मेले की तैयारी:कार्तिक मेला: दुकानों को ब्लॉक बनाकर लगवाएंगे ताकि भीड़ न हो

कार्तिक मेले का आयोजन होगा। दुकानें ब्लॉक्स में लगाई जाएंगी। दुकानों के बीच भी दूरी रखी जाएगी। इसके लिए प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। मेले का स्वरूप बनाए रखने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे। मेले को लेकर प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है। कलेक्टर आशीष सिंह का कहना है कि कोरोना गाइड लाइन का पालन करते हुए मेले का आयोजन करेंगे। प्रशासन यह प्रयास करेगा कि परंपरा का निर्वाह भी हो और लोगों को संक्रमण से बचाया भी जा सके।

 

सम्राट विक्रमादित्य के समय से आयोजित हो रहा मेला

कार्तिक मेले को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई थी। नगर निगम आयुक्त ने पारंपरिक कार्तिक मेले के आयोजन के लिए अनुमति के लिए प्रशासन को पत्र भेजा था लेकिन प्रशासन ने अनुमति देने से इंकार कर दिया था।

इससे मेले को लेकर धार्मिक क्षेत्र के लोगों में तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। यह मेला सम्राट विक्रमादित्य के समय से आयोजित हो रहा है। किंवदंती है सम्राट के पिता गर्दभिल्ल ने मेले की शुरुआत की थी। बाद में यह कार्तिक स्नान की धार्मिक परंपरा से भी जुड़ गया।

कार्तिक स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु इस मेले में खरीदारी करते हैं। उनके मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक, खेल और अन्य आयोजन भी किए जाते हैं। कोरोना संक्रमण के कारण इस बार प्रशासन द्वारा मेले की अनुमति नहीं दिए जाने से धार्मिक क्षेत्र के लोगों ने आपत्ति ली थी। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ मोहन यादव ने भी प्रशासनिक अधिकारियों को कार्तिक मेले के लिए नई योजना बनाने को कहा था।

कलेक्टर सिंह का कहना है कि मेले में दुकानों को अलग-अलग ब्लॉक में लगाएंगे। दुकानों के बीच भी दूरी रहेगी। एक ही जगह पर भीड़ जमा न हो इसका बंदोबस्त किया जाएगा। सांस्कृतिक आयोजन के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था करेंगे। नागरिकों को संक्रमण के बचाने के लिए जरूरी उपाय किए जाएंगे।

 

न दंगे में मेला रुका, न आचार संहिता आड़े आई, अशांति में भी लगा मेला

निगम परिषद के पूर्व अध्यक्ष सोनू गेहलोत बताते हैं कि ज्ञात इतिहास में पहला अवसर है जब मेले के आयोजन को अनुमति नहीं मिली है। जबकि इसके पहले दंगे से लेकर चुनाव आचार संहिता तक में मेला आयोजित हुआ। 1984 में इंदिरा गांधी हत्याकांड और 1992 में राम जन्मभूमि मामले को लेकर देश में अशांति के माहौल में भी मेला लगाया गया।

2013 और 2018 में चुनाव आचार संहिता के कारण मेले के आयोजन पर आंच आई लेकिन तत्कालीन अधिकारियों ने मेले को अनुमति दी। यह मेला सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। कार्तिक स्नान की परंपरा से जुड़े मेले में अभा व स्थानीय मुशायरा भी होता है।

 

1912 से उनपा ने संभाली थी कार्तिक मेले की व्यवस्थाएं

कार्तिक मेले का सांस्कृतिक इतिहास विक्रमादित्य कालीन है। आयोजन से शासकीय व्यवस्था का जुड़ाव 1912 से हुआ। नगर निगम में मौजूद रिकॉर्ड के अनुसार तत्कालीन उज्जैन नगर पालिका ने 1912 में पहली बार मेले की व्यवस्था अपने हाथ में ली थी। नपा के खर्च पर मेला लगाया।

मेले के स्वरूप में बदलाव आया। मेले में व्यावसायिक और सांस्कृतिक क्षेत्र को अलग किया गया। इस तरह करीब 108 साल से सुनियोजित तरीके से इस मेले का आयोजन होने से इसकी ख्याति भी देशभर में फैली। प्रो. हरिओम पंवार सहित देश के ख्यातनाम कवि यहां के मंच पर अपनी रचनाएं पढ़ चुके हैं।

55 साल से अभा कबड्डी स्पर्धा हो रही है जिसमें देश की ख्यातनाम टीमें भाग ले चुकी हैं। एक समय इस मेले का व्यावसायिक स्वरूप भी निखरा था जब राज्य सरकार मेले में सेल्स टैक्स की छूट देती थी। तब यहां दोपहिया, चौपहिया वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण आदि के बड़े शोरूम भी भागीदारी करते थे।

ख्यातनाम कंपनियां मेले में स्टॉल लगाती थीं। मेले में लगने वाला मीना बाजार सामंतशाही जमाने की देन बताया जाता है, तब राजशाही की महिलाएं यहां खरीदी करने आती थीं। समयांतर में मेले की वह आभा नहीं रही लेकिन मेला आज भी मालवांचल के लोगों की खास पसंद है।

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