पंचक्रोशी यात्रा

यह यात्रा लोक जीवन, धर्म और संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है। इस यात्रा का उल्लेख स्कन्दपुराण के अवन्तिखण्ड में मिलता है, जिसके अनुसार महाकाल वन के चारों दिशाओं में चार द्वार हैं – पूर्व में पिंगलेश्वर, पश्चिम में विल्वकेश्वर, उत्तर में दुर्दरेश्वर और दक्षिण में कायावरोहणेश्वर।

पंचक्रोशी यात्रा में तीर्थयात्रा उज्जैन की परिक्रमा करते हैं और फिर क्षिप्रा के तट पर विश्राम कर अष्टाविंशति तीर्थ  यात्रा पूरी करते हैं। यात्रा वैशाख कृष्ण पक्ष दशमी को शुरू होती है और अमावस्या को समाप्त होती है।

दन्तकथाएँ कहती हैं कि नागचंडेश्वर महादेव (शिवलिंग) के दर्शन करने से तीर्थयात्री शिवनिर्माल्य उल्लंघन के महापापों से मुक्त हो जाते हैं। यात्रा के यात्री एकादशी के दिन पिंगलेश्वर मंदिर पहुँचते हैं। यह यात्रा का पहला दिन होता है। वे यहां 81वें महादेव की पूजा करते हैं। यह आस्था है कि पंचक्रोशी यात्रियों को समृद्धि और बुद्धिमत्ता का आशीर्वाद मिलता है। स्वर्ग में स्थित धर्मराज भी उन्हें मान लेते हैं। द्वादशी को यात्री 82वें महादेव कायावरोहणेश्वर की पूजा करते हैं। पुराणों में कहा गया है कि इस पूजन से व्यक्ति सभी पापों से तो मुक्त होता है, जीवन-मरण के चक्र से भी छूट जाता है। उसे स्वर्ग में स्थान मिलता है।

इसके बाद यात्रीगण के  मार्ग में नलवा उप-पड़ाव आता है जहाँ यात्री विश्राम करते है। अम्बोदिया में विल्वकेश्वर महादेव मन्दिर है। जैथल से  यहाँ गंभीर नदी का पानी कालियादेह महल तक जाता है कालियादेह महल पर क्षिप्रा नदी के 52 कुण्ड है एवं  यह स्थान बहुत ही मनोरम है। और 84वें महादेव दारदुरेश्वर को श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं। किंवदंतियों के अनुसार यह वैशाख कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को पूजन करने से तीर्थयात्रियों के पूर्वजों को भी मुक्ति मिल जाती है। अमावस्या को यात्री उज्जैन पहुँचते हैं। दिनभर की  25 तीर्थ यात्रा के बाद वे एक बार फिर नागचन्द्रेश्वर महादेव की पूजा करते हैं। यात्रा में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कहीं अधिक होती है। तीर्थयात्री अपने साथ सारा जरूरी सामान ले जाते हैं और पूरी तरह आत्मनिर्भर होते हैं। वे यात्रा में कई स्थानों पर रूकते हैं और भजन गाते हैं। ग्रामीण इस यात्रा को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। कई तीर्थयात्री यात्रा के दौरान सड़क के किनारे पत्थरों का ढेर लगाते देखे जा सकते हैं। यह मिथक है कि ऐसा करने से अगले जनम में उन्हें रहने को भव्य इमारतें मिलेंगी। उज्जैन की परिक्रमा के साथ 84 महादेवों की परिक्रमा भी कर लेते हैं। इन 84 महादेवों के दर्शन से 84 लाख योनियों में जन्म लेने से उनका छुटकारा हो जाता है।

लाखों श्रद्धालु चिलचिलाती धूप में 24 किलोमीटर प्रतिदिन चलते हैं। हालांकि उनके चेहरे पर थकान की एक रेखा भी नहीं मिलती। अपने वर्ग, वंश और जाति को भुलाकर वे सिर्फ ईश्वर भक्त हो जाते हैं। यहाँ तक कि भीड़ में उनके नाम व पहचान भी अप्रसांगिक हो जाते हैं। तीर्थयात्री पंचक्रोशी यात्रा को बिना किसी लौकिक अथवा अलौकिक उद्देश्य से पूरा करते हैं। यात्रा की एक अन्य विशेषता यह है कि आमतौर पर इसमें साधुओं की कोई भागीदारी नहीं होती। हालांकि कुछ साधु यात्रा में भाग लेते हैं पर वह भी ग्रामीणों के निवेदन पर।

प्रशासन यात्रा मार्ग पर रियायती मूल्य की वस्तुओं की दुकानें लगाकर प्रबंध में योगदान देता है। दुग्ध संघ हर पड़ाव पर दूध उपलब्ध कराता है। इसी प्रकार पेयजल और चलित चिकित्सा सुविधाओं की व्यवस्था भी हो जाती है।