5/84 श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव

5/84 श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव :

अनादिकल्पेश्वरं देवं पंचमं विद्धि पार्वती।
सर्व पाप हरं नित्यं अनादिर्गीयतेसदा।।

प्रस्तावना : पुराणानुसार श्री रूद्र परमात्मा देवाधिदेव महादेव अनादिकल्पेश्वर महादेव के बारे में माता पार्वती को बताते हैं। वे कहते हैं यह लिंग कल्प से भी पहले प्रकट हुआ है। उस समय अग्नि, सूर्य, पृथ्वी, दिशा, आकाश, वायु, जल,चंद्रग्रह, देवता, असुर, गन्धर्व,पिशाच आदि भी नहीं थे। इसी लिंग से देव, पितृ, ऋषि आदि के वंश उत्पन्न हुए हैं। इस लिंग से ही सारा चर-अचर संसार उत्पन्न हुआ है और इसी में लीन हो जाता है।

पौराणिक आधार : पौराणिक उल्लेख के अनुसार एक बार ब्रम्हा और विष्णु में यह विवाद हो गया कि उनमें बड़ा कौन है। तभी यह आकाशवाणी हुई कि महाकाल वन में कल्पेश्वर नमक लिंग है, उसका आदि या अंत जो जान लेगा वह बड़ा है। यह सुनकर दोनों देव अपनी पूर्ण शक्ति के साथ महाकाल वन पहुंचे और लिंग का आदि तथा अंत खोजने लगे। ब्रम्हा ऊपर की ओर तथा विष्णु नीचे की ओर गए। अथक प्रयासों के बाद भी उन्हें उस लिंग का आदि तथा अंत नहीं दिखा इसलिए यह लिंग अनादिकल्पेश्वर के नाम से प्रसिद्द हुआ।

दर्शन लाभ : ऐसा माना जाता है कि सब तीर्थों में अभिषेक करने से जो पुण्य लाभ होता है उससे भी अधिक पुण्य लाभ अनादिकल्पेश्वर के दर्शन मात्र से होता है। पापों से युक्त दुष्ट मन वाला मनुष्य भी अनादिकल्पेश्वर के दर्शन से पवित्र हो जाता है।

कहां स्थित है : श्री अनादिकल्पेश्वर महादेव मंदिर महाकाल मंदिर परिसर में स्थित है। महाकाल दर्शन को आने वाले लगभग समस्त श्रद्धालु यहां दर्शन कर उपरोक्त दर्शन लाभ लेते हैं।

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