उज्जैन में तेजा दशमी की धूम, रंग-बिरंगी छतरियां लेकर तेजाजी महाराज के मंदिरों में पहुंच रहे भक्त; जानिए इसके पीछे की लोक कथा

उज्जैन लाइव , उज्जैन , श्रुति घुरैया:

तेजा दशमी का पर्व हर साल धूमधाम से मनाया जाता है, और इस वर्ष भी 13 सितंबर शुक्रवार को तेजा दशमी का पर्व उत्साह से मनाया जा रहा है। इस दिन, लोग तेजाजी के मंदिरों में जाकर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन वीर तेजाजी के पूजन की परंपरा के साथ ही तेजाजी महाराज के मंदिरों में मेले का भी आयोजन होता है।

आज तेजा दशमी के पर्व पर उज्जैन के तेजाजी मंदिरों में सुबह से ही भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ है। सुबह से ही ढोल-ढमाकों के साथ लोग मंदिर पहुँच रहे हैं, साथ ही मन्नत पूरी होने पर निशान के रूप में रंग-बिरंगी छतरियां चढ़ा रहे हैं। बता दें, मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ और राजस्थान के कई इलाकों में तेजा दशमी की धूम होती है। तेजा दशमी के अवसर पर कई स्थानों में मेले आयोजित किए जाते हैं। इन मेलों में तेजाजी महाराज की सवारी के रूप में शोभायात्रा निकाली जाती है। सैकड़ों की तादाद में श्रद्धालु इन मेलों और तेजाजी महाराज के मंदिरों में आते हैं। तेजा दशमी को लेकर ग्रामीण क्षेत्रों में उत्साह अधिक दिखाई देता है।

तेजाजी महाराज कौन थे

वीर तेजाजी महाराज का जन्म नागौर जिले के खड़नाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ल चतुर्दशी संवत् 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। बताया जाता है कि तेजाजी के माता-पिता को संतान नहीं हो रही थी, तब उन्होंने शिव पार्वती की कठोर तपस्या की, जिसके बाद उनके घर तेजाजी का जन्म हुआ था। मान्यता है कि जब वे दुनिया में आए तब एक भविष्यवाणी में कहा गया था कि भगवान ने खुद आपके घर अवतार लिया है।

तेजा दशमी की कथा और मान्यताएं

एक बड़ी ही प्रचलित लोक कथा के मुताबिक तेजाजी राजा बचपन से ही साहसी थे। एक बार वे बहन को लेने उसके ससुराल पहुंचे। वह दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी का था। बहन के ससुराल पहुंचकर तेजाजी को मालूम चला कि एक दस्यु उनकी बहन के ससुराल से सारे गोधन यानी कि सारी गायों को लूटकर ले गया है। ये खबर मिलते ही तेजाजी अपने एक साथी के साथ जंगल में उस डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए निकल गए। रास्ते में एक सांप उनके घोड़े के सामने आ जाता है और तेजा को डसने की कोशिश करता है। तेजाजी उस सांप को वचन दे देते हैं कि अपनी बहन की गायों को छुड़ाकर वे वापस वहीं आएंगे, तब सांप उन्हें डस लेगा। ये सुनकर सांप उनका रास्ता छोड़ देता है।

तेजाजी डाकू से अपनी बहन की गायों छुड़वाने में सफल रहते हैं। डाकुओं से हुए युद्ध के कारण वे घायल होकर लहू से सराबोर हो जाते हैं और ऐसी ही अवस्था में सांप के पास जाते हैं। तेजा को घायल हालत में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा ही तन खून से अपवित्र हो गया है। मैं डंक कहां मारूं? तब तेजाजी उसे अपनी जीभ पर डसने के लिए कहते हैं। मान्यता है कि उनकी इसी वचनबद्धता को देखकर नागदेव उन्हें ये आशीर्वाद देते हैं कि जो व्यक्ति सर्पदंश से पीड़ित है, वह तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा तो उस पर जहर का असर नहीं होगा। इसी मान्यता के अनुसार हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी की पूजा होती है। दशमी पर तेजाजी के मंदिरों में लोगों की भारी भीड़ रहती है, जिन लोगों ने सर्पदंश से बचने के लिए तेजाजी के नाम का धागा बांधा होता है, वह जाकर धागा खोलते हैं।

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