80 सिटी बसें कबाड़, सड़क पर सिर्फ 10, जनता को सुविधा नहीं मिली, निगम के 2.48 करोड़ बकाया

शहर में पब्लिक टांसपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए 2010 में सिटी बसों का संचालन शुरू किया। 2015 में अर्थ कनेक्ट कंपनी को बसों के संचालन का ठेका दिया गया। कुछ साल उसने बसें चलाई और अब गायब हो गई। इसमें अफसरों की मिलीभगत भी सामने आई।

हाल ही में निगम कमिश्नर अंशुल गुप्ता ने पुराने रिकाॅर्ड खंगाले तो कंपनी पर करीब ढाई करोड़ रुपए रिकवरी निकली। इस संबंध में उन्होंने जिम्मेदार तीन अफसरों डीजीएम, जीएम और एजीएम से स्पष्टीकरण मांगा है कि आखिर अफसरों ने कंपनी पर कार्रवाई क्यों नहीं की।

निगम कमिश्नर के नोटिस से अफसरों में खलबली मची हुई है। भास्कर ने तीनों अफसरों से बात की लेकिन वह इसे सामान्य प्रक्रिया बताते हुए जवाब देने से बचते नजर आए। कमिश्नर ने कारण बताओ नोटिस में स्पष्ट किया कि जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन योजना के तहत संचालित की जा रही सिटी बसों के संचालन में निकाय को आर्थिक हानि के साथ की गई क्षति के संबंध में संबंधित के विरुद्ध भी किसी प्रकार कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई।

ऐसे में शहर में 90 बसें संचालित हो रही थी, जिसमें से अधिकांश निगम के डिपो में कबाड़ में पड़ी है। 10 बसों का ही संचालन हो रहा है। इससे जनता को कोई फायदा नहीं हुआ। अफसरों और कंपनी ने केंद्र सरकार से मिली करोड़ों की राशि में बड़ी गड़बड़ी कर दी।

कंपनी को क्यों नहीं किया ब्लैक लिस्टेड

निगम के तीन अफसरों से पांच बिंदुओं में जवाब मांगा है। नोटिस में स्पष्ट किया कि 2015 में बसों के संचालन का अनुबंधित अर्थ कनेक्ट ट्रांस-वे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी से हुआ था, जिसने निगम को जो राशि जमा कराना थी, वह नहीं की गई।

इसके चलते मात्र 58 लाख रुपए की एफडी राजसात की गई, जबकि निगम को 2 करोड़ 48 लाख रुपए जमा होने थे लेकिन वह जमा नहीं की गई। अफसरों ने इन पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं की जबकि कंपनी को ब्लैक लिस्टेड किया जाना था।

बसों का संचालन उपनगरीय में भी कर रहे थे

  • कंपनी ने विज्ञापन के अधिकार प्राप्त किए थे, उससे जो लाभ प्राप्त हुआ, उसका शुल्क जमा नहीं किया।
  • कंपनी पर नियमानुसार कार्रवाई नहीं की गई। कई बार नियमों को भी बदला गया। इस संबंध में जानकारी बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को नहीं दी गई।
  • बसों का संचालन उपनगरीय किया जा रहा है। जबकि बसों का संचालन शहरी किया जाना प्रस्तावित था। जानकारी के अभाव में अलग से परमिट प्रस्तावित कर प्राप्त किया गया।
  • बैंकों में चालू खाता जीरो प्रतिशत ब्याज दर पर खोले गए। बचत खाता ओपन किया जाता तो निगम को आर्थिक हानि नहीं होती।

ऐसा रहा शहर में सिटी बसों का सफर

  • 2010 में 40 सीएनजी बसों के साथ सिटी बस का प्रोजेक्ट मंजूर। तकनीकी कारण से 39 बसें ही चल पाई।
  • एक साल बाद ऑपरेटर ने घाटे के कारण बस संचालन बंद कर दिया।
  • 2012 में निगम ने 50 डीजल बसें खरीदकर फिर से शहर में तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बसों का संचालन शुरू किया।
  • साल 2013 में इन बसों के संचालन ठेकेदार को सौंपा।
  • यूसीटीएसएल ने 50 डीजल बसों में से 30 बसें शहर में और 20 बसें शहर के बाहर उपनगरीय क्षेत्र में चलाई।
  • नवंबर-2015 तक निर्धारित दर से किराया भी जमा किया, मगर बाद में किराया देना बंद कर दिया।
  • कंपनी ने तर्क दिया कि जब शहर में बस संचालन का टेंडर अनुबंध 4500 रुपए है तो किराया 8400 रुपए क्यों दें?

जिम्मेदारों का जवाब ^मैंने 50 से ज्यादा पत्र लिखे, वेंडर भाग गया था। कार्रवाई के लिए उच्च अधिकारियों को भी लिखा। उन्होंने दिलचस्पी नहीं दिखाई। नोटिस नहीं मिला है, जैसे ही पहुंचेगा जवाब दूंगा। विजय गोयल, डीजीएम, उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड ^नोटिस अभी मिला है, उसका अध्ययन करके जवाब देंगे। अलग-अलग समय की रिकवरी के संबंध में नोटिस दिया है। इससे ज्यादा अभी कुछ बता नहीं सकता। सुनील जैन, जीएम, उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड ^नोटिस, विभागीय प्रक्रिया है। उसका पालन करेंगे। पवन कुमार, एजीएम, उज्जैन सिटी ट्रांसपोर्ट लिमिटेड निगम पर तो मेरे 50 लाख रुपए निकल रहे ^2016 में मेरा टेंडर खत्म हो गया था। कई बार उसे री-न्यूवल करने के लिए कहा लेकिन अफसर कहते रहे कि तुम बस चलाओ। ऐसे दो साल निकल गए। आंकलन सही नहीं, मेरे निगम पर 50 लाख रुपए निकल रहे हैं। बबलू यादव, संचालक अर्थ कनेक्ट कंपनी, उज्जैन तीन अफसरों को नोटिस ^जो उस समय बसों के वेंडर थे, उन्होंने लंबे समय से भुगतान नहीं किया। उसे वसूलने के लिए कार्रवाई की है। इस संबंध में तीन अफसरों को नोटिस जारी किए हैं। अंशुल गुप्ता, निगम आयुक्त

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