शरद पूर्णिमा पर्व: माता लक्ष्मी की जाती है विशेष पूजा, चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होकर रातभर करता है अमृत की वर्षा

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है। यह पर्व शारदीय नवरात्रि के बाद आता है और इसे आरोग्य या कात्यायनी पर्व के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व है, क्योंकि इसे हार्वेस्ट फेस्टिवल के रूप में भी माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से पूर्ण होकर रातभर अमृत की वर्षा करता है। इस दिन चंद्रमा की रौशनी विशेष रूप से उज्ज्वल और आकर्षक होती है। इस दिन खीर बनाने और उसे रातभर चंद्रमा की चांदनी में रखने की परंपरा है। मान्यता है कि इस खीर को चांदनी में रखने से यह अमृत के समान हो जाती है, और इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि के बाद शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 16 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

शरद पूर्णिमा के अवसर पर विशेष रूप से माता लक्ष्मी का पूजा की जाती है ताकि उन्हें प्रसन्न किया जा सके। इस दिन माता लक्ष्मी को गाय के दूध से बनी चावल की खीर का भोग अर्पित किया जाता है, साथ ही पीले या सफेद रंग की मिठाइयों का भी प्रसाद चढ़ाया जाता है। महिलाएं इस दिन व्रत रखकर अपने परिवार की सुख-समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना करती हैं।

उज्जैन, मध्य प्रदेश का एक प्राचीन और पवित्र नगर है, जो श्री महाकालेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ शरद पूर्णिमा पर्व मनाने का एक विशेष महत्व है. इस दिन शहर में विशेष पूजा और कार्यकर्मो का आयोजन होता है साथ ही श्रद्धालु मंदिरों में जाकर पूजा करते हैं और चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करते हैं।

शरद पूर्णिमा के पवन पर्व पर महाकाल मंदिर में रात्रि आरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें भक्तगण शामिल होते हैं। इस प्रकार, शरद पूर्णिमा उज्जैन में न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव का भी हिस्सा है।

 

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