एम्बुलेंस चालक की दुर्घटना में मौत:मुसीबत में फंसी हर जिंदगी वो बचा ले गया, खुद मौत के बाद भी 7 घंटे एंबुलेंस में फंसा

संक्रमण काल में मरीजों को अस्पताल पहुंचाने वाले एम्बुलेंस चालक की दुर्घटना के बाद समय रहते अस्पताल नहीं पहुंचने से मौत हो गई। मामला सलसलाई-गुलाना मार्ग के बीच हुए एक हादसे का है। जानकारी के अनुसार 24 घंटे से लगातार ड्यूटी कर रहे एम्बुलेंस चालक विशाल पिता श्यामलाल जाटव निवासी सारंगपुर गुलाना प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एक मरीज को लेकर सारंगपुर गया था, वहां से लौटते समय यह हादसा हो गया। उसे करीब साढ़े सात घंटे तक उसे मदद नहीं मिली। सुबह राहगीरों व स्थानीय लोगों ने खाईनुमा सड़क किनारे 20 फीट नीचे पड़ी एम्बुलेंस को देख पुलिस को सूचना दी, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। मृतक एम्बुलेंस चालक विशाल के साथी मुकेश मालवीय ने बताया कि विशाल पिछले 24 घंटे से लगातार ड्यूटी पर था।

शनिवार-रविवार की दरमियानी रात वह सारंगपुर अस्पताल में मरीज को छोड़कर गुलाना लौट रहा था पर रास्ते में ही हादसे का शिकार हो गया। विशाल के परिवार में एक डेढ़ साल के बेटे सहित पत्नी और माता-पिता को जब इस हादसे की जानकारी मिली तो उनके पैरे तले जमीन खिसक गई। इधर, रविवार सुबह मुकेश को पुलिस से जानकारी मिलने पर जब वे मौके पर पहुंचे तो विशाल का शव क्षतिग्रस्त एम्बुलेंस में ही फंसा हुआ था। उसके सिर में चोट आई थी, जिसे देखकर अनुमान लगाया गया कि खून बह जाने के कारण उसकी मौत हो गई। समय रहते उसे अस्पताल पहुंचा दिया जाता तो शायद उसकी जान बच जाती।

रात 10.30 बजे तक विशाल मेरे साथ पनवाड़ी में था : मुकेश
एबुलेंस चालक मुकेश मालवीय ने बताया कि विशाल मेरा बहुत अच्छा यार था। हम दोनों एक साथी की बेटी का जन्मदिन था, इसलिए शनिवार रात 10.30 बजे तक पनवाड़ी में साथ ही थे। इसके बाद मैं घर आ गया और विशाल को गुलाना अस्पताल पहुंचना था। वहीं अन्य लोगों ने भी बताया कि विशाल का मोबाइल 2 बजे तक ऑनलाइन पाया गया। इस हिसाब से घटना रात 2 बजे बाद ही गुलाना और बाड़ीगांव के बीच दरगाह के सामने वाले मोड़ पर पुलिया के पास हुई। दुर्घटना की सूचना उसे सुबह 8.30 बजे मिली। विशाल जाटव ने कहा कि यार परमात्मा की कृपा से मकान का काम शुरू हो गया है। मकान बनने के बाद कोई दूसरा काम धंधा देखकर सुकून से रहेंगे। 6000 रुपए प्रतिमाह की नौकरी से गुजारा संभव नहीं है। बेरोजगारी के इस दौर में फिलहाल ताे यही करना है।

मां आंगनवाड़ी में बनाती है रसोई, माता-पिता की जिम्मेदारी थी विशाल पर
विशाल के पिता बुजुर्ग हैं। उनसे कोई काम धंधा नहीं होता और मां द्रोपदीबाई आंगनवाड़ी में रसोई बनाने का काम करती हैं। विशाल के दो बड़े भाई हैं। एक बाहर रहते हैं और दूसरे सारंगपुर में ही मजदूरी करते हैं। माता-पिता की जिम्मेदारी विशाल पर ही थी। विशाल की मौत पर पिता ने बिलखते हुए कहा कि परमात्मा तूने हम बूढ़ों का सहारा ही छीन लिया, उसके बदले मुझे उठा लेता।

मां को टकटकी लगाकर देखता रहा, पत्नी बुलबुल गर्भवती
पिता का साया खो चुका 3 साल का मासूम बेटा स्वराज अपनी बिलखती मां के चेहरे पर टकटकी लगाकर देखता रहा। विशाल की पत्नी बुलबुल अभी गर्भवती हैं। इस तरह से मां बाप बच्चों सहित 5 लोगों की जिम्मेदारी विशाल के सिर पर ही थी। इस परिवार के लिए मानों अब सबकुछ खत्म हो गया है।

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