वैदिक उद्घोष और लोक नृत्यों से सजेगा पहला सोमवार, 25 गुरुकुलों के 500 से अधिक वैदिक बटुक करेंगे महाकालेश्वर की आराधना; जनजातीय लोक नृत्यों से होगा स्वागत!

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
श्रावण-भाद्रपद मास में बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक दक्षिणमुखी भगवान श्री महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में भक्ति और संस्कृति का अद्भुत संगम देखने को मिलेगा। इस बार प्रथम सोमवार, 14 जुलाई को श्री महाकालेश्वर भगवान की पहली सवारी को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की मंशानुसार विशेष वैदिक उद्घोष के साथ और भी अधिक दिव्य रूप दिया जाएगा। भगवान श्री महाकालेश्वर अपने श्री मनमहेश स्वरूप में रजत पालकी में विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलेंगे, ताकि अपनी प्रजा का हाल जान सकें और उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान कर सकें।
इस सवारी की भव्यता को और बढ़ाने के लिए श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा इस वर्ष प्रत्येक सवारी के लिए अलग-अलग थीम तय की गई है। प्रथम सवारी के अवसर पर वैदिक उद्घोष की थीम के अनुरूप जब श्री महाकालेश्वर जी की पालकी क्षिप्रातट पर पहुँचेगी, तब माँ क्षिप्रा के तट पर एक अनूठा दृश्य देखने को मिलेगा। यहाँ श्री महाकालेश्वर वैदिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान तथा उज्जैन के 25 गुरुकुलों के 500 से अधिक वैदिक बटुक एक साथ वेद मंत्रों का उच्चारण करते हुए भगवान श्री महाकालेश्वर की आराधना करेंगे। दत्त अखाड़ा और रामघाट क्षेत्र दोनों ओर इन वैदिक बटुकों के स्वर से वातावरण दिव्यता से भर जाएगा।
इसके अतिरिक्त गतवर्ष की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद की जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी के माध्यम से प्रदेश के विभिन्न अंचलों से आए जनजातीय कलाकार भी इस सवारी में सहभागी होंगे। इस बार घासी जनजाति का घसियाबाजा नृत्य (सीधी), गोंड जनजाति का गुन्नूरसाई नृत्य (सिवनी), कोरकू जनजाति का ढांढल नृत्य (अनूपपुर) और सैरा लोक नृत्य (सागर) की प्रस्तुतियाँ श्री महाकालेश्वर भगवान की पालकी के आगे भजन मंडलियों के साथ चलती हुई एक अलौकिक छवि रचेंगी। ये जनजातीय दल भगवान श्री महाकालेश्वर की सभी सवारियों में सम्मिलित रहकर अपनी-अपनी लोक कलाओं के माध्यम से श्रद्धा और भक्ति की अनुपम झलक प्रस्तुत करेंगे।
इस तरह प्रथम सोमवार की सवारी उज्जैन में धर्म, संस्कृति और परंपरा का भव्य उत्सव बनकर लाखों श्रद्धालुओं के मन में जीवनभर की स्मृतियाँ छोड़ जाएगी। जहाँ एक ओर वेदों की ऋचाओं का गूंजता स्वर गूढ़ आध्यात्मिक भाव जगाएगा, वहीं दूसरी ओर जनजातीय लोक नृत्यों की थाप महाकाल की धरती को जीवंत कर देगी। निश्चय ही यह आयोजन उज्जैन और महाकाल भक्तों के लिए गौरव और आस्था का अद्वितीय पर्व होगा।