सिद्धवट मंदिर

सिद्धवट मंदिर

उज्जैन के भैरवगढ़ के पूर्व में शिप्रा के तट पर प्रचीन सिद्धवट का स्थान है। इसे शक्तिभेद तीर्थ के नाम से जाना जाता है। हिंदू पुराणों में इस स्थान की महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदू मान्यता अनुसार चार वट वृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षयवट, वंशीवट, बौधवट और सिद्धवट के बारे में कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता। सिद्धवट के पुजारी ने कहा कि स्कंद पुराण अनुसार…

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हरिसिद्ध मंदिर

हरिसिद्ध मंदिर

उज्जैन स्थित भव्य श्री हरसिद्धि मंदिर भारत के प्राचीन स्थानों में से एक है जो कि माता सती के ५१ शक्तिपीठों में १३वा शक्तिपीठ है । पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता सती के पिता दक्षराज ने विराट यज्ञ का भव्य आयोजन किया था जिसमें उन्होंने सभी देवी-देवता व गणमान्य लोगों को आमंत्रित किया । परन्तु उन्होंने माता सती व भगवान शिवजी को नहीं बुलाया । फिर भी माता सती उस यज्ञ उत्सव में उपस्थित…

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प्रशांतिधाम

प्रशांतिधाम

त्रिवेणी के पास ग्राम गोयला खुर्द में सन् 1999 में प्रशांतिधाम मंदिर का निर्माण हुआ है। इसकी स्थापना सांई फाउण्डेशन इंडिया नामक संस्था द्वारा की गई है। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा परमपूज्य श्री सांई बाबा की उपस्थिति में हुई है। मंदिर में सांई बाबा, तिरूपति बालाजी, महाकाली, शेरावाली माता, शिवशंकर, श्री हनुमान एवं श्री राम दरबार की मूर्तियां है। यह धाम 10 बीघा जमीन में स्थित है। अभी तक इस पर एक करोड रूपया खर्च…

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महावीर जैन तपोभूमि

महावीर जैन तपोभूमि

उज्जैन एक ऐतिहासिक एवं पौराणिक नगरी है भगवान आदिनाथ से लेकर भगवान महावीर तक अनेक महापुरुषों का संबंध उज्जैनी से है। सन् 2005 में उज्जैन भगवान महावीर की चरण रज से पावन हुआ| जिसमें भगवान महावीर स्वामी के तप की खुशबू सर्वत्र व्याप्त हो सके और दुनिया उज्जैनी को भगवान महावीर स्वामी की तपोभूमि के नाम से जान सके।श्री सिद्ध क्षेत्र के महावीर तपो भूमि उज्जैन – इंदौर राजमार्ग पर स्थित है. यह लगभग 6…

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विक्रमकीर्ति मंदिर

विक्रमकीर्ति मंदिर

उज्जैन के पवित्र शहर में विक्रम कीर्ति मंदिर का निर्माण युवा पीढ़ी के मन में मौर्य वंश के गौरव को स्थापित करने के लिए किया गया था। विक्रम कीर्ति मंदिर में एक सिंधिया ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, एक पुरातात्विक संग्रहालय, एक आर्ट गैलरी और एक सभागार है। इस जगह को विक्रम युग की दूसरी सहस्राब्दी के अवसर पर एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था। इस संग्रहालय में नर्मदा घाटी में पाई गई मूर्तियों…

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शनि मंदिर

शनि मंदिर

नगर से थोड़ी दूर सांवेर रोड पर प्राचीन शनि मंदिर भी यहां का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य ने करवाया था। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां शनि देव के साथ-साथ अन्य नवग्रह भी विराजमान हैं इसलिए इसे नवग्रह मंदिर भी कहा जाता है। यहां दूर-दूर से शनि भक्त तथा शनि प्रकोप से प्रभावित लोग दर्शन करने आते हैं और शनि देव…

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चामुण्डा माता का मंदिर

चामुण्डा माता का मंदिर

श्री छत्रेश्वरी चामुण्डा माता का मंदिर शहर के मध्य चामुण्डा माता चौराहे पर स्थित है । यहाँ देवी छत्रेश्वरी तथा चामुण्डा दो रूप में विराजित है। इस मंदिर में माता पूर्व दिशा की ओर मुख करके विराजित है । इस मंदिर का जीर्णोद्धार १९७१ में हुआ था । शारदीय नवरात्रि की महाष्टमी पर दोपहर १२ बजे माता की शासकीय पूजा होती है । चैत्र नवरात्रि तथा अंग्रेजी नववर्ष की पहली तारीख पर मंदिर में माताजी…

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गयाकोठा मंदिर

गयाकोठा मंदिर

पौराणिक एवं धार्मिक नगरी उज्जैन में विभिन्न धर्मस्थल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र हैं। इन धर्म स्थलों में से एक हैं गयाकोठा जैसा कि नाम से स्पष्ट है। गया कोठा में अपने पितरों की मुक्ति की कामना लेकर लोग प्रार्थना करते हैं। यहां भगवान श्री विष्णु के सहस्त्र चरण विद्यमान हैं। जिन पर दुग्धाभिषेक कर यहां आने वाले अपने पितरों की मुक्ति और मनोवांछित फल प्राप्त करते हैं। हालांकि श्राद्धपक्ष के प्रारंभ में और सर्वपितरी अमावस्या…

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बिजासन माता का मंदिर

बिजासन माता का मंदिर

विंद्यवासिनी को बिजासन माता कहा जाता है । यह विंध्य पर्वत के आसपास के क्षेत्रो में या आर्यावत अथवा मध्य देश में विशेष पूजी जाती है। उज्जैन में इस प्रमुख देवी का मंदिर होना स्वाभाविक है । उज्जैन के देवास मार्ग पर नागझिरी के दक्षिण में और पुराने शहर के सिंहपुरी में बिजासन देवी का प्राचीन मंदिर है । इसी प्रकार गढ़कालिका के पास ओखलेश्वेर मार्ग पर भी बिजासन माता का प्राचीन स्थान है। यह…

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चौंसठ योगिनी का मंदिर

चौंसठ योगिनी का मंदिर

पुराने शहर के नयापुरा क्षेत्र में देवी के रूप में चौंसठ योगिनियों का अनूठा है। इसे तंत्र साधना और पूजा के लिए भी प्रमुख स्थान माना जाता है। मंदिर का नाम सुनकर भक्तों में मन में यह सवाल जरूर आता है कि यहां देवी रूप में चौंसठ प्रतिमाएं विराजित होगी। लेकिन ऐसा कहते हैं कि यहां कई प्रतिमाएं हैं पर अलग-अलग संख्या में चौंसठ प्रतिमाएं विराजित नहीं है। यह भी मान्यता है कि राजा विक्रमादित्य…

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