उज्जैन में अद्भुत घटना: दीक्षा के कुछ घंटों बाद ही मुनि बने सागर महाराज ने लिया समाधि मरण, तपोभूमि पर हुआ अंतिम संस्कार

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन की इंदौर रोड स्थित श्री महावीर तपोभूमि में एक आध्यात्मिक, विलक्षण और चमत्कृत कर देने वाली घटना ने समूचे जैन समाज को भावविभोर कर दिया। 80 वर्षीय संत सागर महाराज, जिन्होंने वर्ष 2005 से आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज के संघ में रहकर संयम और सेवा का जीवन बिताया था, उन्हें बुधवार दोपहर को मुनि दीक्षा दी गई। दीक्षा के कुछ ही घंटों के भीतर, गुरुवार की रात 2:30 बजे, उन्होंने सल्लेखना पूर्वक समाधि मरण ले लिया। इस घटना ने जैन समाज में श्रद्धा, आश्चर्य और गौरव की त्रिवेणी बहा दी। यह केवल एक निधन नहीं, बल्कि जैन परंपरा में मान्य समाधि मरण की एक अत्यंत पवित्र और दुर्लभ घटना थी, जिसे संत की अंतिम साधना का परम फल माना जाता है।
अंतिम सांस लेने से कुछ घंटे पहले मिली थी मुनि दीक्षा
सागर महाराज ने स्वयं आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज से विनम्र आग्रह किया था कि उन्हें जीवन के अंतिम समय में मुनि दीक्षा दी जाए। आचार्य श्री ने उनकी भावना को स्वीकारते हुए बुधवार दोपहर उन्हें मुनि दीक्षा दी, जिसके बाद उनका नाम मुनि पूज्यसागर महाराज रखा गया। महज कुछ घंटे बाद ही गुरुवार रात वे शांति पूर्वक, पूर्ण संयम और चेतन अवस्था में सल्लेखना विधि के अंतर्गत संसार को त्याग गए।
जयकारों के बीच हुआ अंतिम संस्कार
मुनि पूज्यसागर महाराज के अंतिम संस्कार की प्रक्रिया गुरुवार सुबह 8 बजे से प्रारंभ हुई। पूरे तपोभूमि परिसर को शोक और श्रद्धा के वातावरण ने घेर लिया। मुनिश्री को परंपरा अनुसार डोले में बैठाकर परिसर में घुमाया गया, डोले के आगे समाजजन पिच्छि और कमंडल लेकर चल रहे थे। पूरा क्षेत्र “सिद्ध मुनिवर अमर रहें”, “जिन शासन की जय हो” जैसे जयघोषों से गूंज उठा। इस दौरान जल, दूध, घी, दही, केसर, चंदन, औषधीय चूर्ण और कपूर से उनका अभिषेक किया गया। आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज, मुनि मंडल और श्री संघ ने मंत्रोच्चार और परिक्रमा के साथ अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूर्ण की।
बता दें, अंतिम संस्कार में जैन समाज के सैकड़ों श्रद्धालु, मुनि मंडल और अनेक धार्मिक व सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित रहे। श्री तपोभूमि ट्रस्ट के संस्थापक अध्यक्ष अशोक जैन ‘चायवाला’, अध्यक्ष दिनेश जैन, सचिव संजय बड़जात्या, कोषाध्यक्ष देवेन्द्र सिघंई, कार्याध्यक्ष इंदरमल जैन समेत कई वरिष्ठ पदाधिकारी इस अवसर पर मौजूद थे। मीडिया प्रभारी सचिन कासलीवाल ने जानकारी साझा की।
आचार्य प्रज्ञा सागर महाराज ने कहा, “मुनि पूज्यसागर महाराज 2005 से मेरे साथ संघ में कदम से कदम मिलाकर चले। वे पूर्ण शांतचित, आज्ञाकारी और धर्म निष्ठ संत थे। उनकी अंतिम इच्छा थी कि यदि समाधि हो तो उज्जैन की इस पावन तपोभूमि पर आपके सानिध्य में हो। आज हम इंदौर पट्टाचार महोत्सव में सम्मिलित होने के कारण उज्जैन रुके और उनका समाधि मरण यहीं हुआ। यह सब गुरु और धर्म की कृपा का परिणाम है।” सल्लेखना पूर्वक मरण को जैन धर्म में आत्मशुद्धि और अंतिम मुक्ति का सबसे उच्चतम मार्ग माना गया है। इस प्रकार का समाधि मरण मिलना जीवन की संयम साधना और समर्पण का उत्कृष्ट उदाहरण है।