उज्जैन के दत्त अखाड़ा घाट पर मां शिप्रा तैराक दल बना रहा तैराकी के ‘वीर’: बच्चों को सिखाई जा रही जीवनरक्षक तैराकी, सिंहस्थ में निभाएंगे सुरक्षा का दायित्व!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:

उज्जैन की पवित्र शिप्रा नदी इन दिनों सिर्फ श्रद्धा और आस्था की धारा नहीं, बल्कि साहस और सेवा की पाठशाला बन गई है। यहां स्थित दत्त अखाड़ा घाट पर मां शिप्रा तैराक दल के नेतृत्व में एक अनोखा और प्रेरणादायक अभियान चल रहा है, जिसमें 50 से अधिक बच्चों को तैराकी के साथ-साथ डूबती जानों को बचाने की कला भी सिखाई जा रही है। खास बात यह है कि इन बच्चों की पीठ पर डिब्बे बांधकर देसी तकनीक से उन्हें आत्मनिर्भर और प्रशिक्षित बनाया जा रहा है, ताकि वे बिना आधुनिक संसाधनों के भी जल जीवन रक्षा में सक्षम बन सकें।

इस प्रशिक्षण शिविर का संचालन कर रहे हैं शिप्रा तैराक दल के संतोष सोलंकी, जो पिछले 9 वर्षों से रामघाट स्थित शिप्रा नदी में ग्रीष्मकालीन तैराकी शिविर आयोजित कर रहे हैं। सोलंकी का उद्देश्य न सिर्फ बच्चों को तैराक बनाना है, बल्कि उन्हें जिम्मेदार जीवनरक्षक के रूप में भी तैयार करना है। इस शिविर में 7 साल से ऊपर की उम्र के बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है, खासकर उन बच्चों को जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है और जो स्विमिंग पूल की फीस नहीं चुका सकते। यानी यह शिविर एक सामाजिक मिशन का रूप ले चुका है – “हर बच्चा बने जल का योद्धा”

शिविर में हर दिन सुबह 7 से 9 बजे तक प्रशिक्षण होता है। बच्चों की पीठ पर एक डिब्बा बांधकर उन्हें नदी के बीच तक तैराकर ले जाया जाता है और फिर वहां से वापसी कराई जाती है। यह तरीका न केवल आत्मविश्वास बढ़ाता है, बल्कि जीवन रक्षा और आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। सोलंकी बताते हैं कि अब तक सैकड़ों बच्चों को प्रशिक्षित किया जा चुका है, जिनमें से कई बच्चे आज राष्ट्रीय स्तर पर तैराकी प्रतियोगिताओं में मेडल जीत चुके हैं। लेकिन इस बार का उद्देश्य अलग है – ये सभी बच्चे आगामी सिंहस्थ कुम्भ में घाटों पर सुरक्षा में तैनात रहेंगे और श्रद्धालुओं की जान बचाने का कार्य करेंगे

उल्लेखनीय है कि सिंहस्थ कुम्भ 2028 उज्जैन में आयोजित होने वाला है, जिसमें देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु शिप्रा नदी में डुबकी लगाने आएंगे। ऐसे में तैराकी के ये ‘बाल-रक्षक’ मां शिप्रा के जीवनदायी जल में डूबती जानों के लिए देवदूत बनकर उभर सकते हैं। यह पूरी पहल न केवल जलसुरक्षा की दृष्टि से अनुकरणीय है, बल्कि यह उज्जैन जैसे आध्यात्मिक शहर की सामाजिक जागरूकता और सेवा भावना का भी अद्भुत उदाहरण है।

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