- नंदी हाल से गर्भगृह तक गूंजे मंत्र—महाकाल के अभिषेक, भस्मारती और श्रृंगार के पावन क्षणों को देखने उमड़े श्रद्धालु
- महाकाल की भस्म आरती में दिखी जुबिन नौटियाल की गहन भक्ति: तड़के 4 बजे किए दर्शन, इंडिया टूर से पहले लिया आशीर्वाद
- उज्जैन SP का तड़के औचक एक्शन: नीलगंगा थाने में हड़कंप, ड्यूटी से गायब मिले 14 पुलिसकर्मी—एक दिन का वेतन काटने के आदेश
- सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती पर ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का संदेश, उज्जैन में निकला भव्य एकता मार्च
- सोयाबीन बेचकर पैसा जमा कराने आए थे… बैंक के अंदर ही हो गई लाखों की चोरी; दो महिलाओं ने शॉल की आड़ में की चोरी… मिनट भर में 1 लाख गायब!
35/84 श्री इंद्रेश्वर महादेव
35/84 श्री इंद्रेश्वर महादेव :
काफी समय पहले त्वष्टा नाम के प्रजापति हुआ करते थे, उनका एक पुत्र था कुषध्वज। वह दान-धर्म करता था। एक बार इंद्र ने उसे मार दिया। इस पर प्रजापति ने क्रोध में अपी जटा से एक बाल तोडा ओर उसे अग्नि में डाल दिया। अग्नि से वृत्रासुर नामक दैत्य उत्पन्न हुआ। प्रजापति की आज्ञा से वृत्रासुर ने दवताओं से युद्ध किया ओर इंद्र को बंधक बना लिया ओर स्वर्ग में राज करने लगा। कुछ समय बाद देवगुरू बृहस्पति वहॉ पहुँचे और इंद्र को बंधनों से मुक्त कराया। इंद्र ने पुनः स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बृहस्पति से पूछा। बृहस्पति ने कहा कि इंद्र तुम जल्द महाकाल वन में जाओ ओर खंडेश्वर महादेव के दक्षिण में विराजित शिवलिंग का पूजन करों । इंद्र ने शिवलिंग का पूजन किया। भगवान शिव ने प्रकट होकर इंद्र को वरदान दिया कि वह शिव के प्रभाव से वृत्रासुर से युद्ध करें ओर विजय प्राप्त करें। इंद्र ने वृत्रासुर का नाष किया ओर पुनः स्वर्ग पर अपना अधिकार प्राप्त किया। इंद्र के पूजन किए जाने के कारण शिवलिंग इंद्रेश्वर के नाम से विख्यात हुआ। जो भी मनुष्य शिवलिंग का पूजन करता है, वह सभी पापों से मुक्त होता है। इंद्र के समान स्वर्ग को प्राप्त करता है।