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नवरात्र का पहला दिन:16 दिनों के श्राद्ध के बाद आज करते हैं नाना-नानी का श्राद्ध, दीपावली तक चलता है श्राद्ध पर्व
आज नवरात्रि का पहला दिन है। 16 दिनों के श्राद्ध खत्म होने के बाद आज के दिन नाना-नानी का श्राद्ध करने की परंपरा है। लेकिन कई लोग इस परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इतना ही नहीं विद्वानों और धर्मशास्त्र के ज्ञाताओं का मानना है कि श्राद्ध पर्व दीपावली तक चलता है। स्कंद पुराण में भी इसका उल्लेख बताया गया है। यही कारण है कि कई लोग श्राद्ध 16 तो कई 17 दिन के मानते हैं।
कन्या राशि में सूर्य आने पर श्राद्ध पक्ष शुरू होते हैं, जो 16 दिनों के होते हैं। जो अश्विन कृष्ण की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक रहते हैं। लेकिन धर्मशास्त्र के जानकारों का मानना इससे अलग है। वे मानते हैं, श्राद्ध हमारे पितरों की आत्मशांति के लिए किया जाता है। जिस दिन से श्राद्ध शुरू होते हैं वे पितृ लोक से धरती पर आते हैं। और दीपावली तक रहते हैं। दीपावली के दिन होने वाली रोशनी उन्हें पितृ लोक का रास्ता दिखाती है। इसलिये श्राद्ध भी दीपावली तक मनाए जा सकते हैं।
विक्रम विश्वविद्यालय में संस्कृत अध्ययन शाला के प्रोफेसर रहे डॉ. केदारनाथ शुक्ल कहते हैं इस बात का स्पष्ट प्रमाण स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में दिया है। वे कहते हैं, 16 दिनों के श्राद्ध में कई बार परिवार में किसी की मृत्यु या जन्म या घर से बाहर रहने की स्थिति में श्राद्ध नहीं कर पाते हैं। ऐसे लोगों के लिए सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के पहले श्राद्ध कर देना चाहिए। तिथि अनुसार यह अवसर दीपावली के आगे पीछे ही आता है। इसलिए अमावस्या को अंतिम दिन माना जाता है।
स्कंद पुराण (6/216/96-97)
सूर्ये कन्यागते श्राद्धं यो न कुर्याद्गृहाश्रमी। धनं पुत्रा: कुतस्तस्य पितृनि:श्वासपीडया।।
वृश्चिके समतिक्रांते पितरो दैवतै: सह। नि:श्वस्य प्रतिगच्छंति शापं दत्त्वा सुदारुणम्।।
यानि
जो मनुष्य श्राद्ध पक्ष (भाद्रपद अश्विन के कृष्णपक्ष में) में पितरों का श्राद्ध नहीं कर पाते उन्हें कार्तिक माह की अमावस्या तक करना चाहिए, जिस दिन दीप जलाए जाते हैं। यानि सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश के पहले तक श्राद्ध कर सकते हैं।
उज्जैन में सिद्धवट पर तर्पण का खास महत्व –
उज्जैन के सिद्धवट पर पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध का विशेष महत्व है। रामघाट पर भी पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध स्थान माना जाता है। भगवान राम ने वनवास के दौरान अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध भी यहीं किया था। मान्यता है कि शिप्रा नदी के किनारे सिद्धवट घाट पर पूर्वजों का तर्पण करने करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग होने के कारण और उज्जैन के तीर्थ होने के कारण कई जगहों पर उज्जैन के सिद्धवट को गया जी से भी ज्यादा महत्व दिया जाता है। इसीलिए उज्जैन में गया तीर्थ के रूप में गयाकोठा मंदिर का निर्माण किया गया है। यहां भी पिंडदान किया जाता है। पितृ आत्माओं की शांति व मुक्ति का पर्व श्राद्ध पक्ष तेरस से प्रारंभ होगा। पूर्णिमा तिथि पर गयाकोठा मंदिर में हजारों लोग पूर्वजों के निमित्त जल-दूध से तर्पण और पिंडदान करेंगे। शास्त्रों के अनुसार सूर्य इस दौरान श्राद्ध तृप्त पितरों की आत्माओं को मुक्ति का मार्ग देता है।