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Tulsi Vivah: आखिर क्यों भगवान विष्णु को लेना पड़ा शालिग्राम स्वरूप? पढ़ें ये पौराणिक कथा
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
जिस आंगन में तुलसी मां विराजमान हैं, वह घर स्वर्ग समान है। सुख और संपदा का आगम होगा, जब शालिग्राम और मां तुलसी का मिलन होगा।
तुलसी विवाह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जो हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप के साथ माता तुलसी का विवाह संपन्न होता है। तुलसी पूजा को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। कार्तिक माह में तुलसी विवाह करने से पापों से मुक्ति मिलती है। इस वर्ष, वैदिक पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास की द्वादशी तिथि 12 नवंबर मंगलवार को शाम 4 बजकर 2 मिनट पर शुरू होगी और 13 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए, उदया तिथि के अनुसार, 13 नवंबर की शाम को तुलसी विवाह का आयोजन किया जाएगा।
बता दें, तुलसी माता को हरि की पटरानी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि तुलसी विवाह के दिन जो व्यक्ति पूरे विधि-विधान से भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम जी का विवाह माता तुलसी से कराता है, उसका वैवाहिक जीवन हमेशा खुशहाल रहता है।
ये है कथा :
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जालंधर नामक एक शक्तिशाली राक्षस था, जिसकी पत्नी का नाम वृंदा था। वृंदा भगवान विष्णु की अनन्य भक्त थीं। जब भी जालंधर युद्ध के लिए जाता, तो उसकी पत्नी भगवान विष्णु की पूजा करती, और भगवान उसकी सभी इच्छाओं को पूरा करते। जालंधर ने चारों ओर आतंक फैला रखा था, जिससे सभी देवी-देवता बहुत परेशान हो गए थे। इस राक्षस के अत्याचारों से मुक्ति पाने के लिए सभी देवी-देवता भगवान विष्णु के पास गए और अपनी समस्या बताई। जिसके बाद, भगवान विष्णु ने जालंधर को हराने के लिए वृंदा के सतीत्व को खत्म करने की योजना बनाई। उन्होंने जालंधर का रूप धारण किया और वृंदा ने उन्हें अपने पति मानकर छू लिया, जिससे उसका पतिव्रता धर्म टूट गया। जैसे ही वृंदा का यह धर्म टूटा, जालंधर की सारी शक्तियां समाप्त हो गईं। अंत में, वह भगवान शिव से युद्ध में हार गया और शिवजी ने उसका सिर काट दिया। जब जालंधर की पत्नी वृंदा को पता चला कि उसके साथ धोखा हुआ है, तो उसने गुस्से में आकर भगवान विष्णु को श्राप दे दिया। वृंदा ने उन्हें पत्थर बनने का श्राप दिया, जिसे भगवान विष्णु ने मान लिया और वे शालिग्राम के रूप में पत्थर बन गए। माता लक्ष्मी को इस बात का बहुत दुख हुआ और उन्होंने वृंदा से कहा कि वह अपना श्राप वापस ले लें। वृंदा ने श्रीहरि को दिया श्राप तो वापस ले लिया, लेकिन खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुई, वहां एक पौधा उग आया। भगवान विष्णु ने उस पौधे का नाम तुलसी रखा। उन्होंने कहा कि मेरे शालिग्राम स्वरूप की पूजा तुलसी के साथ की जाएगी। इसी कारण देवउठनी एकादशी के बाद शालिग्राम और तुलसी का विवाह करने की परंपरा है।
यूं तो लोग घर में लगे तुलसी के पौधे की पूरे साल पूजा करते हैं, लेकिन कार्तिक माह में तुलसी की पूजा का महत्व बढ़ जाता है। तुलसी विवाह के दिन आंगन में केले के पत्तों का मंडप सजाया जाता है। घर परिवार और आस-पास के लोगों को आमंत्रित किया जाता है। तुलसी के लिए श्रृंगार और सुहाग का पूरा सामान एकत्र किया जाता है और उसे विवाह के समय तुलसी को अर्पित किया जाता है। मान्यता है कि तुलसी का विवाह करवाने और तुलसी की पूजा से मां लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और विवाह करवाने वाले जातक के घर में हमेशा के लिए सुख-शांति बनी रहती है।