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रमा एकादशी व्रत आज, भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा करने से होता है सभी पापों का नाश; रमा एकादशी व्रत करने से घर में खुशहाली के साथ बानी रहती है समृद्धि
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
एकादशी तिथि का स्थान सनातन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण है। पूरे वर्ष में 24 एकादशी व्रत का पालन किया जाता है। हर एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है, लेकिन सभी का व्रत भगवान श्री हरि विष्णु के प्रति समर्पित होता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, 28 अक्टूबर को रमा एकादशी का व्रत आयोजित किया जाएगा। यह पर्व भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है, और इस दिन विधि अनुसार उनकी आराधना की जाती है।
बता दें, रमा एकादशी का व्रत महिलाएं बड़े उत्साह के साथ करती हैं और भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना करती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, जीवन में आने वाले कष्टों का निवारण होता है और घर में खुशहाली के साथ समृद्धि भी बनी रहती है।
एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कार्तिक कृष्ण एकादशी व्रत की विशेषता और विधि के बारे में जानने का अनुरोध किया। भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि यह एकादशी रमा एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। जो व्यक्ति जानबूझकर या अनजाने में पाप करता है, उसे इस व्रत का पालन करना चाहिए। भगवान विष्णु की कृपा से वह अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
एक नगर में राजा मुचुकुंद का शासन था, जो पूजा-पाठ और दान-पुण्य में विश्वास रखते थे। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम चंद्रभागा था। उन्होंने राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से अपनी पुत्री का विवाह किया। एक दिन शोभन ससुराल आया, और उसी समय रमा एकादशी का व्रत आने वाला था। मुचुकुंद के राज्य में सभी प्रजा एकादशी का व्रत रखते थे और उस दिन कोई भी भोजन नहीं करता था। चंद्रभागा शोभन को देखकर चिंतित हो गई, क्योंकि उसका पति कमजोर था और बिना भोजन के रह नहीं सकता था।
रमा एकादशी से पूर्व राजा ने यह घोषणा की कि एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करेगा। यह सुनकर शोभन बहुत चिंतित हो गया। उसने चंद्रभागा से कहा कि वह बिना भोजन के कैसे जीवित रह सकेगा, उसके प्राण तो निकल जाएंगे। कृपया एकादशी के दिन के लिए कोई उपाय बताओ। इस पर उसकी पत्नी ने सुझाव दिया कि वह कहीं और चला जाए। लेकिन शोभन ने स्पष्ट किया कि वह कहीं नहीं जाएगा, यहीं रहेगा।
रमा एकादशी के दिन शोभन ने व्रत का पालन किया। उस दिन सूर्यास्त के समय उसे भूख की तीव्रता महसूस हुई। एकादशी की रात का जागरण उसके लिए अत्यंत कठिन हो गया। अगले दिन सुबह होते ही उसकी मृत्यु हो गई। तब राजा ने अपने दामाद का विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया। चंद्रभागा अपने पिता के घर पर रहने लगी। रमा एकादशी के व्रत के पुण्य से शोभन को मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक एक सुंदर नगर प्राप्त हुआ, जहां वह सुखपूर्वक निवास करने लगा।
राजा मुचुकुंद के राज्य में एक ब्राह्मण, सोम शर्मा, शोभन के नगर देवपुर पहुँचा। उसने शोभन को देखकर पहचाना कि वह चंद्रभागा का पति है। ब्राह्मण ने शोभन को सूचित किया कि उसकी पत्नी चंद्रभागा और ससुर मुचुकुंद दोनों सुखी हैं। उसने यह भी पूछा कि शोभन को इतना सुंदर और समृद्ध राज्य कैसे प्राप्त हुआ। शोभन ने सोम शर्मा को रमा एकादशी व्रत के पुण्य प्रभाव के बारे में बताया। उसने कहा कि उसने रमा एकादशी का व्रत बिना श्रद्धा के किया था, इसलिए यह राज्य और सुख अस्थिर हैं। शोभन ने सुझाव दिया कि यदि चंद्रभागा को इस बारे में बताया जाए, तो यह स्थिर हो जाएगा। ब्राह्मण ने लौटकर चंद्रभागा को पूरी जानकारी दी।
चंद्रभागा ने उस ब्राह्मण को शोभन के पास ले जाने का निर्देश दिया। इसके पश्चात सोम शर्मा ने चंद्रभागा को अपने साथ लेकर मंदराचल पर्वत के निकट वामदेव ऋषि के पास गए। ऋषि ने चंद्रभागा का अभिषेक किया, जिसके प्रभाव से वह दिव्य शरीर वाली हो गई और उसे दिव्य गति प्राप्त हुई। फिर वह अपने पति शोभन के पास गई। उसने शोभन की बाईं ओर स्थान ग्रहण किया और अपने पति को एकादशी व्रत का पुण्य फल प्रदान किया। इससे शोभन का राज्य प्रलय काल के अंत तक सुरक्षित हो गया। इसके बाद चंद्रभागा अपने पति शोभन के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगी। जो भी व्यक्ति रमा एकादशी का व्रत करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।