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श्राद्ध केवल तीर्थस्थलों पर ही मान्य: उज्जैन के पंडित अमर डब्बावाला का बड़ा बयान, बोले – ऑनलाइन श्राद्ध से वांछित फल नहीं मिलता!
उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
श्राद्ध पक्ष (7 सितंबर से 21 सितंबर) के चलते देशभर में पितृ तर्पण और पिंडदान की परंपरा निभाई जा रही है। इसी बीच उज्जैन में ऑनलाइन श्राद्ध और तर्पण को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। शहर के प्रसिद्ध पंडित अमर डब्बावाला ने साफ कहा है कि ऑनलाइन श्राद्ध से वांछित फल नहीं मिलता।
पंडित अमर डब्बावाला का बयान:
उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्मग्रंथों में श्राद्ध-विधि का उल्लेख बहुत साफ है।
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श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण जैसे कर्म तीर्थस्थलों पर ही करने चाहिए।
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तीर्थों पर देवताओं का वास होता है और वहाँ की नदियाँ दिव्य ऊर्जा से परिपूर्ण होती हैं।
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यही ऊर्जा पितरों की आत्मा को शांति और आगे की यात्रा में सहायक बनाती है।
उनके अनुसार, जलदान, पिंडदान, देव-ऋषि तर्पण, तीर्थ श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध और अन्वष्टका श्राद्ध जैसे कर्म केवल तीर्थस्थलों पर ही करने चाहिए।
शास्त्रों में श्राद्ध के 96 अवसर बताए गए
पंडित डब्बावाला ने बताया कि पद्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण और ब्रह्म पुराण के अनुसार श्राद्ध नित्य और नैमित्तिक होता है। शास्त्रों में कुल 96 अवसरों पर श्राद्ध करने का उल्लेख है।
गया धाम पर श्राद्ध करने के बाद भी तीर्थ श्राद्ध और तर्पण श्राद्ध किए जा सकते हैं।
श्राद्ध से मिलते हैं आशीर्वाद
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार:
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श्राद्ध और तर्पण से पितरों की कृपा मिलती है।
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इससे वंश वृद्धि, सुख-समृद्धि, उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
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ऑनलाइन विधि भारतीय सनातन संस्कृति का हिस्सा नहीं है, इसलिए इससे अपेक्षित फल प्राप्त नहीं होता।
सिद्धवट: उज्जैन का अद्भुत तीर्थ
पितृपक्ष के दौरान उज्जैन में सबसे प्रमुख तीर्थ है – सिद्धवट।
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मान्यता है कि इस वट वृक्ष को माता पार्वती ने स्वयं लगाया था।
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यह केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि आस्था का जीवित प्रतीक है।
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संसार में चार वट वृक्ष अत्यंत पवित्र माने गए हैं – प्रयाग का अक्षयवट, वृंदावन का वंशीवट, गया का बौधवट और उज्जैन का सिद्धवट।
कहा जाता है कि यहीं पर देवी पार्वती ने कार्तिकेय को भोजन कराया था और उन्हें देवसेना का सेनापति बनाकर तारकासुर का वध करवाया। युद्ध के बाद जो दिव्य शक्तियाँ निकलीं, वे शिप्रा नदी में समा गईं और यह स्थान शक्तिभेद तीर्थ कहलाया।
गया कोटा तीर्थ: उज्जैन का गया धाम
पितृपक्ष में उज्जैन का एक और महत्वपूर्ण स्थान है – गया कोटा तीर्थ मंदिर। यह जटेश्वर महादेव, काजीपुरा क्षेत्र में स्थित है।
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इसे उज्जैन का गया भी कहा जाता है।
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मान्यता है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने गुरु के पुत्रों का तर्पण यहीं किया था।
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यहाँ भगवान विष्णु के 16 चरण बने हुए हैं, जो पितृपक्ष में विशेष रूप से पूजनीय माने जाते हैं।
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साथ ही यहाँ जटाशंकर महादेव मंदिर भी है, जहाँ दूध चढ़ाने से पितरों की आत्मा को शांति और तृप्ति मिलती है।
धार्मिक मान्यता है कि गया कोटा तीर्थ पर किया गया श्राद्ध और तर्पण, बिहार के गया धाम जितना ही फलदायी होता है।
पितृपक्ष का महत्व
7 सितंबर से 21 सितंबर तक चलने वाले इन 15 दिनों में संपूर्ण भारतवर्ष में श्राद्ध और तर्पण की परंपरा निभाई जाती है।
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मान्यता है कि इस अवधि में पितृ धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से तर्पण की अपेक्षा रखते हैं।
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बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन इस अवधि में विशेष महत्व रखती है।
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यहाँ देशभर से लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से आते हैं।