- भगवान महाकाल को दान में आई अनोखी भेंट! भक्त ने गुप्त दान में चढ़ाई अमेरिकी डॉलर की माला, तीन फीट लंबी माला में है 200 से अधिक अमेरिकन डॉलर के नोट
- भस्म आरती: राजा स्वरूप में सजे बाबा महाकाल, मस्तक पर हीरा जड़ित त्रिपुण्ड, त्रिनेत्र और चंद्र के साथ भांग-चन्दन किया गया अर्पित
- श्री महाकालेश्वर मंदिर में एंट्री का हाईटेक सिस्टम हुआ लागू, RFID बैंड बांधकर ही श्रद्धालुओं को भस्म आरती में मिलेगा प्रवेश
- कार्तिक पूर्णिमा आज: उज्जैन में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, माँ क्षिप्रा में स्नान के साथ करते हैं सिद्धवट पर पिंडदान
- भस्म आरती: भांग, चन्दन और मोतियों से बने त्रिपुण्ड और त्रिनेत्र अर्पित करके किया गया बाबा महाकाल का दिव्य श्रृंगार!
53/84 श्री विश्वेश्वर महादेव
53/84 श्री विश्वेश्वर महादेव
काफी समय पहले विदर्भ नगर में राजा विदुरथ थे। एक बार वे षिकार के लिए वन में गए। वहां उन्होनें मृग छाल पहनकर भगवान के ध्यान मग्न एक ब्राम्हण की हत्या कर दी। इस पाप के कारण वह 11 अलग – अलग योनियों में जन्म लेता रहा। 11 वीं योनि में वह चांडाल पैदा हुआ और धन चुराने के लिए एक ब्राम्हण के घर में घुसा और लोगों ने उसे पकड़ कर पेड़ पर टांग दिया। मरने के पूर्व तक चांडाल शूलेश्वर के उत्तर में स्थित एक शिवलिंग के दर्शन करता रहा। इस कारण वह मरने के बाद स्वर्ग में सुख भोगता रहा। इसके बाद पृथ्वी पर वह विदर्भ नगरी में ही राजा विष्वेष हुआ। उसे अपने पूर्व जन्म की कथा याद रही। वह अवंतिका नगरी में स्थित शिवलिंग पर पहुंचा और विधि विधान से भगवान का पूजन किया। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने के लिए कहा। राजा ने कहा कि इस संसार में किसी का भी पतन न हो और आपका नाम विष्वेश्वर के नाम से विख्यात हो। विष्वेष राजा को वरदान देने के कारण शिवलिंग विष्वेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। मान्यता है कि जो भी मनुष्य विष्वेश्वर महादेव के दर्शन करता है उसके सात जन्मों के पापों का नाष होता है।