान रूद्र का पूजन कर उन्हे प्रसन्न किया ओर चिरायु होने ओर अंतकाल में शिवगण होने का वरदान प्राप्त किया। हर्षवर्धन के नाम से कंथडेष्वर के नाम से शिवलिंग विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो मनुष्य इस शिवलिंग का दर्शन कर पूजन करता है वह चिरायु होता है।