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उज्जैन:चिंता में मजदूर, काम की तलाश में घरों से निकलकर सराय पर पहुंचे
दर्द और बेबसी की दास्तां जिसे सुनकर सबकी आंखों से आंसू निकल आए
यूं बताई अपनी मजबूरी : बोले- बाबूजी दो माह गुजर गये, एक रुपया भी नहीं कमाया, आज से भोजन वितरण भी बंद हो जाएगा, अब घर पर रहेंगे तो परिवार का पेट कैसे भरेंगे…
उज्जैन। लॉकडाउन क्या लगा ऐसे बुरे दिन गुजारना पड़ेंगे सोचा भी नहीं था। दो माह से एक रुपया नहीं कमाया और जो घर में रुपये रखे थे वह भी खत्म हो गये। भोजन वितरण वाले कल आये थे कह गये कि अब भोजन वितरण बंद होगा। सुना था कि निर्माण के काम चालू हो गये हैं इस कारण सुबह से काम की तलाश में सराय तक आ गये। कुछ लोग आये थे जो मजदूरों को साथ ले गये, हम भी लोगों के इंतजार में बैठे हैं कहीं कुछ मजदूरी मिलेगी।
यह बातें डबडबाई आंखों से वह लोग कह रहे थे जिन्हें मजदूर, श्रमिक, बेलदार, हम्माल, गरीब, जरूरतमंद कहा जाता है। इन दिहाड़ी श्रमिकों की सबसे बड़ी परेशानी आने वाले दिनों को लेकर है। लॉकडाउन में एक वक्त का खाना मिल जाता था जिसे परिवार के सदस्य आपस में बांटकर दो वक्त का गुजारा कर लेते थे। जो लोग भोजन बांटने आते थे वह कह गये कि लॉकडाउन खत्म हो गया है, निर्माण व अन्य काम भी चालू हो गये हैं। सभी लोगों को काम मिलेगा अब भोजन वितरण भी बंद कर रहे हैं। यह सुनते ही चिंता और अधिक बढ़ गई क्योंकि घर में राशन खत्म हो चुका है, भोजन के पैकेट भी नहीं मिलेंगे, राशन खरीदने के रुपये भी नहीं हैं इस कारण सुबह होते ही लॉकडाउन से पहले की तरह सराय में आ गये। हम लोग कोरोना संक्रमण से बचने के लिये मुंह पर मास्क लगाकर आये हैं, सुबह कुछ लोग दो पहिया वाहन से मजदूरों की तलाश में आये और करीब 20-25 लोगों को काम पर ले भी गये। हम भी ऐसे ही लोगों का इंतजार कर रहे हैं। यदि मजदूरी मिल जाती है तो शाम के खाने का इंतजाम हो जायेगा नहीं तो रात भूखे ही गुजारना पड़ सकती है, हम तो कम रुपयों में भी मजदूरी कर लेंगे क्योंकि बच्चों के लिये भोजन का इंतजाम करना है।
कैसे गुजरे लॉकडाउन के दिन
यह सवाल किसी तीर से घायल करने जैसा था जिसे सुनकर सराय में खड़े बेलदार और मजदूर भड़क गये, एक व्यक्ति अपनी आपबीती सुनाने लगता तो दूसरा भी साथ में बोल पड़ता जिसका सार सिर्फ यही था कि भगवान के भरोसे भूख प्यास से लड़कर जैसे तैसे जिंदा बच गये, कोई सुध लेने नहीं आया। श्रमिकों की कहानी उन्हीं की जुबानी कुछ इस प्रकार है …
मैं किराये के मकान में 4 बच्चों और पत्नी के साथ रहता हूं। लॉकडाउन लगने के 8 दिन बाद गैस सिलेण्डर खत्म हो गया। दूसरा सिलेण्डर लेने के रुपये नहीं थे। जो रुपये थे उससे थोड़ा-थोड़ा राशन खरीदकर काम चलाया। जब राशन भी खत्म हो गया तो भोजन के पैकेट लेने बाजार में भटके। दिन भर भटकने के बाद जैसे तैसे भोजन के पैकेट जुगाड़ कर घर लाये और बच्चों के साथ भोजन किया। जबकि मदद करने के लिये कोई भी आगे नहीं आया।
-संतोष मालवीय, काजीपुरा
भोजन बांटने वाले कह गये हैं कि अब भोजन वितरण बंद हो जायेगा, घर में राशन भी नहीं है। हमें मुफ्त का भोजन नहीं काम चाहिये। कोरोना बीमारी का भय नहीं है, रात के खाने का इंतजाम करना है। बच्चों को पता है पिता मजदूरी करने गये हैं, शाम को राशन घर लाएंगे। मजदूरों की तलाश में लोग सराय में आ रहे हैं, जरूरत के हिसाब से लोगों को ले गये। मुझे भी काम की तलाश है, रुपये कम भी मिलेंगे तो काम कर लूंगा।
-राकेश वर्मा, शांति नगर