ये दर्द की इंतेहा है:भाई को मुखाग्नि देने के 4 दिन बाद पिता भी नहीं रहे

संक्रमण काल की सबसे भयावह तस्वीर सोमवार को सामने आई। शहर के शांतिवन में अपने कांधों पर पिता का शव लेकर पहुंची युवती के आंसू पत्थर बन चुके थे। क्योंकि चार दिन पहले ही संक्रमण से लड़ते हुए हारे भाई के शव को मुखाग्नि देने इसी जगह पर अकेली आई थीं। संक्रमण से पूरा परिवार टूटने की यह कहानी शहर के एमएलबी स्कूल में प्रिंसिपल के रूप में अपनी सेवा दे चुके 61 वर्षीय अवधेशकुमार सक्सेना के परिवार की है। जो 15 दिनों पहले अपने छोटे भाई और भतीजे के संक्रमित होने पर इलाज कराने के लिए गुना गए और वहीं से कोरोना की चपेट में आ गए।

पिछले एक सप्ताह में नियंत्रित दिखाई दे रहे संक्रमण ने सोमवार काे मरघट को एक बार फिर से जीवित कर दिया। शहर व आसपास के 6 लोगों का अंतिम संस्कार किया गया। यहां एक अंतिम यात्रा ऐसी आईं, जिसमें महिलाएं ही थीं। यह अंतिम यात्रा प्रिंसिपल सक्सेना की थी। बेजान दिखाई दे रही 24 वर्षीय बेटी तनवी दाह संस्कार की क्रियाओं को निभाते जा रही थी। यहां परिवार का एक भी पुरुष सदस्य मौजूद नहीं था।

पिता और भाई अस्पताल में तो मां को लॉज में किया आइसोलेट, रोजाना दोनों जगह की सेवा

युवती तनवी पर संक्रमण के दर्द की शुरुआत करीब 15-20 दिन पहले शुरू हुई थी। भाई शुभम और पिता अवधेश सक्सेना सहित मां संक्रमित हो गई थीं। चार दिनों पहले 32 वर्षीय बड़े भाई शुभम की सांसें थम गई। इसके बाद भी तनवी भाई की मौत के गम पर पत्थर रख पिता की अस्पताल में तो मां को शाजापुर की एक लॉज के कमरे में आइसोलेट कर सेवा करती रही। पर होनी को अभी तनवी की और कठिन परीक्षा लेनी थी, सोमवार को पिता का भी निधन हो गया। छोटी सी उम्र में पूरे परिवार को बिखरते देखने के बाद परिवार की अन्य महिलाओं को उसकी संक्रमण से लड़ने की हिम्मत ही मरघट तक ले आई।

चाचा गोपालचंद्र और भाई लवली गुना में भर्ती, अंतिम संस्कार के समय सिर्फ महिलाएं ही थी

तनवी के चाचा गोपालचंद्र और चचेरा भाई लवली गुना के अस्पताल में भर्ती हैं। भाई शुभम और पिता की मौत के बाद अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी भी बेटी को निभानी पड़ी। पिता का कार्यक्षेत्र होने के बाद भी यहां न तो कोई परिजन साथ में था, न सगे-संबंधी। शुभम की मौत के समय पत्नी नेहा सक्सेना व दो साल की बेटी देवांशी चेहरा तक नहीं देख सके। ऐसे में शहर के युवा मनीष सोनी और धर्मेंद्र शर्मा ने तनवी की मदद के लिए कदम बढ़ाए, क्योंकि पिता के शव को अकेले शांतिवन तक नहीं ले जा सकती थी। ऐसे में इन युवाओं ने शायद पिछले जन्म के संबंधों को निभाते हुए अंतिम संस्कार की व्यवस्थाएं जुटाई।

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